भजनलाल शर्मा को भारतीय जनता पार्टी ने राजस्थान के मुख्यमंत्री के रुप में पदभार दिया है, वो विधायक दल के नेता सर्वसम्मति से चुने गए। राजस्थान प्रदेश कि पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे द्वारा उनके नाम का अनुमोदन किया गया जिसके बाद विधायकों ने सम्मति से भजनलाल शर्मा को राजस्थान के नए मुख्यमंत्री के रूप में चुना।
कौन है भजनलाल शर्मा?
भजनलाल शर्मा का जन्म राजस्थान राज्य के भरतपुर जिले में हुआ। शर्मा वर्ष 2023 में पहली बार भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के रूप में जयपुर जिले कि सांगानेर विधानसभा क्षेत्र से पहली बार विधायक निर्वाचित हुए। यह पहली बार ही विधायक निर्वाचित हुए हैं। इससे पहले इन्होंने वर्ष 2003 में सामाजिक न्याय मंच के प्रत्याशी के रुप में भरतपुर कि नंदबई विधानसभा से चुनाव लड़ा, जिसमें इनको बूरी तरह से पराजय झेलनी पड़ी। इन्हें उस समय मात्र 5969 मत प्राप्त हुए थे और जमानत भी ज़ब्त हुई थी।
जयपुर जिले कि भारतीय जनता पार्टी के लिए सुरक्षित मानी जाने वाली सांगानेर विधानसभा से चुनाव लड़ा कांग्रेस पार्टी के पुष्पेंद्र भारद्वाज को 48,081 वोटों से पराजित किया। शर्मा अपनी विश्विद्यालय शिक्षा के दौरान भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा वाले अखिल भारतीय विद्यार्थी पारिषद से जुड़ गए और लंबे समय तक विश्विद्यालय शिक्षा के बाद भारतीय जनता पार्टी में महामंत्री के रुप में संघठन में कार्य करते रहे।
भजनलाल शर्मा क्यो चुने गए मुख्यमंत्री?
राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी के कई दिग्गजों को पछाड़कर भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री के रुप में चुना जाना प्रदेश कि जनता के लिए रौचक मामला दिखा। भारतीय जनता पार्टी के लिए राजस्थान नया प्रदेश नहीं है, ऐसा भी नहीं था कि यहां बीजेपी ने पहली बार सरकार बनाई हो। पहले भी कई बार भारतीय जनता पार्टी राजस्थान प्रदेश कि सत्ता में रही है, और कई बार पूरे 5 वर्ष तक प्रदेश कि जनता कि सेवा करने का अवसर भारतीय जनता पार्टी को राजस्थान में मिल चुका है।
भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक श्रीं भेरो सिंह शेखावत वर्षों तक भारतीय जनता पार्टी के विधायक दल के नेता के रुप में चुने गए और प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। भेरो सिंह शेखावत के बाद वसुंधरा राजे सिंधिया भी 2 कार्यकाल (10 वर्ष) भारतीय जनता पार्टी से राजस्थान कि मुख्यमंत्री रही। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के पास राजस्थान में अनुभवी नेताओ कि कोई कमी नहीं है, इसके बावजूद भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री के रूप में चुने जाने के कुछ कारण इस प्रकार हैं -
- भजनलाल शर्मा का जुड़ाव भारतीय जनता पार्टी के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से भी रहा है, ये आरएसएस के करीबी है।
- इनका संबंध भारतीय जनता पार्टी के किसी खेमे से नहीं है। खासतौर से राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले वसुंधरा राजे और गजेंद्र सिंह शेखावत खेमे में बंटी हुई थी। इसी खेमेबाजी का लाभ इन्हें मिला और इन्हें निष्पक्ष और खेमेबाजी से दूर रहे नेता के रूप में मुख्यमंत्री के रुप में चुन लिया गया।
- भजनलाल शर्मा ब्राह्मण जाति के नेता है, लेकिन इनकी राजस्थान में कभी ब्राह्मण जाति के नेता के तौर पर पहचान नहीं रही है। ऐसे में इन्हें जातीय राजनीति को साधने के लिए अवसर दिया ताकि कोई जाति के नेता नाराज ना हो।
- इनका अपना बड़ा वजूद नहीं है, ऐसे में केंद्र और राज्य के बीच बेहतर तालमेल स्थापित किया जाना ज्यादा कठिन नहीं है। इसे आप कह सकते हैं कि केंद्रीय नेतृत्व से मिलने वाले दिशानिर्देश बिना ना-नुकुर किए मुस्कराते हुए स्वीकार कर लेंगे।
- भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश में ओबीसी तो छत्तीसगढ़ में एसटी को मुख्यमंत्री के रुप में चुना तो ऐसे में राजस्थान में ब्राह्मण चेहरे को सामने लाकर देशभर के ब्राह्मण वोट को साधने का कार्य किया।
- बेदाग छवि ने भी इनके लिए सकारात्मक रुप से कार्य किया, बर्षों संगठन में कार्य करने के बावजूद किसी प्रकार का दाग नहीं होने के कारण भारतीय जनता पार्टी देशभर में ऐसे नेताओं को सामने रखकर भ्रष्टाचार के खिलाफ बेहतर तरीके से लड़ सकती और विपक्ष के सवालों का भी माकूल जबाब दे सकती है।
- लोकसभा चुनाव में सवर्ण वोट साधने में आसानी बनी रहेगी, और राजस्थान में जाट राजपूत वोटों का ध्रुवीकरण नहीं होगा।
राजस्थान में हमेशा से ही जाट और राजपूत जातिय राजनीति हावी रही है। राजपूत नेता को नेतृत्व दिए जाने से जाट नाराज हो जाते हैं और जाट को नेतृत्व देने से राजपूत नाराज हो जाते हैं। ऐसे में कांग्रेस और बीजेपी ऐसे नेता कि तलाश में रहती है जो दोनों में सामंजस्य स्थापित कर सके। भजनलाल शर्मा ब्राह्मण जाति के निष्पक्ष नेता होने के साथ ही इनकी जाति भी प्रदेश की राजनीति में निष्पक्ष मानी जाती है, इसी का इन्हें लाभ प्राप्त हुआ।
इस बार राजस्थान का चुनाव जातिय राजनीति से इतर रहा -
दिसंबर, 2023 में राजस्थान में संपन्न हुआ विधानसभा चुनाव जातिय राजनीति के लिए काल साबित हुआ। खासतौर से जाट और राजपूत राजनीति के लिए। बीजेपी में जाट नेता के तौर पर स्थापित सतीश पूनिया (आमेर विधानसभा क्षेत्र से) अपना विधानसभा चुनाव हार गए तो वही बीजेपी में राजपूत नेता के रूप में स्थापित राजेंद्र राठौड़ (तारा नगर, चूरू) से अपना विधानसभा चुनाव हार गए।
इतना ही नहीं जाट राजनीति के तौर पर राजस्थान में बनी नई पार्टी 'राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक पार्टी' महज एक सीट जीतने में कामयाब रही। आरएलपी पिछले चुनाव (दिसंबर, 2018) में 3 सीट जीतने में कामयाब रही थी। इस बार इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष हनुमान बेनीवाल ही जीत पाए। वहीं कांग्रेस कि बात कि जाए तो जातीय समीकरण साधने के लिए अशोक गहलोत सरकार में बनाए गए कई मंत्री अपनी विधानसभा सीट ही गँवा दिए।
कुछ नया करना था बीजेपी को -
बीजेपी कि पहचान बेबाक निर्णय लेने के तौर पर है। पार्टी कभी किसी अकेले व्यक्ति को प्रदेश में हावी नहीं होने देती। साथ ही पार्टी प्रदेश के वोटर कि राय को भी महत्व देती है। बीजेपी ने प्रदेश में पिछला चुनाव (2018) वसुंधरा राजे के चेहरे पर लड़ा और हार का मुँह देखना पड़ा था। ऐसे में इस बार चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा। प्रदेश कि जनता खासतौर से भारतीय जनता पार्टी के मतदाताओं को उम्मीद थी कि पार्टी किसी नए चेहरे को मुख्यमंत्री के रूप में आगे लाएगी, जो बेबाक निर्णय ले सके और केंद्र के साथ सामंजस्य स्थापित कर प्रदेश को नई ऊंचाइयों पर ले जा सके।
ऐसे में मतदाताओं कि भावनाओं का सम्मान करते हुए भारतीय जनता पार्टी ने भजनलाल शर्मा को निष्पक्ष नेता के रुप में मुख्यमंत्री का कार्यभार दिया। प्रदेश कि जनता इस बार अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे के गठबंधन को भी समाप्त करने के लिए उत्साहित थी उन्होंने बीजेपी को इसलिए ही मत दिया कि अगर बीजेपी कि सरकार बनी तो नया मुख्यमंत्री प्रदेश को मिलेगा। बीजेपी ने मतदाताओं की राय का सम्मान करते हुए प्रदेश को नया मुख्यमंत्री दिया। पिछले 25 वर्षों से अशोक गहलोत और वसुंधरा के काल कि समाप्ति कर दी।
कानून व्यवस्था कि चुनौती -
वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री के कार्यकाल के दौरान प्रदेश कि कानून व्यवस्था चुनौती रही। दोनों कि सरकारे पेपर लीक, खनन घोटाला और अफसरशाही पर लगाम लगाने में कामयाब नहीं रही। घोटालेबाजों पर कठोर कार्रवाई करने में हिचकिचाते दिखे। महिला अत्याचार को रोकने के लिए भी कोई सकारात्मक कदम नहीं ले सकीं थी पूर्व सरकारे और उनका मुखिया। ऐसे में दोनों को ही बेदम मुख्यमंत्री के रुप में पहचान मिली हुई थी। दोनों के ही सरकारों में रहे मंत्रियों पर घोटालों के आरोप विरोधी हमेशा से लगाते रहे, लेकिन कभी किसी ने कारवाई करने कि जहमत नहीं उठाई।
बीजेपी का नेतृत्व एक ऐसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री के रुप में आगे लाने के लिए संकल्पबद्ध था जो बिगड़ती कानून व्यवस्था को सम्भाल सके। कड़क निर्णय के साथ कड़क कारवाई के आदेश दे सके। उसका अपना कोई ऐसा इतिहास ना हो जो लोग सामने रखकर पूछे इस पर निर्णय कब लिया जाएगा। ऐसे में भजनलाल शर्मा से उपयुक्त कोई व्यक्ति हो ही नहीं सकता जो अपनी बेदाग छवि का उपयोग कर प्रदेश कि बिगड़ी कानून व्यवस्था को पुनः सम्भाल सके।
पिछले 25 बर्षों से राजस्थान में कोई भी सत्ताधारी दल पुनः सत्ता में नहीं आया, ऐसे में भारतीय जनता पार्टी ने चेहरे का बदलाव कर पुनः सत्ता हासिल करने के लिए अपनी चाल चली है। लेकिन इसका परिणाम तो आगामी विधानसभा चुनाव में 2028 को ही देखने को मिलेगा कि पार्टी पुनः सत्ता हासिल करने में कामयाब रहेगी या नहीं। इसके साथ ही पार्टी ने प्रदेश के विधायकों, संघठन के नेताओ को भी स्पष्ट संदेश दिया है कि व्यक्ति पूजा से कोई कामयाबी हासिल नहीं होगी। आपको प्रदेश कि जनता और पार्टी के संघठन कि सेवा करनी होगी।
उपर्युक्त सभी कारणों के चलते पहली बार निर्वाचित हुए भजनलाल शर्मा पूर्व मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुनराम मेघवाल, अश्विनी वैष्णव कैलाश चौधरी, प्रदेश अध्यक्ष सी पी जोशी पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौर राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा के साथ ही प्रदेश के दिग्गज नेता ओम प्रकाश माथुर, भूपेंद्र यादव, दिया कुमारी और बाबा बालक नाथ को पछाड़ कर मुख्यमंत्री के रुप में चुने गए।
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