फूल किसी पेड़ या पौधे (वनस्पति) के प्रजनन क्रिया को पूरा करने वाला वह भाग है, जो एकल या समूह में होते हैं। प्रजनन क्रिया में सहायक होने के कारण पेड़ पर फली या फल आने से पूर्व पुष्प आते हैं। कोमल स्वभाव के फूल की पंखुड़ियां रंगीन होती है, जिसके कारण इनका आकर्षण अन्य हिस्सों के मुकाबले अधिक होता है। ये अपने अंदर अनुपम सुन्दरता को लपेटे हुए होते हैं। इसके गुणों और सुन्दरता के कारण हमारी संस्कृति में फूल का विशेष महत्व रहा है, इसी के कारण देश के साथ ही विभिन्न राज्यों ने भी फूल को राजकीय दर्जा देकर इन्हें सुरक्षित किया है।
सुन्दर, कोमल और मोहक फूल सबके मन को भाते है, सबका मन हर्षातें है। अपनी कोमल प्रकृति से सबको कोमल होने का संदेश देते हैं, इसी कारण प्रेम का प्रदर्शन पुष्प भेंट कर किया जाता है। फूलों में रंग, सुगंध और जनन का भी गुण होता है। रंग से हमे संदेश देते हैं कि जहां खुशी है, समृद्धि है वहाँ रंगों की आवश्यकता है। फूल से आने वाली महक और इनकी सुन्दरता के कारण ही इनकी पहचान है।
रोहिड़ा का वैज्ञानिक वर्गीकरण -
तथ्य | स्पष्टीकरण |
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जगत | पादप (Plant) |
वंश | टेकोमेला (Tecomella) |
जाति | उण्डूलता (Undulata |
वैज्ञानिक नाम | टेकोमेला उण्डूलता ( Tecomella Undulata) |
रोहिड़ा क्या होता है?
रोहिड़ा राजस्थान की शुष्क जलवायु मे पाया जाने वाला एक एक इमारती पेड़ है। इस पेड़ की पेड़ की ऊंचाई महज 5-7 मीटर तक की होती है। शुष्क जलवायु के अनुकूल होने के कारण यह कुछ हद तक पर्णपाती (गर्मी के मौसम में पत्ते सुखकर गिर जाते हैं) पेड़ है। इस पेड़ की पत्तियाँ बड़ी और लंबी होती है, कुछ हद तक यह अशोक के पेड़ की पत्तियों से मिलती-जुलती होती है। अशोक के पेड़ की पत्तियों की भांति गहरी हरी नहीं होती हल्की हरी भूरे रंग की होती है। पत्ती की लंबाई 6 इंच और चौड़ाई 2 इंच के लगभग होती है। गर्मी की शुरुआत में पेड़ से अधिकांश पत्तियाँ झड़ जाती है, हालांकि कुछ पेड़ पर अपेक्षाकृत कम झड़ती है। इस समय इसकी डालिया जो भूरे रंग की होती है वो गर्मी के मौसम में पत्तियों के झड़ जाने के बाद दूर से साफ दिखने लगती है। जैसा कि पहले ही बता दिया की यह इमारती पेड़ है जिसके कारण यह टहनियां भी काफी मज़बूर होती है और घनी भी जिसके कारण इसकी छाया बरकरार रहती हैं।
रोहिड़ा भारत, पाकिस्तान और अरब के देशों में पाया जाता है। भारत में रोहिड़ा सर्वाधिक राजस्थान में होता है। यह राजस्थान में पाए जाने वाले ऊंचे पेड़ों में से एक है। इसका तना मोटा और ऊंचा होता है जिसके कारण पेड़ ऊंचाई 7 मीटर तक होती है। तने की ऊंचाई के बाद डाल और घनी शाखाएं होने के से यह 7 मीटर तक फैला हुआ भी होता है। अधिक फैलाव के कारण तने से निकलने वाली डाल भी काफी मजबूत होती है। राजस्थान के मरुस्थल का वृक्ष होने के कारण कम पानी में भी अपनी विशेषताओं के कारण जिवित रहता है। कम पानी में जिवित रहने में इसके तने का विशेष योगदान होता है, जो मोटी छाल से सुरक्षित होता है। इसकी छाल भूरे रंग (सफेद आभा) की शल्कीय दरारों वाली होती है। यह लवणीय भूमि ph मान 6.5 से 8.0 मे भी पनप सकता है।
रोहिड़ा की लकड़ी और उपयोग -
रोहिड़ा एक इमारती वृक्ष है इसकी लकड़ी मजबूत होने के साथ टिकाऊ होती है। लकड़ी का घनत्व अधिक होने के साथ ही लकड़ी के भारी होने के कारण यह फर्निचर के लिए बहुत उपयुक्त होती है। इसकी लकड़ी की उपयोगिता को देखते हुए इसे 'राजस्थान का सागवान' या 'मारवाड़ का सागवान' कहा जाता है। इसकी लकड़ी से घर के उपयोग का सभी प्रकार का फर्निचर बनाया जा सकता है। इमारती पेड़ होने के साथ ही इसकी महता सागवान के बराबर मानी जाती है। इसका तना लगभग 3 मीटर का ऊंचा होता है जिसका व्यास 2-3 फीट का होता है, जिसके कारण मजबूत खिड़की और दरवाजे का निर्माण संभव है। इसकी जड़े भी मोटी होने के कारण फर्निचर के लिए उपयुक्त होती है। इसमे तैलीय रस की भी अधिकता होती है जिससे फर्निचर में चमक और साफ-सफाई भी अधिक नजर आती है, सागवान की भांति।
रोहिड़ा की लकड़ी के साथ टहनियां भी काफी मजबूत होती है। पेड़ की अच्छे तरीके से विकास हो और नई टहनियां विस्फुटित हो इसके लिए टहनियों की छँटाई के बाद इसका उपयोग घर के लिए टोकरी बनाने और अन्य कार्यो के लिए किया जाता है। रोहिड़ा की लकड़ी से बनी हुई टोकरी मजबूत होती है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए कई बार इसकी छँटाई कर दी जाती है। टोकरी के अतिरिक्त इसकी टहनियों से धान को संग्रहित करने के लिए कोटा भी बनाया जाता है। इसके अतिरिक्त लकड़ी का कडवा स्वाद होने से इसमे कृमि/कीड़े (उधाई) नहीं लगते। कड़वे स्वाद और मजबूती के कारण आज भी कच्चे घरों की बाड़ बनाने में इसका प्रयोग होता है। पहले बनने वाले कच्चे मिट्टी के दीवार वाले झोपड़ों में उसकी दिवार बनाने से पहले रोहिड़ा की टहनियों से ताटी (बाड़) बनाकर उसे गोबर से लीप कर दीवार बनाई जाती थी।
राजस्थान में जल संग्रहण के लिए बनाये जाने वाले टांका को ढंकने के लिए उस पर रोहिड़ा का भारी तना रखकर ढंका जाता था ताकि कोई जानवर इसमे गिरे नहीं। इनके अतिरिक्त किसानी के लिए काम आने वाले औजारों के हत्थे के रुप में भी थोड़ी मोटी टहनियों का उपयोग किया जाता रहा हैं। किवदंती के अनुसार राजस्थान के सागवान रोहिड़ा की लकड़ी से बना फर्निचर 100 साल तक सुरक्षित रहता है।
रोहिड़ा का फूल -
राजस्थान राज्य का 'राज्य पुष्प' है रोहिड़ा का फूल। राजस्थान सरकार द्वारा 21 अक्तूबर, 1983 को रोहिड़ा के फूल को राज्य का फूल घोषित किया गया। रोहिड़ा के वृक्ष पर भारी मात्रा में फूल लगते हैं, दूसरी तरफ फूल का आकार बड़ा होने के कारण पूरा पेड़ वसंत में (फरवरी अंत से से अप्रैल तक) फूलों से ही लदा हुआ नजर आता है। यह फूल किसी प्रकार की सुगंध को नहीं देता, जिसके कारण इसका उपयोग मंदिर में नहीं किया जाता है। बड़े आकार के इस फूल की सुन्दरता और अनुपम गुणों के साथ रोहिड़ा के वृक्ष के संरक्षण को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार नें इसे राज्य पुष्प घोषित किया।
रोहिड़ा के फूल तीन रंग (पीले, नारंगी और लाल) के होते हैं तथा आकार घंटीनुमा या तुरही की तरह होता है। आकार बड़ा होने के कारण इसका परागण तितलियां नहीं कर पाती है। इस फूल का मकरंद चुराने का काम कई पक्षी करते हैं। मकरंद चुराने वाले पक्षी इसके लिए छिद्र करते हैं। बड़े पक्षी लंबी चोंच वाले (बुलबुल) मकरंद चुराने की बजाय पीना पसंद करते हैं। बुलबुल मकरंद को पीने के लिए जब सिर फूल में डालती है तो नर पुंकेसर सिर से चिपक कर मादा अंडाशय में गिरते हैं, परिणामस्वरूप प्रजनन की प्रक्रिया पूर्ण होती है। किंतु छोटे पक्षी गौरैया या सन बर्ड पुष्प के आधार में छिद्र कर मकरंद को पीते हैं, उनकी चोंच नर पुंकेसर तक नहीं पहुंचती है। सन बर्ड आधिक होने के कारण अधिक पुष्प से मकरंद चुरा बुलबुल को आसपास के अन्य पेड़ों पर मकरंद पीने के लिए मजबूर करते हैं। मकरंद की तलाश में बुलबुल अधिक पेड़ों पर जा परागण में प्रत्यक्ष सहायता करती हैं, किन्तु सन बर्ड अधिक फूलों से मकरंद चुरा उसे कई पेड़ों पर जाने के लिए मजबूर करते हैं। ऐसे में देखा जाए तो मकरंद का संघर्ष किसी ना किसी रूप में परागण में सहायता करता हैं।
रोहिड़ा का फूल अन्य फूलों से अपने आप में अनोखा और भिन्न हैं। इसका आकार अन्य फूलों से बड़ा होता है तथा आकार घंटी जैसा। फूल का आकार बड़ा होने के बावजूद भी सुगंध का कोई नामों निशान तक नहीं। परागण तितली या अन्य कीट से ना होकर बड़ी चोंच के बड़े पक्षियों द्वारा। पक्षी मकरंद को चुराने के लिए छिद्र करते हैं। ऐसे में यह पुष्प अन्य पुष्प से भिन्न और अनोखा है। जब यह फूल खिलता है तब लाल होता है, धीरे धीरे केशरिया होने लगता है और अंत में पीला होकर गिर जाता है। फूलों के पक जाने या परागण की प्रक्रिया के पूर्ण हो जाने पर इसमे फली निकलती है, जिसमें चौकोर छोटे-छोटे चपटे (एक ग्राम भार) के बीज होते हैं।
रोहिड़ा का औषधीय उपयोग -
सभी वनस्पतियों में आयुर्वेद के गुण पाए जाते हैं। रोहिड़ा में भी कई आयुर्वेद के गुण होते हैं जिसके कारण यह कई प्रकार के पौषक तत्वों से लबालब होता है। शुष्क वन अनुसंधान संस्थान, जोधपुर के अनुसार इसकी छाल, कपोल, पत्तियों और फूलों में कई प्रकार के आयुर्वेदिक गुण होता है। इसके फूल गिले और सूखे (दोनों प्रकार के) बाजार में आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माण के लिए बिकते हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सकों द्वारा कई बार इसके विभिन्न हिस्सों के आयुर्वेदिक महत्व को समझाया जाता है। कुछ हिस्सों का निम्नलिखित आयुर्वेद उपचार में महत्व है -
- छाल - त्वचा सम्बन्धी विकार, तिल्ली, सूजाक और फोड़े-फुंसी के लिए।
- कपोल - रात को भिगोकर सुबह पानी पीने से बीपी, और शुगर से राहत।
- पत्तियाँ - घाव और फोड़े-फुंसी पर लेप लगाना।
- फूल - महिलाओं में श्वेत प्रदर और मूत्र सम्बन्धित विकार।
आयुर्वेदिक चिकित्सकों के अनुसार इसके हिस्सों से कई प्रकार की दवा बनाई जाती है इसी कारण इसकी छाल और फूल बाजार में ऊंची कीमत से बिकते हैं। इससे बीपी, शुगर, बवासीर, दमा, लिवर, पेट के विकार, घाव, फुंसी, कान और आंख के रोग की दवा बनाई जाती है। सरकार और वन विभाग समय-समय पर इसके औषधीय और इमारती लकड़ी के लाभों को देखते हुए किसानो को आय बढ़ाने के लिए वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित करने के लिए इसके विभिन्न लाभों को उजागर करती है। राजस्थान की जलवायु और लवणीय भूमि के लिए वरदान होता है य यह रोहिड़ा का पेड़।
अस्वीकरण - इसके औषधीय लाभ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपे शोध पत्रों के अध्ययन पर आधारित है, ऐसे में कोई भी प्रयोग करने से पूर्व आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह लेना आवश्यक समझे।
रोहिड़ा के पेड़ पर अस्तित्व बचाने का संकट -
रोहिड़ा का पेड़ राजस्थान की जलवायु के अनुकूल है इसी के कारण बेहद कम जल के बाबजूद भी 50° सेल्सियस तापमान में भी जिवित रहता है। इसकी लकड़ी बेहद उपयोगी है, जो सांगवान के समान गुण रखती है। लड़की की कीमत और गुणों को देखते हुए इसे 'देशी सागवान' की उपमा दी जाती है। इसकी छाल और फूल भी बाजार में ऊंचे दाम पर बिकते हैं। लवणीय और क्षारीय भूमि के साथ टिब्बे पर भी इसे लगाया जा सकता है, भूमि के कटाव को रोकने के लिए। इन सब गुणों के बावजूद इसकी अवैध कटाई और आधुनिक खेती (मशीनों द्वारा) इसके अस्तित्व के लिए संकट बन गई है।
राजस्थान राज्य के 'राजस्थान काश्तकारी अधिनियम - 1956' की धारा 84 (2) के अनुसार आप तहसीलदार से अनुमति लेकर 25 से 28 वर्ष के बड़े पेड़ की कटाई कर सकते हैं जिसमें प्रति पेड़ 10 रुपये की राशि अदा करनी होती है। गैर अनुमति के पेड़ की कटाई करने पर रुपये 100 से 200 तक कि जुर्माने की राशि का प्रावधान 'राजस्थान काश्तकारी अधिनियम - 1956' एवं 'राजस्थान वन अधिनियम - 1953' के अनुसार है। कभी कभार अधिक पेड़ काटने पर 6 महीने की सजा से 25000/-रुपये के आर्थिक दंड का प्रावधान भी है।
रोहिड़ा के गुणों को देखते हुए इसकी अवैध कटाई पर लगने वाली जुर्माना राशि बेहद कम है। जुर्माना राशि की कमी के कारण इसकी अन्धाधुन्ध कटाई की जा रही हैं। कई बार चोरी-छिपे कटाई कर दी जाती है। दूसरी ओर इसके बाजार मूल्य के मुकाबले में आर्थिक दंड की कम राशि कटाई को रोकने में नाकाम साबित हो रही है। काश्तकारी भूमि पर पेड़ काटने की अनुमति लेने वालों की संख्या भी नगण्य है कारण पेड़ की कटाई के बदले पेड़ लगाना। ऐसे में रोहिड़ा के फूल को राज्य पुष्प घोषित किए जाने के बाद भी इसका पूरी तरह से संरक्षण संभव नहीं है।
महत्वपूर्ण प्रश्न -
प्रश्न - रोहिड़ा का वैज्ञानिक (वानस्पतिक) नाम क्या है?
उत्तर - रोहिड़ा का वैज्ञानिक नाम टैकोमेला उण्डूलता (Tecomella Undulata) है।
प्रश्न - रोहिड़ा के फूल को राज्य पुष्प कब घोषित किया गया?
उत्तर - रोहिड़ा के फूल को राजस्थान राज्य का 'राज्य फूल' या 'राज्य पुष्प' 21 अक्तूबर, 1983 को घोषित किया गया।
प्रश्न - राजस्थान का 'राज्य पुष्प' क्या है?
उत्तर - राजस्थान का राज्य पुष्प रोहिड़ा का फूल है।
प्रश्न - किस फूल मे सुगंध नहीं होती है?
उत्तर - राजस्थान में पाए जाने वाले रोहिड़ा वृक्ष के फूल में सुगंध नहीं होती है। यह फूल राजस्थान का राजकीय फूल 'राज्य पुष्प' है।
प्रश्न - रोहिड़ा की अवैध कटाई पर जुर्माना राशि क्या है?
उत्तर - राजस्थान राज्य के काश्तकारी अधिनियम, 1956 के अनुसार रोहिड़ा के पेड़ की अवैध कटाई पर जुर्माना राशि महज 100 से 200 रुपये हैं। वर्तमान में, यह बढ़ाकर 25000 रुपये और तीन माह की सजा किए जाने की खबरे अखबार में छपती है, लेकिन बढ़ाए जाने की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हैं। मामले की संगीनता को देखते हुए माननीय न्यायलय द्वारा इस प्रकार के फैसले कठोर दंड देने के लिए, किए जाते हैं।
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