भंडारा क्या होता है? क्यों किया जाता है, भंडारा? Bhandara

भंडारा क्या होता है? क्यों किया जाता है, भंडारा? Bhandara

भारत में विभिन्न प्रकार के दान की परंपरा सदियों से चली आ रही है। सभी प्रकार की वस्तुओं का भारत में आदिकाल से दान होता रहा है। दान की कहानियां प्राचीन साहित्य, शिलालेख और धार्मिक कहानियों, उपन्यासों में दान का जिक्र मिलता है। सभी प्रकार के दान के महत्व को भी धार्मिक कहानियो और ग्रंथो में स्पष्ट किया गया है।

भंडारा क्या होता है? क्यों किया जाता है, भंडारा? Bhandara


विभिन्न प्रकार के दान में एक दान है, अन्नदान। अन्न के दान का महत्व विभिन्न धार्मिक ग्रंथो में और कहानियों में भी उल्लेखित है। अन्नदान दान में कच्चा और पकाया गया दोनो प्रकार का अन्नदान किया जाता है। पकाए हुए अन्नदान के लिए अनुष्ठान या भंडारा किया जाता है। भंडारा किए जाने का उल्लेख सदियों से मिलते रहे हैं। 

भंडारा का अर्थ - 


भंडारा का अर्थ है, भंडार खोल देना। अन्न धन के भंडार को खोलकर सामूहिक दान किया जाना। स्पष्ट शब्दों में भंडारा एक उत्तम, धार्मिक और शुद्ध सात्विक शाकाहारी और साधुओं को दिया जाने वाला भोज है। इस भोज समूह में धार्मिक रीति-रिवाजों से दिया जाता है। भंडारा के बारे में कहा जाता है कि धार्मिक अनुष्ठान के बाद भंडारे का आयोजन किया जाना अतिआवश्यक होता है। बिना भंडारे के धार्मिक अनुष्ठान का फल प्राप्त नहीं होता है। 

भंडारा साधुओं का भोजन होने के कारण घरों में आजकल बहुत ही कम भंडारे का आयोजन होता है। आजकल भंडारे का आयोजन मंदिरों और मठों में बहुतायत से होता है। जब भी मंदिर और मठ में कोई धार्मिक अनुष्ठान होता है तो साधुओं को न्योता दे उन्हें भोज दिया जाता है। भोज पश्चात्‌ साधुओं को विदा करने से पूर्व दान-दक्षिणा दिए जाने की भी परम्परा हैं। 

भंडारा क्या होता है?


भंडारा हिन्दू धर्म में अन्नदान किया जाने वाला कार्य है, यह किसी धार्मिक अनुष्ठान के ठीक बाद किया जाता है। माना जाता है कि अन्नदान के बिना अनुष्ठान की पूर्ति नहीं होती है। ऐसे में खासतौर से मंदिर और मठ में होने वाले प्रत्येक अनुष्ठान के उपरांत भंडारा किया जाता है। भारत में लगभग सभी बड़े मंदिरों में भंडारे का आयोजन किया जाता है। भंडारा - साधुओं का भोजन भी कहलाता है, जिसके कारण यह शुद्ध सात्विक होता है। 

भंडारा एक प्रकार का भोज होता है, जो सामन्यतः मंदिर में किसी धार्मिक अनुष्ठान के समय आयोजित किया जाता है। भंडारा से पूर्व आसपास के लोगों और दूर-दूर तक के साधुओं को आमंत्रित किया जाता है। आसपास के लोगों और साधुओं को भोजन कराया जाता है। यह कार्यक्रम ठीक उसी प्रकार से होता है, जैसे किसी घर में जागरण के आयोजन के समय होता है। दोनों में फर्क़ इतना है कि जागरण में लोग और भजन करने वालों को बुलाया जाता है, भंडारे में लोगों के साथ साधुओं को विशेष रुप से आमंत्रित किया जाता है। 

भंडारा की कथा - 


भंडारे को लेकर हिन्दू धर्म में मान्यता है तो भंडारे की कहानिया भी है, आइए आपको बताते हैं इसके महत्व को दर्शाती यह कहानी - 

भंडारा की कथा "पद्म पुराण" में वर्णित है। एक बार विदर्भ क्षेत्र के राजा स्वेत मृत्यु के पश्चात्‌ जब परलोक पहुंचे तो वहाँ उन्हें भोजन प्राप्त नहीं हो सका। उनके विदर्भ क्षेत्र और राजकीय राजकोष मे अन्न-धन की कोई कमी नहीं थी। हालांकि जब वो परलोक पहुंचे तो वहाँ उन्हें मांगने पर भी अन्न का एक दाना भी प्राप्त नहीं हुआ। राजा स्वेत परलोक में हुई अपनी इस गति के कारण अंत में थक हारकर वो ब्रह्मा जी के समक्ष उपस्थित हुए और उनसे भोजन प्राप्त नहीं होने के कारण को जानने के लिए प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना को स्वीकार कर तब ब्रह्मा जी बोले कि, आप एक शक्तिशाली और धन-धान्य से भरे-पूरे राज्य के राजा रहे, लेकिन आपने अपने जीवन में ना कभी किसी को भोजन कराया और ना ही कभी अन्नदान किया। इसलिए आपको मृत्यु के समय पश्चात्‌ इस लोक में अन्न प्राप्त नहीं हो पा रहा है। राजा को अपनी भारी भूल का जब पता चला तो उन्होंने अपनी भावी पीढ़ियों के स्वप्न में जाकर भंडारा और अन्नदान करने को कहा और उन्होंने अपनी भावी पीढियों को अन्नदान के महत्व को समझाया। माना जाता है कि, तब से भंडारा किए जाने की शुरुआत हुई, जो आज भी चल रही है। 

भंडारा का महत्व -


भंडारा के धार्मिक और सामाजिक महत्व है। कहानी के जरिए आपको इस महत्व को स्पष्ट करने का एक प्रयास किया, फिर भी स्पष्ट तरीके से समझ नहीं आया तो पुनः इसके महत्व को एक बार स्पष्ट तरीके से बता देते हैं। 
  • धार्मिक अनुष्ठान का पूरा ना होना - बिना अन्नदान अथवा भंडारे के कोई भी प्रकार का धार्मिक अनुष्ठान सम्पूर्ण नहीं माना जाता है। बिना साधुओं को भोजन कराएं अनुष्ठान अधूरा रहता है, ऐसे में धार्मिक अनुष्ठान को पूरा करने के लिए भंडारा किया जाता है। 
  • आत्म संतुष्टि - भंडारे से भंडारा करने वाले व्यक्ति को आत्म-संतुष्टि प्राप्त होती है। उसे लगता है कि उसने एक नेक कार्य कर दिया है। यह धार्मिक मान्यता में विश्वास रखने वाले लोगों के लिए ठीक उसी प्रकार है, जिस प्रकार कॉलेज जाने वाले बच्चों के लिए जन्मदिन की पार्टी देना। उससे उन्हें आत्मसंतुष्टि मिलती है, वैसे ही धार्मिक स्वभाव के लोगों को भंडारे से संतुष्टि प्राप्त होती है। 
  • पितृ दोष से मुक्ति - ऐसा माना जाता है कि भंडारा किए जाने से या अन्नदान करने से पितर दोषों से मुक्ति मिलती है। इसका लाभ पितरों को भी प्राप्त होता है। मृत्यु भोज का एक यह भी कारण हो सकता है। 
  • परलोक में प्राप्ति - कहानी के जरिए आपको बताया कि राजा स्वेत को परलोक में इसलिए भोजन प्राप्त नहीं हुआ क्योंकि उन्होंने कभी अन्नदान नहीं किया था। जो अपने जीवन में अन्नदान करता हैं, उसे परलोक में भी भोजन की प्राप्ति होती है। इसी मान्यता को ध्यान में रखते हुए भंडारा किया जाता है। 
  • पुण्य - हिन्दू धर्म और सनातन संस्कृति में दान का महत्व बेहतर तरीके से समझाया गया है। जो व्यक्ति दान करता हैं, उसे पुण्य की प्राप्ति होती है। जो लोग दान नहीं करते हैं, उन्हें परलोक में भोजन तक नहीं मिलता है। ऐसे में सभी प्रकार के दान में अन्नदान को महत्त्व देते हुए भंडारा किया जाता है। 
भंडारा धर्म और संस्कृति का हिस्सा है, जो बताता है कि अन्नदान महत्वपूर्ण है। ऐसे में व्यक्ति को अपनी श्रृद्धा के अनुसार भूखे को भोजन कराना चाहिए। 

गाँव के मंदिर का भंडारा -


गांव के मंदिर में अक्सर भंडारा देखने को मिलता है। जब कोई विशिष्ट दिवस या मेला होता है, उस दिन गाँव के मंदिर में भंडारा होता है। यह कोई भंडारा ना होकर मानो गाँव का उत्सव है। सभी गॉव के लोग भंडारे कि पूर्व संध्या ही मंदिर में जमा होने लगते हैं। ये सभी लोग आने वाले अतिथियों के लिए भोजन, विश्राम और अन्य सभी प्रकार की व्यवस्था में रात से ही जुट जाते हैं। सभी ग्रामवासियों को उनकी रुचि के अनुसार काम सौंप दिया जाता है। आने वाले अतिथियों के लिए जलपान से विदा होने तक के सभी काम ग्रामीण आपस में बांटकर काम में जुट जाते हैं।

सवेरे भंडारे की शुरुआत होती है तब महिलाए और बच्चे भी मंदिर पहुंचने लगते हैं। ग्रामीण दूर से आने वाले साधु संत का आशीर्वाद लेने से उनके विश्राम की व्यवस्था में मग्न हो जाते हैं।। सवेरे ही धार्मिक अनुष्ठान के रीति-रिवाज, कथा, भजन और अन्य निमित कार्य शुरु हो जाते हैं। पाठ पूजा के साथ यह धार्मिक अनुष्ठान का काम दोपहर तक पूरा हो जाता है। अनुष्ठान के पूरा होते ही भंडारा शुरु होता है।

ग्रामीण बूंदी, लापसी, हलवा, सब्जी और पुरी को अतिथियों और. महिलाओं बच्चों को परोसना शुरु करते हैं। सबसे पहले बाहर से आए साधु संतों को भोजन कराया जाता है। उनके बाद महिलाएं और बच्चों को भोजन कराया जाता है। बच्चे और महिलाएं भोजन से अधिक पूरे कार्यक्रम को देखने में अधिक विश्वास करते हैं, वो एक-एक गतिविधि को ध्यान से देखते हैं। शाम होते-होते कार्यक्रम पूर्ण होता है। 

फिर इंतजार होता है, अगले वर्ष के मेले का या अगले वर्ष के विशिष्ट दिवस का। 

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