वाणिज्य संकाय के विद्यार्थी हो या लेखाकार सबका काम एक ही धुरी के इर्द-गिर्द घूमता है, जो है डेबिट और क्रेडिट। ये आया इसे डेबिट करो वो गया उसे क्रेडिट करो। इस खाते से डेबिट करो उस खाते में क्रेडिट करो। इस माल की एंट्री करो। उसे पैसे दिए उसकी एंट्री करो। जो भी एंट्री हो रही है, उसका पूरा वजूद डेबिट और क्रेडिट पर टिका हुआ है। एक छोटी सी गलती और डूब गई दुकान।
वर्तमान में सभी लोगों के बैंक में खाते है। बैंक खाते से होने वाले लेनदेन के मैसेज उनके मोबाइल में आते रहते हैं। उदाहरणार्थ Dear Customer, INR 1234 Credited/ Debited to Your A/c No. XXXXX123XX. इत्यादि। ऐसे में उनकी भी उत्सुकता होती है, आखिर डेबिट औए क्रेडिट क्या होता है?
डेबिट और क्रेडिट क्या है?
डेबिट और क्रेडिट लेखांकन में उपयोग लिए जाने वाले पक्ष है। यह पक्ष निर्धारित करते हैं कि संपति का निर्माण हुआ है या दायित्व में वृद्धि। इनका उपयोग लेनदेन को रिकॉर्ड करने के लिए उपयोग इस तरीके से किए जाते हैं जिससे इस बात का निर्धारण होता है कि धन, माल, या अन्य वस्तु का आगमन हुआ है या निर्गमन। व्यक्ति विशेष से वस्तु प्राप्त हुई या दी है और लाभ हुआ है या नुकसान।
दोहरा लेखांकन प्रणाली में उपयोग लिए जाने वाले वो दो पक्ष है, जो खाते के मध्य संतुलन स्थापित करने के लिए उपयोग में लिए जाते हैं। साथ ही डेबिट और क्रेडिट संपति और दायित्व को भी उजागर करते हैं। उदाहरणार्थ अगर आप कोई दुकानदार है और कोई व्यक्ति आप से उधार सामान लेने आया है तो आप दोहरा लेखांकन मे उधार लेने वाले व्यक्ति को डेबिट और माल (सामान) को क्रेडिट में लिखेंगे या करेंगे। लेकिन जैसे ही व्यक्ति पैसे देगा तो आप उस व्यक्ति को विपरीत यानी क्रेडिट करेंगे और रुपये (नकद) को डेबिट कर डेंग। ऐसे में स्पष्ट है कि यह वो पक्ष है जो लेनदेन के प्रकार को स्पष्ट करते हैं।
डेबिट का मतलब क्या होता है?
डेबिट को हिन्दी में 'नामे' कहा जाता है। ऐसे में आप समझ सकते हैं नामे क्या होता है? अगर आपको लगा कि आपने 'नामे' ही पहली बार सुना है तो हम स्पष्ट कर देते हैं कि जब आप किसी दुकान पर कोई माल उधार खरीदते हैं तो दुकानदार कहता है कि आपके नाम लिख दूँ, यानी दुकानदार वो सामान आपके नाम लिख रहा हैं। लेखांकन की भाषा में दुकानदार ने आपको नामे किया है, क्योंकि आप सामान को पाने वाले है। आप नामे हुए हैं जिसका अर्थ यह है कि इसका आपको भुगतान करना है। दोहरा बही की दशा में भी वह आपको नामे यानी डेबिट करेगा। जिसका अर्थ है आप पाने वाले है और वो भी उधार मे। उधार इसलिए कह रहे हैं, अगर आप नकद भुगतान करते हैं तो दुकानदार ना तो कहता है आपके नामे लिखूं और ना ही लिखता है, सिर्फ बिल देता है बही में नामे नहीं लिखता है।
डेबिट लेखांकन का एक पक्ष है जो स्पष्ट करता है कि संपति में वृद्धि हुई है या दायित्व में कमी आई है। लेखा बही मे किसी वस्तु (दृश्य) के आगमन पर डेबिट पक्ष लिखकर यह स्पष्ट किया जाता है कि नई संपति (जो वस्तु आई) का सर्जन हुआ है। आप उधार खरीद रहे हैं और आपको डेबिट किया है, जिसका अर्थ यह है कि देनदार बढ़े हैं यानी एक तरीके से संपत्ति (आपसे पैसे लेने है) जो बढ़े हैं। वस्तु का स्टॉक कम हुआ है, उसे नामे यानी डेबिट नहीं किया जा सकता है।
ऐसे में स्पष्ट है कि डेबिट किसी वस्तु को उस वक्त किया जाता है, जब उसका स्टॉक बढ़ा है और किसी व्यक्ति को उस समय जब उसे प्राप्ति हुई हैं।
क्रेडिट का मतलब क्या होता है?
क्रेडिट को हिन्दी में 'जमा' कहा जाता है। जमा से तात्पर्य किसी वस्तु या नकद को जमा कर2ने से है, जिससे फर्म की सम्पति कम होती है और दायित्व बढ़ते हैं। उदाहरण के लिए जब आप किसी दुकानदार से उधार में कोई वस्तु खरीदते हैं या आपका उधारी खाता है। आप उस उधारी खाते के विरूद्ध जब दुकानदार को उधारी चुकाने के लिए भुगतान करते है तो आप कहते हैं, जमा कर दीजिए। व्यक्ति द्वारा (दुकानदार या लेखाकार) द्वारा आपकी राशि को जमा कर देने पर व्यापारी के लिए देनदारी कम होगी परिणामस्वरूप संपत्ति में कमी आएगी। जो नकद आपने दी है आप देने वाले हैं इसलिए भी आपको क्रेडिट किया जाएगा।
क्रेडिट भी डेबिट की भांति दोहरा लेखा प्रणाली का एक पक्ष है। क्रेडिट जमाओं को दर्शाता है जिससे फर्म की संपति में कमी और दायित्व में वृद्धि होती है। क्रेडिट दोहरा लेखा प्रणाली में दायीं ओर का पक्ष होता है।
डेबिट और क्रेडिट का नियम क्या है?
इतने समय से आप यह सोच रहे होंगे की डेबिट और क्रेडिट दो पक्ष है जो संपति के घटने या बढ़ने का जिक्र करते हैं। नामे और जमा किसी को किस प्रकार से किया जाता है। आपको बता दे कि दोहरा लेखा प्रणाली एक वैज्ञानिक लेखा प्रणाली है, जिसके निश्चित नियम और सिद्धांत है। नियमो का पालन करने पर ही सही लेखांकन संभव है। व्यापार में किए जाने वाले प्रत्येक आर्थिक व्यवहार (transactions) के लिए एक एंट्री दर्ज की जाती है। एंट्री दर्ज करते समय डेबिट और क्रेडिट का ध्यान रखना बहुत महत्वपूर्ण होता है। गलत व्यवहार अथवा गलत पक्ष में किसी तथ्य को दर्ज कर देने का अर्थ है कि आपने लेनदार को देनदार बना दिया और देनदार को लेनदार। ऐसे में कुछ ही दिनों में व्यापार का दिवाला निकाल देने जैसा है। ऐसे में गलती से बचने के लिए लेखाकार द्वारा कुछ वैज्ञानिक नियमो और सिद्धांतो का पालन किया जाता है, इन्हें समझने से पहले खातों को समझे -
खातों के प्रकार -
लेखांकन में सभी आर्थिक व्यवहार दर्ज करने के लिए खातों को तीन भागों में विभाजित किया गया है। आइए इन्हें समझते हैं -
- व्यक्तिगत खाता (Personal Account) - ऐसे खाते को व्यक्ति विशेष का प्रतिनिधित्व करते हैं, व्यक्तिगत खाते कहलाते हैं। यहां व्यक्ति का अर्थ प्राकृतिक व्यक्ति और कृत्रिम व्यक्ति दोनों प्रकार के व्यक्ति शामिल हैं। प्राकृतिक व्यक्ति जैसे राम, मोहन, नरेश आदि। कृत्रिम व्यक्ति से अर्थ कम्पनी, व्यवसाय और संस्था। कृत्रिम व्यक्ति भी लेखांकन में प्राकृतिक व्यक्ति के समान ही माने जाएंगे जैसे एसबीआई बैंक को एक व्यक्ति के तौर पर माना जाता है।
- वास्तविक खाता (Real Account) - ऐसे खाते जो दृश्यमान वस्तु का प्रतिनिधित्व करते हैं, व्यक्तिगत खाते कहलाते हैं। उदाहरण के तौर पर वस्तु, नकद, फर्निचर और माल आदि दृश्यमान (दिखने वाली वस्तु जिनका स्वरुप होता है और चित्र खिंचा जा सकता है) वस्तुएं है। ऐसी वस्तुओं को वास्तविक खतों में दर्ज़ किया जाता है।
- नाममात्र खाता (Nominal Account) - ऐसे खाते जो दृश्यमान वस्तु की बजाय अदृश्य वस्तु का प्रतिनिधित्व करे किन्तु व्यवहार से लाभ हानि हो, उन्हें नाममात्र खाता कहा जाता है। उदाहरणार्थ कमिशन, वेतन और किराया सभी दृश्यमान नहीं (ना फोटो ली जा सकती है और ना ही देखा जा सकता है) है, किंतु सभी का मौद्रिक भुगतान करना होता है। इस मौद्रिक भुगतान से लाभ हानि होती है।
जर्नल एंट्री करने के लिए सबसे पहले इसे सीखा जाता है, खातों की पहचान के अभाव में आगे काम संभव नहीं होता है, ऐसे में सबसे पहले आप इसे अच्छे से समझ लीजिए।
खाते के प्रकार से डेबिट क्रेडिट का नियम -
पहले आपने स्पष्ट रुप से खाते के प्रकार को समझ लिया, अब खाते के प्रकार के अनुसार किस प्रकार से डेबिट और क्रेडिट किया जाता है? इसे समझने के लिए आप नीचे दी गई सारणी को ध्यान से समझे। इस सारणी में जो नियम दे रखे हैं उन्हीं के अनुसार डेबिट और क्रेडिट किया जाता है।
खाते का प्रकार | डेबिट | क्रेडिट |
---|---|---|
व्यक्तिगत | पाने वाले को | देने वाले को |
वास्तविक | आने वाली वस्तु को | जाने वाली वस्तु को |
नाममात्र | समस्त खर्च और हानि को | सभी आय और लाभ को |
ऊपर दी गई दी गई सारणी से स्पष्ट है कि दोहरा लेखा प्रणाली में डेबिट और क्रेडिट खाते की पहचान करने के बाद लेखांकन के नियमो के अनुरुप किया जाता है। दोहरा लेखा प्रणाली में इस तरीके से किए जाने लेखांकन को वैज्ञानिक पद्धति द्वारा लेखांकन कहा जाता है, क्योंकि इसके स्पष्ट नियम होते हैं और नियमो के अनुसार लेखांकन का कार्य किया जाता है।
डेबिट और क्रेडिट में अन्तर -
कई सारे लोग डेबिट और क्रेडिट का अन्तर नहीं जानते। खासतौर से जब आप किसी एप्प के माध्यम से आपकी लेन देन को दर्ज कर रहे हैं, तब आप डेबिट और क्रेडिट के बीच में फस जाते हैं वैसे ही कई लोग डेबिट और क्रेडिट कार्ड को देखकर भी डेबिट और क्रेडिट के बीच के अन्तर को जानना चाहते हैं, ताकि उन्हें कार्ड का मतलब स्पष्ट रुप से समझ आ सके।
अन्तर का आधार | डेबिट | क्रेडिट |
---|---|---|
अर्थ | किसी खाते में कुछ जोड़ना जिससे संपति में वृद्धि या दायित्व में कमी | किसी खाते से कुछ निकालना जिससे संपति में कमी या दायित्व में वृद्धि |
पक्ष | खतौनी (Ledger) का बायां पक्ष | खतौनी (Ledger) का दायां पक्ष |
व्यय | बढ़ोतरी | कमी |
आय | कमी | बढ़ोतरी |
संपति | वृद्धि | कमी |
दायित्व | कमी | वृद्धि |
पूँजी | कमी | वृद्धि |
डेबिट और क्रेडिट करते समय नियमो को ध्यान में रखना जरूरी होता है, बिना नियमो को ध्यान में रखते हुए प्रविष्टि कर देने से सब गुड़-गोबर हो जाता है।
अतः स्पष्ट है कि डेबिट और क्रेडिट दोनों भिन्न है, जिनका ध्यान रखना होता है। जर्नल में प्रविष्टि करते समय डेबिट को 'Dr' लिखा जाता है और क्रेडिट को To से शुरू करके लिखा जाता है। वैसे ही खतौनी में बायां पक्ष डेबिट और दायां क्रेडिट का होता है।
बैंक द्वारा डेबिट और क्रेडिट कैसे किया जाता है?
बैंक में जब कोई राशि जमा होती है या बैंक खाते से निकाली जाती है, तब हमे बैंक का मैसेज मिलता है, जिसका चित्र ऊपर दिया हुआ है। हालाँकि संदेश की भाषा अलग हो सकती है पर उदेश्य और अर्थ एक ही होता है। सभी बैंक इस उदेश्य के साथ संदेश भेजते हैं ताकि गाहक को इस बात की जानकारी मिल जाए कि पैसे निकाले गए हैं या जमा कराए है। निकालने या जमा कराने की जानकारी बैंक द्वारा किए गए मैसेज से मिलती है ऐसे में कुछ लोग सोचते हैं कि बैंक द्वारा गलत मैसेज भेजा गया है क्योंकि बैंक रुपये निकलने पर भेजता है कि आपके खाते से डेबिट हुए हैं। वो सोचता है मैं पाने वाला हूँ मुझे कैश मिला तो मैं डेबिट और कैश क्रेडिट।
लेकिन वास्तव में बैंक जो मैसेज भेजता है वो आपकी बही का नहीं है, आपकी बहीं में बिल्कुल उल्टा होगा। बैंक अपनी बही से मैसेज भेजता है ऐसे में बैंक के लिए आप पाने वाले है और बैंक से कैश आपको मिल रही है वस्तु (कैश) का बहिर्गमन हो रहा है जो क्रेडिट होगी और आप पाने वाले है जो डेबिट होंगे। आपके खाते में पैसे जमा होने पर बैंक इसके विपरित प्रविष्टि करेगा, जिसमें आप क्रेडिट किए जाएंगे।
अन्य प्रश्न -
प्रश्न - डेबिट को हिन्दी में क्या कहते हैं?
उत्तर - डेबिट को हिन्दी में 'नामे' कहते हैं।
प्रश्न - क्रेडिट को हिन्दी में क्या कहते हैं?
उत्तर - क्रेडिट को हिन्दी में 'जमा' कहते हैं।
प्रश्न - बैंक डेबिट कब करता है?
उत्तर - जब आप बैंक से पैसे निकालते हैं, तब बैंक आपको डेबिट करता है ।
प्रश्न - बैंक क्रेडिट कब करता हैं?
उत्तर - जब आप बैंक में पैसे जमा करते है, तब बैंक आपको क्रेडिट करता हैं।
प्रश्न - बिना पैसे निकाले बैंक से डेबिट का मैसेज क्यों आया?
उत्तर - बैंक जब एटीएम कार्ड या मैसेज भेजने का शुल्क काटता है तब बैंक से बिना पैसे निकाले डेबिट का मैसेज आता है।
प्रश्न - बैंक मे पैसे जमा कराए बिना क्रेडिट का मैसेज क्यों आता है?
उत्तर - बैंक द्वारा आपकी जमा राशि पर बैंक ब्याज जमा करता है आपके खाते में तो क्रेडिट का मैसेज आता है।
प्रश्न - डेबिट को क्रेडिट कर दे तो क्या करे?
उत्तर - जितनी राशि डेबिट करनी थी उतनी ही क्रेडिट कर दी है तो सुधार के लिए दुगुनी राशि से खाते को पुनः डेबिट कर देना चाहिए।
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