आस्था अपना व्यक्तिगत विषय है, जिसे ना सिखाया जा सकता है और ना ही भुलाया जा सकता हैं। आस्था व्यक्ति के अंतर्मन का भाव है। यह भाव संगति और पारिवारिक शिक्षा से उत्पन्न होते हैं। एक बार जब यह भाव मन में पैदा हो जाता है तो जीवनपर्यंत उसी रुप में बना रहता है।
आस्था एक विश्वास, आशा या भाव के साथ जुड़ाव है। यह व्यक्ति को अपने विचार पर अडिग रहने के लिए व्यक्ति को मजबूती प्रदान करती है। आस्था के सम्बंध में सही और गलत का सवाल ही पैदा नहीं होता है। यह व्यक्ति के मन का ऐसा भाव है जो उसे किसी से यूँ जोड़कर रखता है जैसे पृथ्वी अपने गुरुत्वाकर्षण से हमे और आपको जोड़ी हुई है। हम दूर होने का प्रयत्न करे तो यह अपनी ओर खींच ही लेती है। वैसे ही आस्था किसी मनुष्य को किसी (जिसके प्रति आस्था है) से यूँ जोड़ लेती है कि वो उससे दूर हो ही नहीं सकता है।
खादी ऑर्गेनिक क्या है?
खादी ऑर्गेनिक एक वेबसाइट है, जिसे एक निजी कंपनी द्वारा बनाया गया। जो ऑनलाइन व्यवसाय करती है। इस वेबसाइट का कि स्थापना ड्रिलमैप्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड द्वारा किया की गई। वेबसाइट का निर्माण इसकी मूल कंपनी ड्रिलमैप्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने गलत तरीके से की। वेबसाइट के लोगो मे 'खादी' ट्रेडमार्क को गलत तरीके से लगाया गया। इस ट्रेडमार्क का गलत तरीके से उपयोग किए जाने का कारण लोगों को भ्रमित करने के साथ 'खादी' की साख का अनैतिक तरीके से लाभ उठाना भी था।
यह वेबसाइट उस समय सबकी नजर में आई तब वेबसाईट ने घर बैठे बिना किसी डिलिवरी शुल्क के राम मंदिर अयोध्या से प्रसाद घर भेजने का दावा किया। वेबसाइट ने दावा किया कि हम आपको घर बैठे महज डिलिवरी शुल्क ₹ 51/-और $ 11/- लेकर मंदिर की ऑर्गेनिक प्रसाद घर भेज देंगे, इसके लिए आपको डिलिवरी शुल्क के अतिरिक्त किसी भी प्रकार का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है। वेबसाईट द्वारा दावा किए जाने के बाद कई लोगों ने प्रसाद को बुक भी कराया लेकिन उन्हें नहीं मिली।
किसने बनाई खादी ऑर्गेनिक वेबसाइट?
खादी ऑर्गेनिक वेबसाइट में खादी एंव और ग्रामोद्योग आयोग (Khadi and Village Industries Commission - KVIC) का लोगो 'खादी' उपयोग में लिया जो भ्रामक था। वेबसाईट की स्थापना ड्रिलमैप्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक आशीष द्वारा इसकी स्थापना की गई थी। यह आशीष अमेरीका में मेटा (फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप की मालिकाना हक वाली कंपनी) कंपनी में काम करता हैं। और इसकी ड्रिलमैप्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी गूगल मैप के साथ कार्य कर रही है, जो नक्शे से रिलेटेड डिजिटल कार्य करती है।
वेबसाईट के सबकी नजर में आते ही और विभिन्न मीडिया समुह द्वारा भ्रामक वेबसाईट की जांच किए बिना ही घर बैठे ऑनलाइन प्रसाद मंगाने की खबरे पोस्ट की जाने लगी। विभिन्न मीडिया समुह द्वारा इस तरीके से खबरों को प्रसारित किया गया कि यह कार्य KVIC द्वारा किया जा रहा है। ऐसा इसलिए बताया जा रहा है था क्योंकि खादी ऑर्गेनिक वेबसाइट द्वारा गलत तरीके से खादी का उपयोग किया गया। मीडिया समूह की खबरे आने के बाद KVIC के अध्यक्ष मनोज कुमार सामने आए और इन्होंने इस वेबसाईट का KVIC के साथ किसी भी प्रकार का जुड़ाव होने से इंकार किया। उन्होंने साफ कर दिया कि यह वेबसाईट गलत तरीके से खादी के नाम का उपयोग कर रही है, इसके कृत्यों के लिए हमारी किसी भी प्रकार की जिम्मेदारी नहीं होगी।
खादी और ग्रामोद्योग आयोग द्वारा इसे भ्रामक बताए जाने के बाद विश्व हिन्दू पारिषद ने भी ऐसी किसी वेबसाईट की स्थापना को नकारा। इसके उपरांत श्रीराम मंदिर, अयोध्या ट्रस्ट "श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र" ने ऑनलाइन प्रसाद वितरण के लिए किसी भी प्रकार के प्लेटफॉर्म का ना होने का दावा किया। मंदिर ट्रस्ट की तरफ से स्पष्ट किया गया कि मंदिर ट्रस्ट घर बैठे प्रसाद प्राप्त करने के लिए ना ट्रस्ट कोई प्लेटफॉर्म का संचालन कर रहा है, ना ऐसा करने के लिए किसी को अनुमति दी गई है।
खादी और ग्रामीण उद्योग आयोग, विश्व हिंदू परिषद यश और श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के दावे के बाद यह स्पष्ट था कि खादी ऑर्गेनिक द्वारा किया जा रहा दावा भ्रामक हैं। लेकिन अब भी इसकी सच्चाई सामने आने में थोड़ा वक्त था, लेकिन इसकी पूर्ण सच्चाई भी सामने आ ही गई, जब मामला कोर्ट में पहुंचा।
इतना ही नहीं और दावे -
मेटा में काम करने वाले आशीष ने जनवरी माह में खादी ऑर्गेनिक वेबसाइट को लॉन्च करते समय दावा किया कि रामभक्त 'हनुमानजी' उसके सपने में आए और उसे घर-घर प्रसाद वितरण का आदेश दिया। उस सपने से प्रभावित होकर उसने महज डिलिवरी चार्ज वसूली के साथ ही प्रसाद की होम डिलिवरी के लिए वेबसाइट को लॉन्च किया है।
वेबसाइट महज प्रसाद वितरण का कार्य नहीं नहीं बल्कि अन्य कार्य पहले से कर रही थी, जो कार्य उसे श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र से जुड़ाव का दावा करने में मददगार थे। वेबसाइट श्रीराम मंदिर से जुड़ी हुई सामग्री जैसे टी-शर्ट, झंडा, शर्ट, गंगाजल, गमछा, राम दरबार, मंदिर की तस्वीरे और लकड़ी के राम मंदिर की स्ट्रक्चर आदि का विक्रय पहले से कर रही थी।
वेबसाइट द्वारा किया गया दावा पूरी तरह से भ्रामक होने के साथ उसने खुद को इस तरीके से प्रस्तुत किया कि वो श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र द्वारा अधिकृत है। साथ ही सरकारी एजेंसी का लोगो इस्तेमाल कर सरकार से जुड़ा हुआ भी दिखाया। इस तरह का कार्य करोड़ों रामभक्तों की आस्था के साथ खिलवाड़ थी, क्योंकि कंपनी का अस्तित्व झूठ की बुनियाद पर टिका हुआ होने के साथ दावे ही गलत तरीके से किए गए।
खादी ऑर्गेनिक वेबसाइट फर्जी -
जब खादी और ग्रामोद्योग आयोग द्वारा वेबसाइट को भ्रामक बता KVIC के साथ किसी प्रकार के जुड़ाव से इंकार कर दिया तो कोर्ट द्वारा इसकी जांच के आदेश दिए गए। कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि कंपनी (वेबसाइट) की वैधानिक निकाय (KVIC) के साथ क्या समझोता है?
जांच के बाद सुनवाई के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने कहा कि "वेबसाइट ने खादी और ग्रामोद्योग आयोग की सद्भावना का अनैतिक तरीके से फायदा उठाया, आयोग देश में कपड़ा व्यवसाय के विकास को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है और आयोग एक वैधानिक निकाय भी है। अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि वेबसाइट ने केवीआईसी के साथ खुद की साझेदारी प्रदर्शित करते हुए लोगों से पैसे ट्रांसफर करा धोखा दिया है। यह गलत है वेबसाइट ने ना सिर्फ भारतीय बल्कि बिदेशी रामभक्तों को भी भ्रमित किया है। वेबसाईट ने भ्रामक दावे किये हैं, जो अनैतिक हैं।
अब क्या हुआ वेबसाइट का?
हाई कोर्ट के आदेश में कहा गया कि वेबसाइट के दावे भ्रामक है। वैधानिक निकाय के ट्रेडमार्क “खादी" चिह्न का गलत उपयोग किया गया। साथ ही इस चिह्न वाले किसी भी सोशल मीडिया पेज को सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से हटाने का निर्देश दिया है। वेबसाईट और कंपनी के मालिकों को "खादी ऑर्गेनिक" चिह्न या किसी अन्य चिह्न के तहत सामान या सेवाएं बनाने, बेचने या पेश करने से रोक दी गई।
खादी और ग्रामोद्योग आयोग ने "खादी ऑर्गेनिक" वेबसाइट के संस्थापक आशीष सिंह और उसकी कंपनी मेसर्स ड्रिलमैप्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ ट्रेडमार्क उल्लंघन का मुकदमा दायर किया। अदालत ने जांच और तथ्यों के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंची कि "खादी ऑर्गेनिक" चिह्न में अनैतिक तरीके से आयोग के "खादी" ट्रेडमार्क का उपयोग किया। इस चिह्न के गलत उपयोग से 'श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र' ट्रस्ट के साथ संबद्धता होने की लोगों के मन में गलत धारणा पैदा हुई।
कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय के बाद यह वेबसाईट और इससे जुड़े हुए सभी सोशल मीडिया खाते निष्क्रिय कर दिए गए। अब ऐसी कोई वेबसाइट और राम मंदिर से घर पर प्रसाद डिलिवरी करने वाली कोई वेबसाईट उपलब्ध नहीं है।
आस्था से खिलवाड़ -
जो कुछ भी हुआ और देखने को मिला वो सब आस्था से खिलवाड़ था। ड्रिलमैप्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड का मालिक आशीष सिंह चाहता था कि लोगों को खादी और राम मंदिर में आस्था के नाम पर ठगा जाए। उसने यह पूरा खेल ही आस्था के नाम पर ही रचा। भगवान की प्रसाद के लिए ₹ 51/- की वसूली शुरु कर दी गई, किंतु मंदिर के ट्रस्ट को इस बात का भान भी नहीं था। साथ ही आस्था से जुड़े हुए शर्ट, टी-शर्ट और झंडा को भी बेचा जा सके इसके लिए वेबसाईट का नाम और लोगो खादी रखा। वेबसाइट का नाम और लोगो एक वैधानिक निकाय से चोरी कर कर लगाया। इतना ही नहीं भ्रामक होने के साथ ही लोगो के दिलों में निकाय के बारे में बसे हुए साख को भी तार-तार करने का प्रयास किया।
जहां तक राम मंदिर से जुड़ी हुई सामग्री बेचना भी उचित नहीं है, बिना ट्रस्ट की अनुमति से लेकिन वेबसाइट के संस्थापक ने तो अमेरीका में बैठकर भारत में प्रसाद डिलिवरी के नाम पर साइबर फ्रॉड को अंजाम दे दिया। यह सब खेल खेला गया आस्था के नाम से। लोगों के मन में राम मंदिर के प्रति प्रेम को देखते हुए। उसके द्वारा ऐसा करने के निम्न कारण थे।
- वेबसाईट का नाम खादी ऑर्गेनिक रखा, ताकि लोगों को भ्रम हो कि यह खादी और ग्रामोद्योग आयोग द्वारा संचालित की जा रहीं हो।
- वेबसाइट का लोगो भी खादी ही रखा, ताकि लोगों का विश्वास पक्का हो सके।
- प्रसाद वितरण का ऑफर देने से पूर्व मंदिर से जुड़ी हुई सामग्री का विक्रय शुरु किया ताकि लोगों को विश्वास हो सके कि यह वेबसाईट मंदिर ट्रस्ट से जुड़ी हुई है।
- हनुमान जी सपने में आने वाली बात एकदम से आस्था पर चोट थी।
- वेबसाईट संस्थापक ने प्रसाद का ऑफर इसलिए दिया ताकि लोग अधिक से अधिक बुक कर सके।
- जिन्होंने बुक की उनको डिलिवरी नहीं दी गई, देते भी कैसे? जब मंदिर में इस तरह की व्यवस्था ही नहीं थी।
- प्रसाद डिलिवरी का मूल्य ₹ 51/- इसलिये रखा, एक तो हिन्दू धर्म का शुभ अंक। दूसरा इस रकम के लिए कोई कैसे कोर्ट जा सकता हैं।
उपर्युक्त सभी बिंदु स्पष्ट करते हैं कि 'खादी ऑर्गेनिक' वेबसाइट पूरी तरह से भ्रामक और फर्जी थी। आस्था के साथ खिलवाड़ कर साइबर फ्रॉड को अंजाम देने के उदेश्य से बनाई गई। लेकिन कोर्ट द्वारा जांच के आदेश दिए जाने से इसकी सत्यता सामने आ गई। सत्यता सामने आते ही वेबसाइट बंद हो गई।
अन्य प्रश्न -
प्रश्न - खादी ऑर्गेनिक क्या है?
उत्तर - खादी ऑर्गेनिक एक फर्जी वेबसाइट थी। जिसने राम मंदिर की प्रसाद की घर-घर डिलिवरी करने के लिए लोगों से ऑनलाइन ₹ 51/- रुपये लिए, लेकिन प्रसाद किसी को नहीं मिली। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि यह वेबसाइट ड्रिलमैप्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक आशीष सिंह ने फर्जी तरीके से बनाई। इसका उदेश्य साइबर फ्रॉड को अंजाम देना था जो खादी और ग्रामोद्योग आयोग का नाम और लोगो गलत तरीके से इस्तेमाल कर फ्रॉड किया। दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश के बाद यह वेबसाइट बंद कर दी गई।
प्रश्न - क्या घर बैठे राम मंदिर से प्रसाद मंगाई जा सकती है?
उत्तर - जी नहीं, बिल्कुल भी नहीं। जब मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा हो रही थी, उस समय एक फर्जी वेबसाइट द्वारा घर-घर प्रसाद डिलिवरी का दावा किया लेकिन जांच में यह भ्रामक पाया गया। जांच के बाद दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश से वेबसाइट बंद कर दी गई। यह वेबसाइट पूरी तरह से फर्जी थी, जो श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ने भी बताता कि मंदिर की तरफ से ऑनलाइन प्रसाद की डिलिवरी के लिए कोई प्लेटफॉर्म नहीं है। वेबसाइट के द्वारा जो दावे किए जा रहे हैं, वो भ्रामक है। इसके बाद यह वेबसाइट बंद हो गई।
प्रश्न - श्रीराम मंदिर से घर बैठे प्रसाद कैसे मंगाये?
उत्तर - राम मंदिर से घर बैठे प्रसाद मंगाने का कोई तरीका नहीं है। अगर कोई वेबसाइट ऐसा दावा करती है तो यह भ्रामक हैं। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र (मंदिर ट्रस्ट) ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि राम मंदिर अयोध्या ऑनलाइन प्रसाद का वितरण नहीं करता हैं।
प्रश्न - क्या खादी ऑर्गेनिक, खादी और ग्रामोद्योग आयोग की वेबसाईट थी?
उत्तर - जी नहीं। खादी ऑर्गेनिक वेबसाइट ने गलत तरीके से खादी और ग्रामोद्योग आयोग का नाम और लोगो इस्तेमाल किया। दिल्ली हाई कोर्ट की लताङ के बाद वेबसाइट बंद हो गई। यह वेबसाइट मेटा में काम करने वाले आशीष सिंह ने बनाई थी।
प्रश्न - राम मंदिर से कितने रुपये की प्रसाद घर बैठे मंगाई जा सकती है?
उत्तर - राम मंदिर से घर बैठे प्रसाद नहीं मंगाई जा सकती है, क्योंकि मंदिर ट्रस्ट द्वारा ऑनलाइन प्रसाद वितरण की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। पहले एक वेबसाइट ने ₹ 51/- में होम डिलिवरी का विज्ञापन किया था, बाद में पता चला कि वो वेबसाईट फर्जी है। ऐसे में अब भी कोई ऐसा दावा करता हैं तो उसे सही ना माने।
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