आजकल सरकारी नौकरी पाने का क्रेज भारतीय युवाओं में चरम पर है। युवा वर्ग दिन रात कबूतरखाने जैसे कमरों के खिड़की दरवाजे बंद कर या शहरो में लाइब्रेरी में 2*2 की जगह वाली टेबल कुर्सी पर किताबों में नजर गड़ाए अपना भविष्य तलाश रहा है, सरकारी नौकरी में।
सरकारी नौकरी पाने का सपना अपने दिलों में संजोए हज़ारों नहीं बल्कि लाखो कि संख्या में दसवीं, बाहरवी, स्नातक और परास्नातक युवक युवतियाँ, अपने घरों से दूर कोचिंग संस्थानों के आसपास किराये के कमरों में डेरा डाले हुए हैं। ये युवक युवतियां दूर-दराज के गांवों के साथ शहरों में रहने वाले परिवारों के है।
कोचिंग क्या होती है?
कोचिंग से तात्पर्य सीखने कि प्रक्रिया से है, जिसमें एक या एक अधिक व्यक्तियों का सामूह किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के सामूह को प्रशिक्षण देकर व्यक्तिगत, पेशेवर अथवा अन्य निश्चित लक्ष्य कि प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है। यह दो समूह या लोगों के बीच होने वाली प्रक्रिया है जिसमें सिखाने वाला अथवा प्रशिक्षण देने का कार्य करने वाला व्यक्ति प्रशिक्षक और सिखने वाला प्रशिक्षु कहलाता है। यह प्रकिया तब तक जारी रहती है, जब तक निर्धारित लक्ष्यों कि प्राप्ति ना हो जाएं।
आजकल बढ़ते हुए सरकारी नौकरी के चलन को देखते हुए बाजारों में कबूतरखाने जैसे कमरों में सैंकड़ो विद्यार्थियों को बिठाकर तो कहीं इन्टरनेट के मकड़जाल पर आँखों के सामने कंप्यूटर, लैपटॉप और मोबाइल लेकर दूर से पढ़ने लिखने के एप्प के माध्यम से कोचिंग लेते नजर आ रहे हैं।
सही मायने में देखा जाए तो कोचिंग स्वयँ ही एक परीक्षा है, लेने से पहले दिमाग में उपजे कई सवालों के जबाब देने के बाद इसे प्रशिक्षण हेतु चयनित कर इससे जुड़ा जाता है। इसके बाद घर से दूर रहना और खाने-पीने की व्यवस्था करना ही कोचिंग का पहला चरण है, इसके बाद शुरु होती है, असली कोचिंग, लेकिन कई महारथी तो इसी पहले चरण में ही धराशायी हो जाते हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं कि कोचिंग को मुख्यतः दो भागों में बांटा जा सकता है, जो है - ऑफलाइन कोचिंग और ऑनलाइन कोचिंग।
ऑफलाइन कोचिंग -
प्रतिस्पर्धा कि दुनिया मे प्रतियोगी परीक्षाओं कि तैयारी करने वाले युवक युवतियों को घरों से दूर अजनबी शहरों और अनजानी गलियाँ में प्रतिस्पर्धा को जीतने के इरादों को मजबूत करने के लिए कोचिंग संस्थानों कि भीड़ में शामिल हो जाते है। कोचिंग संस्थानों द्वारा अपने प्रचार के लिये शहरभर में लगे पूर्व परीक्षाओं में सफल रहे प्रतिभागियों के चेहरों और रैंक क्रमांक के होर्डिंग इन्हें कोचिंग कक्षाओं के कबूतरखाने के योग्य कमरों कि ओर खिंच इन्हें अपना दिन ऐसे दम घुटने योग्य कमरों में व्यतित करने को मजबूर करते हैं। तो दूसरी तरफ अखबारों के पहले पन्ने पर छापे गए विज्ञापनों के शब्द, हमारे.... इतने विद्यार्थी चयनित! जैसे लुभावने विज्ञापन भी इन प्रतिभागियों के स्वयं पढ़ने के आत्मविश्वास को कमजोर कर कोचिंग संस्थानों में हाज़री देने को मजबूर कर रहा है। हालाँकि इसे आप दो रूप में बांट सकते हैं।
ऐसे में अधिकांश प्रतिभागी परंपरागत कोचिंग के ऑफलाइन तरीके से कोचिंग लेने अनजाने शहरो कि अजनबी गलियों में अपनी कार्यक्षमता और विवेक को समाप्त कर 4*4 फीट साइज के बोर्ड को तांकने को मजबूर हो रहे हैं।
ऑनलाइन कोचिंग -
जब परंपरागत कक्षा में शिक्षक के साथ बैठकर पढ़ने कि बजाय दूर से इन्टरनेट के माध्यम से आभासी (virtually) तरीके से जुड़कर पढ़ने कि की प्रक्रिया को ऑनलाइन कोचिंग कहा जाता है। आजकल तकनीक कि इस दुनियां में ऑफलाइन के साथ ऑनलाइन कोचिंग ने भी अपना स्थान बना लिया है। मोबाइल और लैपटॉप पर इन्टरनेट कनेक्शन के साथ ऑनलाइन कोचिंग लेने वालों की संख्या में उत्तरोत्तर प्रगति हो रही है। आजकल दूर-दराज के प्रतियोगी ऑनलाइन कोचिंग के जरिए कहीं से भी शामिल हो जाते हैं कोचिंग कक्षाओं में।
इन्टरनेट कि बढ़ती तीव्रता ने वर्तमान में एक भी प्रतियोगी को ऐसा नहीं छोड़ा, जो कहीं से कोचिंग ना ले रहा हो। संक्षिप्त में कहें तो कोचिंग आवश्यकता से अधिक फैशन और मजबूरी हो गई है, प्रतियोगियों के लिए। अगर कोई प्रतियोगी ऑनलाइन या ऑफलाइन कोचिंग ना ले रहा है तो उसको दूसरे प्रतियोगियों के साथ नोट्स शेयर करने और हासिल करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, इन्हीं परिस्थितियों का लाभ पाने के लिए उच्च श्रेणी के आत्मविश्वास से लबालब प्रतियोगी भी कोचिंग कि भीड़ का हिस्सा बन रहे हैं।
कोचिंग के नुकसान -
कोचिंग कोई सफलता कि चिढी नहीं है, य़ह एक जरिया हो गया है नोट्स पाने का और परीक्षा कैसे देनी है जानने का मात्र। ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि पिछले कुछ वर्षो के परिणामों पर अगर गौर किया जाए तो अधिकांश परीक्षाओं में निर्धारित संख्या में प्रतियोगी उत्तीर्ण नहीं हुए हैं। वैसे ही दूसरे पहलू देखे तो पता चलता है कि पिछले कुछ वर्षो में प्रतिभागी पहले कि अपेक्षा में कम उत्तीर्ण हो रहे हैं।
अगर हम SSC CGL 2023 परीक्षा के के परिणाम पर गौर करे पता चलता है कि अब तक के सबसे कम प्रतियोगी इस वर्ष में मुख्य परीक्षा के लिए योग्य पाए गए (हालांकि फॉर्म अब तक के सबसे ज्यादा भरे गए), यही हाल विभिन्न राज्यों के भर्ती आयोगों में देखने को मिले है। कई राज्यों में परीक्षाओं में एक भी अभ्यर्थी लिखित परीक्षा को उत्तीर्ण करने में सक्षम नहीं रहा।
अगर आप राजस्थान लोक सेवा आयोग (RPSC) के गणित वरिष्ठ अध्यापक भर्ती 2022 कि बात करे तो विज्ञापित कुल 1613 पद के लिए आयोजित हुई परीक्षा में हज़ारों प्रतिभागी बैठे किन्तु 918 ही उत्तीर्ण हुए। प्रतिवर्ष हज़ारों गणित के प्रतिभागी कोचिंग लेते हैं, लेकिन सफल नहीं हुए ऐसे में कोचिंग का क्या फायदा?
प्रतियोगिता परीक्षाओं के इस दौर में, ऐसा हाल पहले कभी देखने को नहीं मिला। कभी ऐसा भी नहीं हुआ कि पद की योग्यता कि शिक्षा रखने वाले हज़ारों लाखो प्रतियोगियों में से कुछ सैकड़ा अभ्यर्थी लिखित परीक्षा उत्तीर्ण करने में असफल रहे, इनके कारणों पर गौर किया जाए तो इसका कारण कोचिंग संस्थान ही है।
कोचिंग संस्थान - अभिशाप कारण
- कोचिंग संस्थान के शिक्षक दो मिनट कि विषय वस्तु 3 घंटे में पूरी कर, समय कि बर्बादी करते हैं।
- विषय वस्तु के अतिरिक्त राजनीतिक और अन्य सामाजिक मुद्दो पर अधिक फोकस।
- कभी-कभी शिक्षक और कोचीन संस्थान एक दूसरे से आपस में प्रतियोगिता कर देते हैं, जिसके चलते ऐसी विषय वस्तु सम्मिलित कर देते हैं, जो विद्यार्थियों कि समझ से परे हो जाती है।
- प्रतियोगी कोचिंग के चलते प्रतियोगियों के आत्मविश्वास में कमी आई है, जिसके कारण दूसरी किताबे पढ़ना बंद कर दिया जिसका असर परिणामों में भी देखने को मिलता है।
- एक निश्चित परीक्षा पर फोकस के चलते अन्य परीक्षा पर ध्यान नहीं देना, जिससे कम पद वाली भर्ती में शून्य परिणाम आना।
- आजकल ऑडियो और वीडियो से पढ़ाई होने के कारण गणित जैसे विषय के लिए अभ्यास समाप्त हो गया है।
- भाषा संबंधी तथ्यों को समझना और सही वर्तनी लिखना मुश्किल हो गया है, क्योंकि अधिकांश कोचिंग अध्यापक शब्दों को छोटे रुप में लिख देते हैं।
इसके अलावा कोचिंग संस्थान के जरिए से ही पेपर आउट से लेकर परीक्षा में दूसरा प्रतियोगी बिठा देने जैसी हरकत सामने आने लगी है, जिसके कारण कई परीक्षा समय से ना पूरी हो पाती है और ना ही परिणाम जारी होता है। लंबे समय तक भर्ती के चलने के कारण अभ्यर्थी खुद ही प्रतियोगिता से बाहर होने लगे हैं।
प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कोचिंग अभिशाप -
प्रतियोगी परीक्षा के लिए कोचिंग युवाओं के लिए एक अभिशाप बन गया है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उन्हें मजबूरी के साथ कोचिंग जाना पड़ रहा है। उन्हें लगता है कि अगर कोचिंग नहीं गए तो पढ़ाई नहीं होगी, दूसरों से पीछे रह जाएंगे। ऐसे में अपना विवेक और रचनात्मकता को दांव पर लगा कोचिंग के कबूतरखानों में अपना अमूल्य समय व्यतित कर रहे हैं।
सरकार प्रतियोगी परीक्षा से सर्वश्रेष्ठ अभ्यर्थी को लेने का प्रयास करती है, लेकिन बर्षों कि कोचिंग के बाद विवेकहीन, शून्य रचनात्मक, दुनिया कि समझ ना रखने वाले और भाव शून्य लोग किताबे रट कर सरकारी नौकरी में आ रहे हैं, जिससे सरकारी क्षेत्र कि सेवा कि गुणवत्ता और कार्य निष्पादन कि कमी से जुझना पड़ रहा है। आजकल सरकारी विभाग में ऐसे कर्मचारी प्रतियोगी परीक्षा से पहुंच जाते हैं, जिन्हें उन्हें दिए जाने वाले कार्य की समझ तक नहीं होती है। ऐसे में सरकार को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है, इससे समय, संसाधन और कार्य सभी का नुकसान हो रहा है।
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