केर राजस्थान में पाया जाने वाला एक झाड़ीनुमा पेड़ है। केर के पेड़ पर जो फल लगते हैं, उन्हे केरिया कहा जाता है। केर के फलों का स्वाद कड़वा होता है, इतना कड़वा जितना शायद कड़वाहट करेले में भी नहीं होता है। इसी कड़वाहट के कारण इसका उपयोग है और बाजार में महँगा दाम भी। इस पेड़ को केर, कैर, करिर और करिल आदि नामों से जाना जाता है।
केर के पेड़ पर मार्च और अगस्त के महीने में (वर्ष में दो बार) पुष्प लगते हैं, इसके बाद टहनियों पर केर लगते हैं। इन्हें राजस्थान की बेरी कहा जाता है। केर हरे रंग के होते हैं जिनका स्वाद बहुत कड़वा होता है, जिन्हें कच्चे तोड़कर सुखाने से काले हो जाते हैं। अगर इन्हें नहीं तोड़ा जाए तो पकने पर गुलाबी लाल रंग के होकर मीठे हो जाते हैं। केर के फल की छाल सांगरी जितनी मोटी और अंदर 15-20 बीज होते हैं। एक पक्के हुए केर के फल का वजन 10-15 ग्राम होता है। इसके कच्चे फल केरिया की सब्ज़ी और अचार बनता है।
वैज्ञानिक वर्गीकरण -
तथ्य | स्पष्टीकरण |
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जगत | पादप (plant) |
वंश | केपरिस (Capparis) |
जाति | डेसिडुआ (Decidua) |
वैज्ञानिक नाम | केपरिस डेसिडुआ (Capparis Decidua) |
कैर का पेड़ -
केर एक झाड़ीनुमा पेड़ है, जो मरुस्थल में पाया जाता है। शुष्क और अर्द्ध शुष्क जलवायु में पाए जाने वाले इस पेड़ की ऊंचाई महज 3-5 मीटर की होती है। यह पूर्णरूपेण पर्णपाती (गर्मी के मौसम में सभी पत्ते गिर जाते हैं) पेड़ है। इस पर बरसात के मौसम में छोटी-छोटी भूरी (हल्की हरे रंग की काले रंग का आभास लिए) पत्तियाँ देखने को मिलती है, जो सर्दी में नाममात्र की रह जाती है और गर्मी आते-आते सभी पत्तियाँ झड़ जाती है। गर्मी की ऋतु में इसकी टहनियां छपटी होकर पत्तियों का कार्यभार संभाल लेती है, और प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा टहनियां ही भोजन बनाने लगती है। टहनियों द्वारा पत्ती के रुप में कार्य करने के कारण ही यह शुष्क और उच्च शुष्क मरूस्थल के लिए उपयोगी वानस्पतिक पेड़ों में से एक है।
केर अफ्रीका, मध्य और दक्षिण एशिया के मरुस्थल में पाया जाता है। केर के पेड़ की ऊंचाई मध्यम होने के कारण इसकी लकड़ी फर्निचर के लिए उपयुक्त नहीं होती है। किंतु केर की लकड़ी मजबूत बहुत अधिक होती है और कड़वे स्वाद की होने के कारण इस पर कीड़े भी नहीं लगते हैं। इसे सामान्यतया कृषि के कार्य के लिए उपयोग लिए जाने वाले औजारों के हत्थे के अतिरिक्त राजस्थान की झोंपड़ी बनाने, पशु बाड़ा बनाने के साथ ही जल संग्रहण के लिए बनाए जाने वाले टांके को ढकने के काम में लिया जाता है। केर के पेड़ सामन्यतः खाली ओरण भूमि में पाए जाते हैं जो पारिस्थितिकि तंत्र को मजबूत कर जैव विविधता के संरक्षण को मजबूती देते हैं।
केरिया की सब्जी
केर के पेड़ पर वर्ष में दो बार मई और अक्तूबर में दो बार फल 'केरिया' लगता है। जैसा कि पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि केर बहुत कड़वे होते हैं। इन्हें केर के पेड़ से तोड़कर नमक वाले पानी में उबालकर दो दिन तक रखा जाता है, सुखाने के लिए। अगर हरे केर की सब्जी बनानी है तो इसे खट्टी छाछ में डालकर रात को रख दिया जाता है और सवेरे इनकी सब्जी बनाई जा सकती हैं। हालांकि किसी को मधुमेह है तो उन्हें बिना मीठा किए सेवन ही करना चाहिए जो उनके लिए बेहतर है। अगर आपको कडवा खाना है तो भी इसे सीधा बनाये अन्यथा सांगरी के साथ मिलाकर ही सब्जी बनाये जिससे इसका स्वाद मिल जाए और ज्यादा कड़वी ना लगे।
सूखे केर की सब्ज़ी बना रहे हैं तो पहले यह जरूर देख लीजिये कि कड़वाहट कितनी है? अगर कड़वाहट अधिक है तो साथ क्या मिलाना है? सिर्फ सांगरी या कुमटिया के बीज और गुंदा भी। अन्यथा आप पंचकुटा भी बना सकते हैं। यूं आप केर की कड़ी भी बना सकते हैं और सब्ज़ी भी। सब्जी बनाने के लिए शाम को केर भिगोकर रख दीजिए। सवेरे सब्जी बनाने के पहले निम्न सामग्री तैयार कर लीजिए -
सामग्री (प्रति 50 ग्राम केर) | मात्रा |
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तेल | 1-2 टेबल स्पून |
हल्दी पाउडर | आधा छोटा चम्मच |
जीरा | आधा छोटा चम्मच |
धनिया | 1 छोटी चम्मच |
मिर्ची पाउडर | 1 छोटी चम्मच |
अमचूर पाउडर | आधा छोटा चम्मच |
हींग | थोड़ी सी (आधी) |
सौंफ | 1 चम्मच |
अजवाइन | आधा छोटा चम्मच |
नमक | स्वादानुसार |
सांगरी | 50 ग्राम |
उपर्युक्त सामग्री को तैयार करने के बाद आप एक कड़ाई या तपेली अथवा भगोना जो भी बर्तन आपके पास है सब्जी बनाने के लिए उसमें तेल डालकर स्टोव पर रखे जब तेल गर्म हो जाए तब मसालों का चमका दे दीजिए। जब मसाले पक जाए तो केर और सांगरी भी डाल दीजिए। अब इसे पांच मिनट पकने के लिए स्टोव पर रखे। पकने के बाद कड़ाई को स्टोव से निचे रखकर इसमे दही डाल दीजिए, ताकि कड़वाहट थोड़ी कम हो जाए। अगर कड़वी सब्जी खानी है तो दही ना डाले। अब तैयार हुई सब्जी को आप रोटी के साथ खा सकते हैं।
कब और कहाँ मिलते हैं, केरिया?
केर के पेड़ पर केरिया साल में दो बार लगता है। इन्हें तोड़ने वाले लोग सुखाकर बाजार में बेचते हैं। आप चाहे तो इसे पेड़ से तोड़कर भी ला सकते हैं और चाहे तो बाजार से खरीदकर भी। सूखे केर बाजार में सूखे मेवा की दुकान पर मिलते हैं। होली के बाद पंचकुटा की मांग बढ़ जाने से केरिया किराणे की दुकान पर भी आसानी से मिल जाते हैं। इन्हें आप किराणे की दुकान से खरीदकर लंबे समय तक संरक्षित भी कर सकते हैं।
केर साल में दो बार लगने के कारण आप हरे केर भी सब्जियों के बाजार से खरीद सकते हैं, किन्तु ध्यान दे हरे केर बाजार में केवल मई महिने में मिलते हैं। अक्तूबर के महीने में बहुत ही कम केर लगते हैं, ऐसे में ये बाजार तक नहीं पहुंचते हैं। आप बाजार से हरे केर खरीदकर इन्हें घर पर सूखाकर भी सालभर सब्ज़ी बनाने के उपयोग में ले सकते हैं। इसके लिए आप इन्हें नमक वाले पानी उबालकर सूखा दीजिए और फिर साल-भर सब्ज़ी बनाने के लिए काम में लेते रहिए।
केरिया के सेवन से फायदा -
केर के पेड़ पर सामन्यतः मार्च के महीने के अंत में फूल लगना शुरु होते ही इस समय केर के पेड़ पूरी तरह से गुलाबी रंग के फ़ूलों से आच्छादित हो जाते हैं। अप्रैल के महीने से केर लगना शुरु हो जाते हैं, मई में केर पूरी तरह से केरियो से लद जाती है। उस समय महिलाएं और बच्चे केर तोड़कर लाते हैं सब्ज़ी बनाने के लिए और साथ ही अतिरिक्त केर सूखाकर बाजार में बेचे जाते हैं। इसके कई फायदे होने के कारण इनकी सब्जी बनाने के अतिरिक्त इसे बाजार में बेचा जाता है, जहाँ इसे आयुर्वेदिक दवा बनाने के लिए भी उपयोग में लिया जाता है। ऐसे में हम कह सकते हैं कि पोषण से भरपूर इस कड़वे फल के सेवन के स्वस्थ्य के लिए कई फायदे हैं। इस फल में कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन ए होता है तथा एंटी-ऑक्सीडेंट भी इसमे पाया जाता, जिसके कारण इसका महत्व और बढ़ जाता है। आइए चर्चा करते हैं, कुछ ऐसे ही फायदों की -
- हड्डियों को मजबूत करना - केरिया में उपलब्ध कैल्शियम के कारण यह हड्डियों को मजबूती प्रदान करता है, इसके लिए इसकी सब्ज़ी का नियमित उपयोग करे।
- मधुमेह से राहत - सब्जी खाने के अतिरिक्त सूखे केर के फल का चूर्ण बनाकर सुबह खाली पेट लेने से मधुमेह के रोगियों को राहत मिलती है।
- कब्ज से राहत - केर के वृक्ष की छाल को पीसकर कर रात को सोते समय चूर्ण बनाकर लेने से कब्ज से राहत मिलती है।
- कफ और खांसी से राहत - केर के डंटल का चूर्ण बनाकर लेने से कफ और खांसी से राहत मिलती है।
- मलेरिया से राहत - केर खाने वाले व्यक्ति को मलेरिया होने का खतरा कम हो जाता है। कुछ लोग मलेरिया से बचने के लिए नीम के कड़वे पत्ते इसी कारण खाते हैं।
- अल्सर - केर के फल का सेवन करने या छाल का चूर्ण बनाकर लेप करने से अल्सर समाप्त हो जाता है।
- छाले - मुँह में छाले होने पर इसकी कोमल पत्तियाँ और कोपलों को पीसकर खाने या लेप करने से छालों से राहत मिलती है।
- गर्मी से राहत - राजस्थान समेत उष्ण कटिबद्ध क्षेत्र के पेड़ के फल गर्मी से राहत देने में अनोखी भूमिका निभाते हैं इस कारण केर भी अपनी ठंडी तासीर के कारण सेवन करने वालों को गर्मी से राहत प्रदान करते हैं।
- बिच्छू का डंक - बिच्छू द्वारा द्वारा डंक मारे जाने के बाद इसकी जड़ को पीसकर लगाने से दर्द से राहत मिलती है और सूजन कम हो जाती है।
केर के फल मे कड़वाहट होने के कारण मधुमेह से राहत मिलती इसके साथ ही अतरिक्त गुणों के कारण एसिडिटी, जोड़ों का दर्द, गठिया, बदहजमी, सूजन, दमा दांत दर्द, दस्त और कब्ज इत्यादि से राहत मिलती है। इसके अतिरिक्त इसमे एंटी फंगस, जीवाणुरोधी और सूजन रोधी गुण पाए जाते हैं।
प्राकृतिक विविधता के संरक्षण में केर का योगदान -
भारत सरकार के साथ ही यूएनओ भी जैव-विविधता को बचाने के लिए भरसक प्रयास कर रहा है। मरूस्थलीय क्षेत्रो की जैव-विविधता को बचाने में केर का अतुलनीय योगदान है। एकतरफ़ यह सूखे क्षेत्र में भी बिन पानी जिवित रह सकती है तो दूसरा वन्यजीवों को आश्रय देकर उन्हें भी जिवित रखना। भीषण गर्मी के दिनों में जब अच्छे भले पेड़ धराशायी होने लगते हैं तब यह अपनी अनोखी प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को जन्म दे बिन पत्तों के डाली द्वारा पत्तों के रूप में कार्य कर खुद को जिवित रख लेती है।
केर के पेड़ कंटीले होते हैं, इनकी डालियों पर भूरे धूसर रंग से छोटे-छोटे कांटे होते हैं और टहनियां जमीन तक फैली हुई होती है। केर वृक्ष के साथ झाड़ी भी है, जिसके कारण कई वन्य-जीव इसमे शरण लेते हैं उनमे खरगोश, लोमड़ी, गो, तिलहरी, हिरन, मोर, रोजड़ा और विलुप्ति की कगार पर राजस्थान का राज्य पक्षी गोडावण आदि। जब गर्मी के दिनों में खाने का वन्यजीवों के सामने संकट आ जाता है तब केर उन्हें खाने के लिए भी भोजन देता है।
केर और किसान -
केर का वृक्ष जमीन पर अधिक फैले हुए होते हैं, ऐसे में केर खेतों में कम ही पायी जाती है। खेत को कृषि योग्य बनाने के लिए केर के पेड़ को काट दिया जाता है, किंतु ओरण और खाली भूमि पर केर के अधिक पेड़ पाए जाते हैं। कुछ पेड़ खेतों की मेड़ पर मृदा अपरदन को रोकने के लिए लगाए जाते हैं। मृदा के कटाव को रोकने में इनका सर्वश्रेष्ठ योगदान होता है, क्योंकि इनकी टहनियों का फैलाव जमीन तक होता है।
केर एक तरफ बिन जल के भी नहीं सूखती है जिसके कारण पालतू पशुओं के लिए उपयुक्त चारा बनती है तो दूसरी ओर इसके फल यानी केरिया को बाजार में 2000 रुपये प्रति किलो तक (बहुत छोटे, कच्चे और सूखने के बाद काले) बेचे जा सकते हैं, जिससे आय होती है। कांटेदार टहनियों के कारण इसका खेत की रखवाली और आवारा पशुओं से सुरक्षा के लिए बाड़ बनाने के लिए उपयोग किया जा सकता है। इसकी लकड़ी राजस्थान के घर (झोंपड़ी) बनाने के साथ कृषि औजारों के हत्थे में प्रयोग ली जा सकती है। पतली लकड़ी को घरों की रसोई में ईधन के रूप में काम लिया जा सकता है।
कुल मिलाकर इस प्रकार के पेड़ किसानो को कृषि के अतिरिक्त कृषि सहायक क्रियाओं का लाभ उठाने में मदद देते हैं। आप भी अगली बार जब कभी राजस्थान आए और केर की सब्जी ना खाए, यह कैसे हो सकता है? रंग-रंगीले राजस्थान के धोरों में मीठे मोर बोलते हैं तो पंचकुटा की सब्जी में केर कड़वाहट घोलते है हुए भी मीठा असर देते हैं। यही वो खास वानस्पतिक फल और सब्जियां है जो राजस्थान को अपनी अलग पहचान दिलाती है।
आवश्यक प्रश्न -
प्रश्न: केर का वैज्ञानिक नाम क्या है?
उत्तर : केपरीस डेसीडुआ (Capparis Decidua)
प्रश्न: केर क्या होता है?
उत्तर: केर राजस्थान में पाया जाने वाला एक मरूस्थलीय वृक्ष है जिस पर केरिया लगता है।
प्रश्न: केर का भाव रेट क्या है?
उत्तर: कच्चे केर 2000 रुपये किलो तक है।
प्रश्न: केर के पक्के फल को क्या कहते हैं?
उत्तर: केर के पक्के फल को ढालू कहते हैं।
प्रश्न: केर की सब्जी खाने का मुख्य फायदा क्या है?
उत्तर: मधुमेह, कब्ज और मलेरिया से राहत।
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