रामदेवरा राजस्थान राज्य के जैसलमेर जिला मे स्थित एक गांव है। रामदेवरा परमाणु नगरी पोखरण से 12 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित है। रामदेवरा जोधपुर - जैसलमेर राष्ट्रीय राजमार्ग (N. H. 114) से 12 किलोमीटर दूर है तो वही बीकानेर-जैसलमेर (N. H. 11) से 5 किलोमीटर दूर है। रामदेवरा रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है। यह नगरी जोधपुर, बीकानेर और जैसलमेर से ब्रॉडगेज रेलमार्ग से जुड़ा हुआ है।
रामदेवरा नगरी लोक देवता बाबा रामदेव की नगरी है। बाबा रामदेव की नगरी के मध्य बाबा रामदेव का मंदिर स्थित है। इसी कारण इस नगरी का महत्व है। यह धार्मिक और आध्यात्मिक नगरी है, जहाँ प्रतिवर्ष देशभर से करोड़ों श्रद्धालु बाबा को शीश नवाने इस सीमा पर स्थित जिले में आते हैं। रामदेवरा में बाबा रामदेव की समाधी है। समाधि स्थल पर विशाल मंदिर है। मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा में है। मंदिर के ठीक पीछे राम सरोवर तालाब है, जिसमे बरसात की ऋतु में पानी भरा हुआ होता है। मंदिर के दक्षिण में परचा बावड़ी है। माना जाता है कि बावड़ी के दर्शन से कई कष्ट समाप्त हो जाते हैं।
मंदिर में बाबा रामदेव जी की मूर्ति है, पास ही डाली बाई की समाधि है। डाली बाई की समाधि के पास डाली बाई का पत्थर का कंगन है, जिसे धर्म बारी भी कहते हैं। सामन्यतः जातरु/श्रद्धालू इस कंगन से निकलते हैं। माना जाता है कि कंगन से वही निकल सकता है, जिसने पाप नहीं किए हैं। रामदेवरा एक ग्राम पंचायत है, तथा सरपंच ही मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष होते हैं।
कैसे नाम पड़ा रामदेवरा?
लोक कथाओं और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार लोक देवता बाबा रामदेव का जन्म 1352 में पोखरण शासक (कुछ कहानियों के अनुसार महाराजा) अजमल जी के घर हुआ। इन्हें द्वारकाधीश (श्रीकृष्ण) का अवतार माना जाता है। इन्होंने वर्ष 1385 में एक सरोवर किनारे जिवित समाधि ली, जिस स्थान पर इन्होंने जिवित समाधि ली कालान्तर में यह स्थान रामदेवरा कहलाया। आज इस स्थान पर ही बाबा रामदेव का भव्य मंदिर है। इस मंदिर के आसपास जो नगरी है, इसका नाम रामदेवरा /रुणिचा हैं।
बाबा रामदेव के मंदिर को स्थानीय भाषा में 'देवरा' कहा जाता हैं। यहाँ बाबा रामदेव का मंदिर है, जो रामदेव जी का देवरा हैं। इसी देवरा के कारण इस स्थान का नाम रामदेवरा पड़ा।
धार्मिक और सहिष्णुता की नगरी रामदेवरा -
बाबा रामदेव को पीर रामदेव भी कहा जाता है। लोककथा के अनुसार एक बार बाबा की परिक्षा लेने के लिए मुस्लिम धर्म के 5 पीर आए। उन्होंने बाबा की परीक्षा लेना नियत कर रखा था। जब वो रुणिचा गॉव की सरहद पर पहुंचे तब बाबा से मुलाकात हुई। बाबा ने उन्हें खाना खाने का आमंत्रण दिया। खाना खाने के लिए बैठे पांचो पीर बोले - हम खाना सिर्फ हमारे कटोरे में ही खाते है, जो मक्का में रह गए हैं। उन कटोरो के बिना खाना नहीं खा सकते हैं (यह परीक्षा के लिए था), अगर आप वहाँ से मंगा सकते हैं तो हम खाना खाएंगे नहीं तो बिना खाना खाए चले जाएंगे। तब बाबा ने चमत्कार से उनके कटोरे मक्का से लाकर उनके सम्मुख रख दिए। यह चमत्कार देख मुस्लिम पीर बाबा के चरणों में गिर गए और बाबा को पीर की उपाधि दी हिंदू और मुस्लिम के पीर कहा। तब से हिन्दुओ के साथ मुस्लिम भी बाबा की पूजा करते हैं।
बाबा रामदेव की धर्म बहिन डाली बाई के साथ मिलकर छुआ-छूत मिटाने के लिए कार्य किए। दींन-दुखियों और असाध्य रोग से पीड़ित बीमार लोगों की सेवा की। अंत में आज के रामदेवरा की नाम की जगह पर समाधी ली, इस कारण यह धार्मिक नगरी है, जहां प्रतिवर्ष करोडों श्रद्धालू आते हैं। भाद्रपद महीने में प्रतिदिन 15-20 लाख श्रद्धालू दर्शनं करने के लिए पहुंचते हैं। हिंदू-मुस्लिम दोनों धर्मों के श्रद्धालू आने के कारण यह धार्मिक सहिष्णुता की नगरी कहलाती है।
बाबा रामदेव मेला, रामदेवरा -
बाबा रामदेव का मेला हिंदी कैलेंडर के भाद्रपद महीने में भरता है। मेला की शुरुआत भाद्रपद मास के आरंभ से ही हो जाती है, किंतु मुख्य मेला भाद्रपद शुक्ल दशमी के दिन भरता है।भाद्रपद शुक्ल दशमी को राजस्थान राज्य में बाबा रामदेव जयंती का अवकाश रहता है। बाबा रामदेव का मेला रामदेवरा में भरता है, जहां लाखो श्रद्धालू जाते हैं। मेले की शुरुआत से ही लाखो श्रद्धालुओं के पहुंचने का सिलसिला शुरु हो जाता है। भाद्रपद महीने की शुरुआत से हज़ारों श्रद्धालू सैंकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर अपनी मन्नत मांगने के लिए पहुंचना शुरु करते हैं। भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की शुरुआत तक सैंकड़ों किलोमीटर से पैदल चलकर अपनी मन्नत मांगने वालों की संख्या लाखो में पहुंच जाती है। इससे कई गुना अधिक बस, ट्रेन और अन्य वाहनों से दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं।
मेले की शुरुआत से ही प्रशासन व्यवस्थाओं को बनाए रखने के लिए मुस्तैद हो जाता है। ऐसे में मेले में पहुंचने वालों की पार्किंग की व्यवस्था से पीने के पानी और नाश्ते की व्यवस्था मंदिर प्रबंधन, स्थानीय लोगों, प्रशासन और दानदाताओं द्वारा की जाती है। मेले में श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की अव्यवस्था का सामना ना करना पड़े इसके लिए विशेष व्यवस्था भी की जाती है। सभी श्रद्धालू दर्शन कर सके इसके लिए पुलिस प्रशासन द्वारा व्यवस्था को सम्भाला जाता है। जो लंबी कतारों में खड़े रहने में समर्थ नहीं होते उन्हें विशेष व्यवस्था से दर्शन कराए जाते हैं।
रामदेवरा पहुंचने के लिए बस और ट्रेन -
लाखो श्रद्धालू बाबा रामदेव जी के मेले में पहुंचते हैं। मेले में पहुंचने के लिए विभिन्न यातायात के साधनो से पहुंचते है। कई लोग बस और ट्रेन के माध्यम से भी पहुंचते हैं। ऐसे में आपको बता देते हैं कि आप बस से कैसे पहुंच सकते है, और अगर आप ट्रेन से जाना चाहते हैं तो कैसे पहुँचे?
बस -
अगर आप बस से जोधपुर या बाड़मेर से जाना चाहते हैं तो आपको सीधा रामदेवरा के लिए बस मिल जाएगी। जो आपको सीधा रामदेवरा मेले से 500 मीटर दूर छोड़ती है। जब मेला नहीं होता है तब नगर के भीतर तक बस जाती है। कई बसे जो सीधे जैसलमेर जाती है वो हाई वे पर ही छोड़ती हैं। वहाँ से पोकरण से रामदेवरा तक चलने वाली स्थानीय बसे मिल जाती है। यह हाई-वे जोधपुर से निकलने वाली बसों के लिए स्टैंड पोखरण शहर के भीतर है। यानी अगर आप जोधपुर से बस से रामदेवरा जा रहे हैं तो जो बस रामदेवरा के भीतर नहीं जाती है वो पोखरण छोड़ती है। जहां से आपको रामदेवरा के लिए स्थानीय बस मिल जाती है। वैसे ही बीकानेर हाई-वे की बस आपको 5 किलोमीटर दूर छोड़ती है।
ट्रेन -
अगर आप ट्रेन से रामदेवरा जा रहे हैं तो आपके पास दो रूट है - जोधपुर रूट और बीकानेर रूट।
- जोधपुर रूट - जोधपुर रूट से रामदेवरा जाने के लिए जोधपुर जंक्शन से ट्रेन मिल जाती है। जोधपुर जंक्शन से रामदेवरा की दूरी 183 किलोमीटर है। रामदेवरा नगरी में स्टेशन है तथा जोधपुर से चलने वाली सभी ट्रेन इस स्टेशन पर रुकती है। यह रामदेवरा स्टेशन मंदिर से महज 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मेले के समय यहां पार्किंग होती है।
- बीकानेर रूट - बीकानेर से रामदेवरा के लिए ट्रेन चलती है, बीकानेर से रामदेवरा की दूरी 214 किलोमीटर है तथा सभी ट्रेन रामदेवरा स्टेशन पर रुकती है।
जैसा कि आपको पहले ही बता दिया कि बीकानेर, जैसलमेर नागौर और जोधपुर सभी दिशा से आने वाले सड़क मार्ग राष्ट्रीय राजमार्ग है। ऐसे में आप अपने वाहन से भी आसानी से पहुंच सकते हैं। सामन्यतः सभी जातरु इन्हीं दोनों (जोधपुर से जैसलमेर और बीकानेर से जैसलमेर) राष्ट्रीय राजमार्ग से होते हुए रामदेवरा पहुंचते हैं।
रामदेवरा में दर्शनीय स्थल -
रामदेवरा में बाबा रामदेव जी की समाधि है। इसी समाधि के दर्शन करने के लिए प्रतिवर्ष करोड़ों श्रद्धालू आते हैं। यह समाधि रामदेवरा के मुख्य आकर्षण का केंद्र है। जो भी व्यक्ति रामदेवरा आता है, उसका लक्ष्य समाधि के दर्शन होते हैं। इसके अतिरिक्त निम्न दर्शनीय स्थल है -
- बाबा रामदेव का मंदिर - बाबा रामदेव जी की समाधि पर भव्य मंदिर बना हुआ है। इसी मंदिर में बाबा की समाधि है। आप कह सकते हैं कि समाधि पर भव्य मंदिर बनाया गया है। जहां बाबा रामदेव की मूर्ति लगी हुई है। सुबह शाम इसी मंदिर में आरती होती है और आरती में हज़ारों श्रद्धालू मंदिर परिसर में और उतने ही बाहर खड़े हो आरती में सम्मिलित होते हैं।
- परचा बावड़ी - मंदिर के पास ही परचा बावड़ी है। कहा जाता है कि बावड़ी में स्नान करने से शरीर के कष्ट दूर होते हैं और कुष्ट रोग भी कट जाता है। बावड़ी की सीढ़ियां छोटी है और गहराई अधिक है, ऐसे में बावड़ी दार्शन के लिए सावधानी बरतना आवश्यक हैं।
- राम सरोवर तालाब - बाबा रामदेव की के मंदिर के ठीक पीछे राम सरोवर तालाब हैं। माना जाता है कि इस तालाब में स्नान करने से मन पवित्र होता है। जैसलमेर में बरसात कम होने के कारण इस तालाब में भाद्रपद महीने में ही पानी मिलता है। वर्तमान में सरकार इसे पाइप लाइन परियोजना से जोड़कर 12 मास भरा हुआ रखने के प्रयास कर रही है।
- डाली बाई का कंगन - मंदिर परिसर में ही बाबा जी की मुँह बोली बहन की समाधि है और उसके पास उनका पत्थर का बना हुआ कंगन भी। जो श्रद्धालू मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं उनमे से कई जब भीड़ कम होती है, तब इसमे से निकलते हैं। कई लोग इसे धर्म बारी भी कहते हैं। मान्यता है कि इस कंगन से निकलने से शरीर के कष्ट दूर होते हैं।
- पांच पीपली - रामदेवरा से 12 किलोमीटर दूर रुणेचा गांव की सरहद पर एकां गॉव की नाडी की पाल पर पांच पीपली है। कहा जाता है कि बाबा रामदेव ने इसी स्थान पर मक्का से उनकी परिक्षा लेने आए पीरो को चमत्कार दिखाया। इसी चमत्कार की याद में पांच पीपली लगाई, जो आज भी मौजूद है। रामदेवरा आने वाले कई श्रद्धालू यहां भी पहुंचते हैं।
- छतरियां - रामदेवरा से 12 किलोमीटर दूर पोखरण है। जोधपुर - जैसलमेर राष्ट्रीय राजमार्ग पर ही पोखरण शहर में ही ऐतिहासिक छतरियां है। माना जाता है कि इनकी गिनती सम्भव नहीं है, ऐसे में राष्ट्रीय राजमार्ग से ही जातरुओ द्बारा इन छतरियों को निहारते हुए देखा जा सकता है।
- बालीनाथ का धूणा - बाबा रामदेव के गुरु, गुरु बाली नाथ जी का धूणा जहां बाली नाथ जी तपस्या किया करते थे, पोखरण के पास ही स्थित है, जो रामदेवरा से 11 किलोमीटर दूर है।
इनके अतिरिक्त डाली बाई की जाल, रामसा कुआ (रुणेचा कुआ) और बाबा रामदेव पैनोरमा इत्यादि दर्शनीय स्थल है।
रामदेवरा में ठहरने की व्यवस्था -
रामदेवरा में विश्राम करने के लिए मेले के भीतर और मेले से 1 किलोमीटर की दूरी पर कई धर्मशालाएं है। कई धर्मशालाएं अति आधुनिक भी है। यहां रुकने की व्यवस्था निःशुल्क होती है। धर्मशालाओं में रुकने, सोने, खाने और नहाने की सुविधा भी उपलब्ध है। जो जातरु लंबी दूरी से आते हैं वो इन्हीं धर्मशालाओं में विश्राम करते हैं। इसके अतिरिक्त मेला क्षेत्र में कई होटल/रेस्त्रां भी है। ये सभी धर्मशालाएं पूरी तरह से सुरक्षित हैं।
जिन्हें मेला क्षेत्र से बाहर रुकना है वो पोखरण में रुक सकते हैं। पोखरण में कई होटल में रुकने के लिए कमरे की व्यवस्था भी उपलब्ध है।
रामदेवरा मेले के दौरान व्यवस्था -
रामदेवरा में भाद्रपद महीने में भरे जाने वाले मेले में प्रतिदिन लाखो श्रद्धालू पहुंचते हैं। मेले पहुंचने के लिए अगर आप सड़क मार्ग का उपयोग करते हैं तो पूरे रास्ते (सामन्यतः 100 किलोमीटर रामदेवरा के चारो और) प्रत्येक गाँव में सड़क किनारे राम रसोङा की व्यवस्था होती हैं। ये निःशुल्क शुद्ध शाकाहारी भोजन कराते हैं तथा रुकने और नहाने की व्यवस्था भी देते हैं। जोधपुर, बीकानेर जैसे शहरो में भी इस तरह की व्यवस्था की भरमार दिखती है मेले के दिनों में। राष्ट्रीय राजमार्ग पर 10 किलोमीटर की दूरी से राम रसोड़े मिल ही जाते हैं। जैसे-जैसे मेला के नजदीक पहुंचते हैं इनकी संख्या बढ़ती जाती है।
निःशुल्क भोजन व्यवस्था के अतिरिक्त 2-3 किलोमीटर की दूरी से खाने के लिए अस्थाई होटल्स खुल जाते हैं, जो खासतौर से मेले के लिए होते हैं। ये होटल स्थायी होटल्स के मुकाबले में बहुत कम नाममात्र (₹ 50/- में भरपेट भोजन) की व्यवस्था प्रदान करते हैं। इनके अतिरिक्त चाय और नाश्ते की निःशुल्क और अस्थायी होटल दोनों प्रकार की व्यवस्था बनी रहती है। मेला स्थल से एक किलोमीटर की दूरी पर भी इस तरह की व्यवस्था की भरमार मिलती है। ऐसे में व्यवस्था दानदाताओं द्वारा उत्तम तरीके से की जाती है। प्रशासन की तरफ से सुरक्षा सम्बन्धित उचित व्यवस्थाएं की जाती हैं।
अन्य प्रश्न -
प्रश्न - रामदेवरा क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर - रामदेवरा में रामसा पीर (बाबा रामदेव) की समाधि है। जहां प्रतिवर्ष करोड़ों श्रद्धालू दार्शन करने के लिए आते हैं। बाबा रामदेव की समाधि पर पहुंच अपनी मन्नत मांगते हैं। माना जाता है कि बाबा के दरबार में आने वाले श्रद्धालुओं की मन्नत बाबा पूरी करते हैं। प्रतिवर्ष लाखो श्रद्धालू राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात से पैदल ही आते हैं। भाद्रपद महीने में रामदेवरा जाने वाली सड़कों और राष्ट्रीय राजमार्गों पर पैदल जातरुओं के हुजूम उमड़ आते हैं।
प्रश्न - रामदेवरा कब जाना चाहिए?
उत्तर - रामदेवरा अगर आप किसी मन्नत मांगने जाना चाहते हैं तो भाद्रपद महीने में जाना चाहिए। ऐसे ही पैदल जाने के लिए भी भाद्रपद ही उचित है। यूं पूरे वर्ष मंदिर दर्शन के लिए खुला रहता है। आपको अधिक भीड़ पसंद नहीं है या आप मंदिर में अधिक समय बिताना चाहता है और भ्रमण करना चाहते हैं तो भाद्रपद उचित नहीं है। आपको बता दे कि जोधपुर या बीकानेर से निकलने के बाद रामदेवरा तक पहुंचने के लिए जो प्रबंध भाद्रपद के महीने में होते हैं वो अन्य महीनों में नहीं होते हैं। ऐसे में पैदल जाने वालों को भाद्रपद महीने में ही यात्रा करना चाहिए।
प्रश्न - रामदेवरा में किसका मंदिर है?
उत्तर - रामदेवरा में बाबा रामदेव ने जिवित समाधि ली, उस स्थल पर बाबा रामदेव का भव्य मंदिर है।
प्रश्न - जोधपुर से रामदेवरा की दूरी कितनी है?
उत्तर - जोधपुर से रामदेवरा की दूरी 182 किलोमीटर है।
प्रश्न - रामदेवरा मंदिर कहाँ हैं?
उत्तर - रामदेवरा मंदिर ग्राम पंचायत रामदेवरा (पुराना नाम रुणिचा) परमाणु नगरी पोखरण से 12 किलोमीटर दूर जिला जैसलमेर में हैं। जो जोधपुर से 182 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में है।
प्रश्न - छोटा रामदेवरा कहाँ पर स्थित है?
उत्तर - छोटा रामदेवरा गुजरात राज्य के के मेहसाणा जिले में खेरालु तालुका के अरथी गाँव में है, जिसे संत श्री वेलजी बापा ने छोटा रामदेवरा कहा था।
प्रश्न - बीकानेर से रामदेवरा कितने किलोमीटर दूर है?
उत्तर - बीकानेर से रामदेवरा की दूरी 214 किलोमीटर है।
प्रश्न - रामदेवरा कौनसे जिले में है?
उत्तर - रामदेवरा राजस्थान राज्य के जैसलमेर जिले में स्थित है।
प्रश्न - रामदेवरा मेला जब भरता है?
उत्तर - रामदेवरा का मुख्य मेला भाद्रपद शुक्ल दशमी के दिन भरता है।
प्रश्न - राम रसोड़ा क्या होता है?
उत्तर - बाबा रामदेव के जातरुओ के लिए निःशुल्क भोजन की व्यवस्था के लिए जो रसोई खोली जाती है, उसे राम रसोड़ा कहा जाता है। यहां शुद्ध शाकाहारी ताजा भोजन जातरुओ को खिलाया जाता है।
प्रश्न - जातरु किसे कहते हैं?
उत्तर - जो भाद्रपद महीने में बाबा रामदेव के पैदल दर्शन करने जाते हैं, उन्हें जातरु कहा जाता है।
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