हैंडीक्राफ्ट : कला और संस्कृति की पहचान। Handicraft

हैंडीक्राफ्ट : कला और संस्कृति की पहचान। Handicraft

मानव हमेशा से कला और कौशल का हिमायती रहा है। कला हमेशा संस्कृति का हिस्सा होती है। ऐसे में मानव हमेशा से अपनी संस्कृति को उकेरने के लिए कला का सहारा लेता रहा। मानव की कला में हस्तकला का हमेशा से महत्व रहा है।

हैंडीक्राफ्ट : कला और संस्कृति की पहचान। Handicraft

भारत में हमेशा से हस्तकला का महत्व रहा है। समय के प्रत्येक कालखंड में भारत में उत्तम गुणवत्ता की हस्तकला के उदाहरण देखने को मिलते हैं। भारतीय हैंडीक्राफ्ट या हस्तकला की मांग दुनियाभर में हमेशा से रही है। क्योंकि यह अपने आप में अलग और विशेष होती है। यही कारण है कि आज ना सिर्फ भारत बल्कि विदेशों में भी भारतीय हस्तकला की मांग हैं।

हैंडीक्राफ्ट क्या होता है?


हैंडीक्राफ्ट हाथ से बनी हुई ऐसी वस्तुएं हैं, जो कला और संस्कृति को ध्यान में रखते हुए बनाई जाती है। इसके काम के लिए कारीगरी अथवा दस्तकारी की आवश्यकता होती है। यह एक तरीके से शिल्प का कार्य होने से इसे शिल्पकारी अथवा हस्त शिल्प या हस्तकला भी कहा जाता है। ऐसे में स्पष्ट है कि हस्तकला अथवा हैंडीक्राफ्ट का आशय हाथ से बनी हुई वस्तुओ से है। हैंडीक्राफ्ट के आइटम्स बनाने के लिए मशीनों का उपयोग नहीं होता है।

हस्तकला ऐसे कलात्मक कार्य को कहते हैं जो उपयोगी होने के साथ साथ सजावट के काम में आता है। ऐसे कलात्मक कार्य इसके कारीगरों द्वारा हाथ से या सरल औजारों की सहायता से ही बनाया जाता है। हाथ से बनी ऐसी कलाकृतियां और आइटम्स में उकेरी गई कलाओं का धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक पहलुओं को महत्व दिया जाता है। हस्तशिल्प में मशीनों से होने वाले कार्य और मशीनों से बनाई जाने वाली कलाकृतियां इसमे सम्मिलित नहीं होती है।

हैंडीक्राफ्ट के प्रमुख आइटम्स - 


भारत में बनने वाले हैंडीक्राफ्ट के कई आइटम्स/वस्तु ऐसे है, जिनकी मांग भारत के बाहर विदेशों तक में है। ऐसे कई आइटम्स है, जिन्हें अनुभवी कारीगर अपने हाथो से तैयार करते हैं। कई वस्तुओ की मांग विदेश तक है, ऐसे कुछ हैंडीक्राफ्ट निम्न है -

धातु शिल्पकला - 


भारत में हमेशा से ही धातु के बर्तन और आभूषणों का निर्माण होता रहा है। भारतीय कारीगरों में धातु के उत्पाद बनाने का उत्तम कौशल है, इस कारण यहां धातु के बर्तनों का बढ़िया काम आज भी होता है। भारत सरकार भी जटिल शिल्प कौशल को आगे बढाने के लिए प्रयासरत रही है। देश में आमतौर पर, सोना, चांदी, पीतल, तांबा जैसी धातुओं का उपयोग मूर्तियों, आभूषणों, दैनिक उपभोग के साथ सजावटी बर्तनों के लिए किया जाता है। 

धातु की शिल्प कला बहुत व्यापक क्षेत्र है। जिसमें कई उप-श्रेणियाँ हैं जैसे बिदरी काम, तांबे की घंटी धातु, तांबे की मीनाकारी, पीतल के बर्तन और आदि। सोने चांदी के आभूषण और बर्तन इत्यादि। 

लकड़ी का फर्निचर - 


भारत से निर्यात होने वाले हैंडीक्राफ्ट में एक बड़ा हिस्सा लकड़ी के फर्नीचर का हैं। भारत में लकड़ी के फर्निचर की बनने वाली अनोखी डिजाइनों की विदेशों में भी अच्छी मांग है। लकड़ी के फर्निचर का भारत में वास्तुकला और बारीकी से काम किया जाता है। फर्निचर कारीगर बड़ी लगन से सटीकता से तैयार करते हैं। लकड़ी से बनने वाले दरवाजों, खिड़की, कुर्सी और अन्य सभी उत्पादों पर हाथ के औजारों से महीन चित्रकारी की जाती है। 

लकड़ी का फर्निचर भारत के विभिन्न हिस्सों जैसे आंध्र प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, गुजरात, बिहार और उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों के विभिन्न शहरो में होता है। यह कार्य लकड़ी के फर्निचर से जुड़े कई श्रमिकों को रोजगार देता है। यह कला भारत में कई लोगों के जीवनयापन का स्त्रोत होने के साथ उन्हें गरीबी से धकेल मध्यम वर्ग में ले आई हैं। लकड़ी के फर्निचर का निर्यात होने से इस कला को मजबूती मिली है और फर्नीचर अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार तैयार किया जाने लगा है।

हथकरघा शॉल और स्कार्फ - 


दुनियाभर में बिकने वाले शॉल और स्कार्फ का 85% काम भारत में होता है। ऐसे में आप इसके निर्यात और कार्य की निपुणता को आंकड़े से बेहतर समझ सकते हैं। भारत में हथकरघे से इनका काम होता है। भारत की इस क्षेत्र में ऐसी मजबूती का प्रमुख कारण फायबर और धागे के विशाल संग्रह से हैं। इस क्षेत्र में भारत की निपुणता का कारण करघे से मजबूत बुनाई किया जाना। शॉल और स्कार्फ बनाने का काम लगभग सम्पूर्ण भारत में होता है। 

रंगाई (कपड़ा) - 


भारत में कपड़े की रंगाई अथवा मुद्रण का कार्य सदियों से चला आ रहा है। भारत मे मधुबनी पेंटिंग्स से, बंधेज की उत्पत्ति मानी जाती है। ऐसे में आप समझ सकते हैं कि समय के साथ इस कार्य में कितनी उन्नति हुई होगी। खासतौर से राजस्थान की ही बात की जाए तो अजरक, बगरू, दाबू और सांगानेरी जैसी प्रिंटिंग (रंगाई छपाई) लोकप्रिय रही है। आज भारत निर्यात को ध्यान में रखते हुए प्रिंटिंग का विस्तार कर रहा है। निर्यात में बढावा मिलने से क्षेत्र से जुड़े कई हस्तकलाकारो को रोजगार मिला।

कढाई (कपड़े) - 


भारत में कपड़ो की प्रिंटिंग के अतिरिक्त कढाई का काम भी बेहतरीन तरीके से दक्ष कलाकारों द्वारा किया जाता रहा है। इस कार्य के कलाकार महीन और रंग-बिरंगे धागे से कपडों पर विभिन्न आकृतियों को उकेरने का काम करते हैं। जैसे प्रिंटिंग के विभिन्न प्रकार है, उसी तरीके से इसकी भी क्षेत्र के अनुसार विभिन्न शैलियां है, उनमे अपना अलग पैटर्न होता है। कुछ प्रचलित पैटर्न में कशीदाकारी, जरी कच्ची आदि प्रमुख है। इसमे पुष्प डिजायन, फूल के गुच्छे, कमल आदि प्रकार से कार्य किए जाते हैं। भारत में कढाई का कार्य राजस्थान, गुजरात, उत्तरप्रदेश, बंगाल से होते हुए कश्मीर तक फैला हुआ है।

चर्म/चमड़ा उत्पाद - 


भारत में बड़ी संख्या में मवेशी होने के कारण भारत का चमड़ा उद्योग हमेशा से भलीभूत रहा है। शुरू से बड़ी संख्या में इस क्षेत्र के श्रमिकों के लिए रोजगार का जरिया रहा है। भारत में चमड़े से जूते, चप्पल, पर्स, हैंडबैग और अन्य कई उत्पादों का निर्माण होता रहा है। वर्तमान में भारत चमड़े के हैंडबैग के निर्यात में अव्वल है। भारत में चमड़े का कार्य चेन्नई, आगरा, जोधपुर, गुजरात के कच्छ और केरल में प्रमुख रुप से होता है। वर्तमान में नारियल और केले से कृत्रिम चर्म उत्पाद बनाने का कार्य भी जोरों पर हैं।

जरी - 


सोने और चांदी के महीन धागों से किया जाने वाला कार्य जरी कहलाता है। परंपरागत रुप से भारत में जरी का कार्य रेशम और मखमली महंगे परिधानों पर किया जाता रहा है। महंगे परिधानों पर उच्च कौशल के साथ निपुण कारीगरों द्वारा कढ़ाई की तरह इस कार्य को अंजाम दिया जाता है। वर्तमान समय में परिधानों के साथ घर की सजावट के लिए उपयोग में लिए जाने वाले कपडों पर भी जरी का कार्य किया जाना आरम्भ कर दिया है।भारत में जरी का सर्वाधिक कार्य सूरत, गुजरात में होता है, इसके अतिरिक्त बरेली, बड़ोदरा, वाराणसी, आगरा और हैदराबाद में भी होता है। ईन सभी शहरों से जरी के कार्य किए गए कपड़ो को निर्यात भी किया जाता है। 

नकली आभूषण - 


सोने चांदी के आभूषण के अतिरिक्त भारत नकली आभूषणों का निर्यातक भी है। आभूषण बनाना एक कलात्मक कृति है। भारत में हज़ारों कारीगर इस पेशे से जुड़े हुए हैं। नकली आभूषणों में कांच, लाख, चमड़ा, कपड़ा के आभूषण हाथो से बनाए जाते हैं। इसके साथ ही भारत में अब मिट्टी से भी आभूषणों को तैयार किया जा रहा है। आभूषणों को बनाने के साथ इन पर मीनाकारी किया जाना भी भारत की प्राचीन परंपरा है। ऐसे आभूषण बनाने का कार्य दिल्ली, जयपुर, मुरादाबाद सहित देश के कई शहरो में होता है।

संगमरमर - 


भारत में सदियों से पत्थर और संगमरमर पर नक्काशी का कार्य किया जाता रहा है। भारत के कारीगरों में आज भी पत्थर को सजीव करने का हुनर है। कारीगरों के इसी हुनर के बल पर पत्थर मे नक्काशी, जड़ाई और जाली बनाने के साथ मूर्तियां बनाने की कला आज भी ज़िन्दा है। पत्थर पर विभिन्न कृतियों को उकेरने का काम ना सिर्फ कारीगरों को रोजगार दे रहा है बल्कि भारत के निर्यात में भी अहम योगदान दे रहा है। यह कार्य उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, राजस्थान और गुजरात मे बखूबी हो रहा है। पत्थर से गृह सज्जा, बाथ रुम फिटिंग और बर्तन बनाने के कार्य को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान प्राप्त है और इसका निर्यात भी बढ़ रहा है। 

सिरेमिक - 


भारत सिरेमिक उत्पादों की सूची में छठे स्थान का देश है। भारत में सिरेमिक से टाइल्स, खाने-पीने के बर्तन, कलाकृतियां और सजावट का सामान तैयार होता है। भारत में दिनोदिन सिरेमिक उत्पादों की संख्या और पहले से तैयार किए जाने वाले उत्पादों में डिजायन को बढावा मिल रहा है। भारत ब्लू पॉटरी, टेराकोटा पॉटरी, ब्लैक पॉटरी और खुर्जा पॉटरी का निर्यात कर रहा है। इससे भी कई श्रमिकों को रोजगार प्राप्त होता है। 

इसके अलावा पर्दे, चूड़िया, कॉटन आदि को भी तैयार करता हैं। सभी पर सीमित लेख में प्रकाश नहीं डाला जा सकता है। ऐसे में कोई महत्वपूर्ण उत्पाद हमारी सूची में नहीं आया है तो आप कमेन्ट करके भी बता सकते हैं। 

हैंडीक्राफ्ट का उपयोग - 


हाथ से बनने वाली वस्तुओं के विभिन्न उपयोग है उन्हीं उपयोग को ध्यान में रखते हुए ग्राहक इनका क्रय करते हैं। ऐसे में कुछ महत्वपूर्ण उपयोग निम्नलिखित है - 
  1. हैंडीक्राफ्ट का महत्वपूर्ण उपयोग घर और कार्यालयों की सजावट में है। 
  2. हैंडीक्राफ्ट वस्तुओ से दिखावा कर समाज में अपने पद, ओहदे और धन का प्रदर्शन किया जाना है।
  3. हैंडीक्राफ्ट का उपयोग अपने शौक़ को पूरा करना और उसका प्रदर्शन करना भी है।
  4. हैंडीक्राफ्ट की वस्तुओं में उत्तम फिनिशिंग होने से इसका उपयोग कला के प्रति प्रेम प्रकट करना हैं। 
  5. हैंडीक्राफ्ट वस्तुओं का उपयोग अपने को दूसरों से अलग दिखाने का हैं।
  6. हैंडीक्राफ्ट के उपयोग से अपनी कला और संस्कृति की विरासत को जिंदा रखने के साथ उसके विस्तार से भी हैं। 
  7. हैंडीक्राफ्ट का सामान आवश्यकता पूर्ति के लिए भी खरीदा जा सकता है। 
उपर्युक्त सभी अतिरिक्त भी हैंडीक्राफ्ट के उपयोग हो सकते हैं, जो व्यक्ति की सोच और उसकी आवश्यकता पर निर्भर करता हैं। कई लोग हैंडीक्राफ्ट को सिर्फ इसलिए खरीदते हैं क्योंकि यह उनका शौक होता है तो कुछ लोग प्रदर्शन के लिए। 

हैंडीक्राफ्ट महँगा होने के कारण -


हैंडीक्राफ्ट के उत्पाद मशीनों से बनने वाले उपकरणों और उत्पादों के मुकाबले में महंगे होते हैं, इनके महंगे होने के निम्नलिखित कारण है - 
  • हैंडीक्राफ्ट का कार्य हाथ से होता है, जो अपने आप में अनोखा और अद्वितीय होता है, जिसके कारण यह काफी महँगा होता है। 
  • हैंडीक्राफ्ट का काम सजावट के उदेश्य से होता है, जिसके कारण इस पर मेहनत अधिक लगती है। जब मेहनत अधिक लगती है तो कीमत भी अधिक वसूली जाती है। 
  • हैंडीक्राफ्ट का कार्य करने के लिए उच्च गुणवत्ता के कच्चे माल की आवश्यकता होती है, जो महँगा होता है। जब माल महँगा होगा तो उससे बनने वाले उत्पाद भी महँगे होते हैं। 
  • हैंडीक्राफ्ट को क्रय करने का उदेश्य शौक को पूरा करना होता है, ऐसे में क्रेता अधिक शिल्प को तव्वजो देता है। अधिक शिल्प का अर्थ अधिक महँगा। 
हैंडीक्राफ्ट अपने आप में अद्वितीय होता है, इसके कारण यह महँगा होता है। हैंडीक्राफ्ट वर्तमान समय में दिखावे (show off) का सामान बन गया है, जिसके कारण यह मशीनों से बनने वाले उत्पादों के मुकाबले में महँगा होता है। 

हैंडीक्राफ्ट के लाभ - 


हैंडीक्राफ्ट के लाभ इससे जुड़े हुए सभी पक्षकारों को है, ऐसे में हम संक्षिप्त में पक्षकारों को होने वाले लाभ की चर्चा करेंगे - 
  • कारीगरों को लाभ - हैंडीक्राफ्ट को बनाने वाले कारीगरों को हैंडीक्राफ्ट रोजगार देता है। 
  • खरीदने वालों को लाभ - खरीदने वाला व्यक्ति अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और अन्य पक्षकारों के मध्य अपने धन का दिखावा कर सकता है। 
  • समाज को लाभ - कला और संस्कृति का प्रसार और प्रचार होता है। 
  • सरकार को लाभ - हैंडीक्राफ्ट का निर्यात होने से सरकार को बिदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है। 
  • कला को लाभ - कला जिवित रहने के साथ ही इसमे समय के साथ अपेक्षित सुधार होते हैं।
इसका लाभ इसके सभी पक्षकारों को प्राप्त होता है। कला और संस्कृति के जिवित रहने के साथ ही इसका प्रसार भी होता है। 

हैंडीक्राफ्ट का निर्यात -


हैंडीक्राफ्ट अद्वितीय और अनोखा होने के कारण यह प्रतिवर्ष भारत से विदेशों को निर्यात होता है। इससे देश में विदेशी मुद्रा का आगमन होने के साथ ही इस क्षेत्र से जुड़े हुए कारीगरों को रोजगार प्रदान करता हैं। भारत से प्रतिवर्ष अरबों रुपये का निर्यात होता है। निर्यात से कारीगर इसे अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार बनाने के लिए प्रयत्नशील होते हैं और कला को अधिक मजबूती भी प्राप्त होती है। दूसरी ओर निर्यात किए जाने से भारत सरकार इसे बचाने के लिए शिल्पकारों को कम दरों पर ब्याज देने से लेकर निर्यात तक में कई प्रकार की छूट प्रदान करती है।

भारत से हैंडीक्राफ्ट का निर्यात जब से शुरु हुआ है, तब से भारत सरकार हैंडीक्राफ्ट के उत्पादन को बढावा देने के लिए विशेष जोन की स्थापना कर रही है। भारत सरकार के प्रयासों से पिछले कुछ वर्षो में भारत से हैंडीक्राफ्ट उत्पादों का निर्यात बढ़ा है। अपना खुद का हस्तशिल्प निर्यात व्यवसाय शुरू करने और निर्यात के लिए सरकार सभी प्रकार से सहयोग दे रही है। 

अन्य प्रश्न - 


प्रश्न - हैंडीक्राफ्ट को हिन्दी में क्या कहा जाता है? 

उत्तर - हैंडीक्राफ्ट को हिन्दी में हस्तकला कहा जाता है। 

प्रश्न - क्या हैंडीक्राफ्ट उद्योगों में मशीनों का उपयोग होता है? 

उत्तर - हैंडीक्राफ्ट उद्योगों को हस्तशिल्प उद्योग कहा जाता है, इनमे मशीनों का उपयोग नहीं होता है। इसके उत्पाद हाथ और हाथ से उपयोग किए जाने वाले औजारों से बनते हैं।

प्रश्न - भारत में हस्तशिल्प दिवस कब मनाया जाता है? 

उत्तर - भारत में प्रतिवर्ष 6 अप्रैल को राष्ट्रीय हस्तशिल्प दिवस मनाया जाता है। 

प्रश्न - हैंडीक्राफ्ट के अन्य नाम अथवा पर्यायवाची शब्द क्या है? 

उत्तर - कारीगरी, हस्तकला, शिल्पकला, दक्षकारी आदि। 

प्रश्न - टेराकोटा क्या है? 

उत्तर - मिट्टी का हस्तशिल्प टेराकोटा कहलाता है। 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ