बीएसएनएल की कामयाबी मे किसका हाथ? सरकार का या किसी और का। BSNL

बीएसएनएल की कामयाबी मे किसका हाथ? सरकार का या किसी और का। BSNL

आजकल बीएसएनएल (भारत संचार निगम लिमिटेड) को लेकर हर तरफ चर्चा हैं। बीएसएनएल ने जुलाई, 2024 में रिकॉर्ड सिम कार्ड बेचने के साथ ही प्रतिदिन हजारों निजी कंपनी के ग्राहको को सिम पोर्ट के जरिए से अपने पाले में कर लिया है। कंपनी के तेजी से बढ़ते हुए ग्राहकों को लेकर जबरदस्त चर्चा में हैं।

बीएसएनएल की कामयाबी मे किसका हाथ? सरकार का या किसी और का। BSNL

बीएसएनएल भारत की एकमात्र सरकारी टेलीकॉम कंपनी हैं। इसकी स्थापना 1 अक्तूबर, 2000 को अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान हुई। बीएसएनएल मोबाइल क्षेत्र में भारत की पहली कंपनी हैं, जिसने इनकमिंग (प्राप्त होने वाली) कॉल को निशुल्क किया। वर्तमान में यह मिनी रत्न का दर्जा प्राप्त कंपनी हैं। 

बीएसएनएल क्यों चर्चा में - 


हाल ही में बीएसएनएल एक बार पुनः कई बरसों के बाद मे चर्चा में हैं। इस बार बीएसएनएल के चर्चा में आने का कारण कोई डूबती हुई सरकारी कंपनी बनना नहीं है। इस बार बीएसएनएल की चर्चा का कारण कंपनी की उन्नति और प्रगति से जुड़ी हुई खबरों से है। एक नहीं एक से अधिक सकारात्मक खबरे बीएसएनएल के लिए है। इतना ही नहीं बरसों के बाद इसी सरकारी कंपनी के लिए इस तरह की खबर सुनने में आ रही है। लोग बढ़चढ़कर कंपनी के उत्पाद (सेवा) ना सिर्फ ले रहे हैं बल्कि दूसरे लोगों को भी कंपनी की सेवा लेने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। 

बरसों के इंतजार के बाद खबर आई है कि बीएसएनएल ने देशभर में 4जी सेवाओं के लिए अपना स्वयं का नेटवर्क तैयार कर सेवाएं शुरु कर दी है। बीएसएनएल द्वारा ऐसी घोषणा ठीक उस वक्त की, जब निजी टेलीकॉम कंपनियों ने अपने टैरीफ चार्ज पहले के मुकाबले में लगभग 25-30% तक बढ़ा दिए। निजी कंपनियों द्वारा टैरिफ चार्ज बढ़ाने और बीएसएनएल द्वारा 4 जी सेवाओं की शुरुआत लगभग एकसाथ होने से थकी हारी सरकारी कंपनी एक बार पुनः प्रतिस्पर्धा के दौर में लौट आई है। 

इस बार बीएसएनएल निजी टेलीकॉम कंपनियों के साथ ना सिर्फ प्रतिस्पर्द्धा के दौर में टरकर सामना कर रही है से आगे की बढ़कर खबर है। बीएसएनएल नए ग्राहक जोड़ने के साथ ही निजी टेलीकॉम कंपनियों के ग्राहको को अपने पाले में ले रही हैं। कई निजी कंपनियों के ग्राहक अपनी सिम को पोर्ट करा बीएसएनएल से जुड़ रहे हैं। 

बीएसएनएल कभी थी नंबर 1 मोबाइल कंपनी - 


बीएसएनएल की स्थापना के बाद जल्द ही अपने प्रतिस्पर्धियों के पछाड़ नंबर 1 कंपनी बन गई। बीएसएनएल को स्थापना के बाद अपना विस्तार करने के लिए सबसे अधिक उपयोगी साबित हुई, निःशुल्क इनकमिंग कॉल। उस समय भारती (एयरटेल) एस्सार हच (वोडाफोन) और रिलायंस को पछाड़ दिया। सभी को पछाड़ बहुत कम समय में मोबाइल नेटवर्क की सबसे बड़ी और सर्वाधिक ऐक्टिव ग्राहक वाली कंपनी बनकर उभरी। 

उस समय को याद करे तो 2004-05 में बीएसएनएल के कार्यकालो पर सिम खरीदने वालों का हुजूम उमड़ता था। बीएसएनएल की आउटगोइंग कॉल भी अन्य मोबाइल कंपनी के मुकाबले में सस्ती हुआ करती थी। कंपनी के पास अन्य कंपनी के मुकाबले में कई प्रतिस्पर्धी सेवायें और लाभ थे। 

सरकारी नीतियों से पिछड़ गई बीएसएनएल - 


समय और सरकार की नीतियों के साथ बीएसएनएल के लिए बहुत ही कम समय में बुरा दौर शुरु हो गया। कई उन्नत सुविधा लेकर उतरी बीएसएनएल बहुत ही कम समय में निजी कंपनियों से पिछड़ने लगी। वाजपेयी सरकार में बनी यह कंपनी मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में निजी कंपनियों से पिछड़ने लगी। बीएसएनएल के पिछड़ने और प्रतिस्पर्धा से बाहर होने के लिए कोई जिम्मेदार है तो वह है - मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार। तत्कालीन सरकार की नीतियां बीएसएनएल के लिए घाटे का सौदा साबित हुई। मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार की निजी मोबाइल नेटवर्क वाली कंपनियों को पीछे के दरवाजे से फायदा पहुंचा उन्हें अधिक अग्रिम बनाने की नीति बीएसएनएल के लिए काल साबित हुई। 

मनमोहन सिंह के काल में जब भारतीय मोबाइल नेटवर्क 2जी से 3जी में प्रवेश कर रहा था, तब सरकार की इस कंपनी के प्रति उदासीनता कंपनी पर भारी पड़ गई। वर्ष 2008-09 में पहली बार भारत में 3जी स्पेक्ट्रम की नीलामी होनी थी। तत्कालीन सरकार ने नीलामी की प्रक्रिया के लिए कंपनियों के आवेदन लेने से पहले ही 3G स्पेक्ट्रम को निजी कंपनियों को आवंटित कर दिया। सरकार का यह कदम बीएसएनएल पर बहुत भारी पड़ गया। बीएसएनएल प्रतिस्पर्धी सेवा प्रदान कर बाजार में बने रहने से बाहर हो गई। उस वक्त मोबाइल से इन्टरनेट ब्राउजिंग करने और विभिन्न सोशल साइट्स और वीडियो कॉल करने वाले बीएसएनएल से निजी कंपनियों का रुख करने लगे। 

हालांकि बाद में सरकार ने बीएसएनएल को 3G स्पेक्ट्रम आबंटित कर दिया लेकिन इसे धरातल पर उतारने के लिए आवश्यक उपकरणों के खरीद के लिए वर्ष 2013 तक ना अनुमति दी और ना ही आपूर्ति की। ऐसे में कंपनी 2013 तक 3G सेवाओं की शुरुआत नहीं कर पाई। इस समय निजी कंपनी इससे इतनी आगे निकल गई कि, बीएसएनएल की उन तक पहुंच सम्भव ही नहीं थी। 

4G और बीएसएनएल - 


अप्रैल 2012 में उस समय की नंबर 1 मोबाइल नेटवर्किंग कंपनी एयरटेल कोलकाता में 4G सेवाओं को लॉन्च कर चुकी थी। दूसरी तरफ बीएसएनएल 3G सेवाओं की शुरुआत करने के लिए आवश्यक उपकरणों की आपूर्ति का इंतजार कर रही थी। जब 4G स्पेक्ट्रम की नीलामी शुरु हुई तब प्रतिस्पर्द्धा से बाहर हो चुकी और लगातार वित्तीय घाटे का सामना कर रही यह सरकारी कंपनी नीलामी में हिस्सा लेने में सक्षम ही नहीं थी। ऐसे में कंपनी ने नीलामी में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। 

बीएसएनएल की कामयाबी मे किसका हाथ? सरकार का या किसी और का। BSNL

वर्ष 2014 की शुरुआत में में शुरू हुई 4G स्पेक्ट्रम की नीलामी में एयर टेल, वोडाफोन, रिलायंस कम्युनिकेशन, आइडिया, यूनिनॉर और एयरसेल के साथ नई कंपनी रिलायन्स जियो पहुंची। इन सभी कंपनी ने 4G स्पेक्ट्रम के लिए कुल 22 सर्कल से कई सर्कल हासिल किए। एयरटेल ने सर्वाधिक 15 और रिलायंस जियो ने 14, वोडाफोन ने 11 सर्कल हासिल किए। बीएसएनएल इसमे नदारद रही। 

4G स्पेक्ट्रम की नीलामी के बाद हुए आम चुनाव में मनमोहन सिंह सरकार की विदाई हो गई। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन (भारतीय जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत) की सरकार बनी। सरकार बदलने से भी बीएसएनएल के दिन नहीं बदले। रिलायंस जिओ की बाजार में धमाकेदार एंट्री हुई। अपने प्लान और डाटा स्पीड के दम पर जियो ने पूरे बाजार पर कुछ ही समय में क़ब्ज़ा जमाते हुए, जमी जमाई निजी कंपनियों को भी प्रतिस्पर्द्धा से बाहर कर दिया। 

भारतीय मोबाइल नेटवर्क में बीएसएनएल (निःशुल्क इनकमिंग कॉल) के बाद जियो ने कम समय में नंबर 1 की पोजीशन हासिल कर ली। जियो के सामने बीएसएनएल बाजार से बाहर हो समाप्ति की कगार पर आ गई। वर्ष 2008 से लगातार ऑपरेटिंग लॉस (क्रियान्वयन घाटा) उठा रही कंपनी अब कर्ज के बोझ में दबने लगी। कंपनी की वित्तीय स्थिति दिनोदिन बिगड़ती चली गई और ग्राहक भी बीएसएनएल से जिओ और अन्य कंपनियों की तरफ चले गए। 

कर्मचारियों को वेतन के लाले - 


जियो के बाजार में उतरने के बाद कंपनी 4G सेवाओं को शुरु करने का साहस तक नहीं दिखा सकी। ऐसे में कंपनी पर वित्तीय भार बढ़ता ही चला गया। वित्तीय घाटे में डूबी हुई कंपनी अब इस स्थिति में पहुंच चुकी थी कि उसके पास अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए पैसे तक नहीं थे। 

वर्ष 2019 में बीएसएनएल के पास अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए पैसे नहीं थे। बीएसएनएल कर्मचारी वेतन और पेंशन के लिए हड़ताल और आमरण अनशन पर चले गये। नवंबर माह में हुई इस हड़ताल में कर्मचारियों ने सरकार पर कई आरोप लगाए। 

बीएसएनएल को राहत पैकेज - 


आखिरकार जून, 2023 में सरकार ने बीएसएनएल को पुनर्जीवित करने के उदेश्य से 89,047 करोड़ का राहत पैकेज दिया। सरकार ने बीएसएनएल की कुल अधिकृत पूंजी 1.50 लाख करोड़ को बढ़ाकर 2.10 लाख करोड़ कर दिया। इसके अतिरिक्त सरकार ने इसे अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने के उदेश्य से 4G स्पेक्ट्रम भी उपलब्ध कराए। 

पैकेज देते समय सरकार ने घोषणा की इस पैकेज का उपयोग बीएसएनएल अपनी 4G और 5G सेवाओं को शुरु करने से लेकर इन्हें बेहतर बनाने के लिए करेगी। 

बीएसएनएल के लौट आए अच्छे दिन - 


बीएसएनएल के एक बार फिर अच्छे दिन लौट आए हैं। इसी के कारण बीएसएनएल पुनः चर्चा में आयी है। अब बीएसएनएल के प्रतिदिन नए ग्राहक जिस रफ्तार के साथ बढ़ रहे हैं, उस रफ्तार से इस वर्ष के अंत तक बीएसएनएल फिर एकबार देश की सबसे बड़ी मोबाइल नेटवर्क कंपनी बढ़ सकती है। बीएसएनएल के अच्छे दिनों के लिए निम्न कारक जिम्मेदार है - 

बीएसएनएल की देशभर में 4G सेवायें शुरु - 


साल 2024 के मध्य तक बीएसएनएल ने अधिकांश राज्यों के शहरो के साथ दूर-दराज के इलाक़ों में 4G की सेवाओं की शुरुआत कर दी। बीएसएनएल ने अपनी 4G सेवायें शुरु करने के साथ ही ऐसे कई प्लान्स ग्राहको को ऑफर किए जिससे ग्राहक बीएसएनएल से जुड़ने का मानस बनाने लगे ही थे कि निजी कंपनियों ने अपने टैरिफ प्लान की दरे बढ़ा दी। निजी कंपनियों द्वारा बढ़ाए गए प्लान बीएसएनएल के लिए शुभ संकेत साबित हुए। 

निजी कंपनी के कई ग्राहक प्रतिदिन अपनी सिम को बीएसएनएल में पोर्ट करा रहे हैं। बीएसएनएल ना सिर्फ अपने नए ग्राहक बना रहा है, बल्कि निजी कंपनियों के ग्राहक छीनकर अपने पाले में करता हुआ नजर आ रहा है। बीएसएनएल को जिस प्रकार के दिनों का इंतजार बरसों से था, वो दिन अब लौट आए हैं। 

बीएसएनएल की कामयाबी का श्रेय किसे? 


अब अहम सवाल खड़ा होता है कि बीएसएनएल के अच्छे दिन लौट आए हैं तो इसके लिए बीएसएनएल किसे श्रेय दे। देश की जनता किसे श्रेय दे? आप और हम किसे श्रेय दे? ऐसे सवालों का जवाब ढूढ़ने से पहले आप निम्न सवाल का जबाब स्वयं को दे तो आपकी समझ में आ सकता है। ये सवाल निम्न है - 
  1. बीएसएनएल की दुर्गति किसने की? 
  2. बीएसएनएल को 3G स्पेक्ट्रम किसने नहीं दिया? 
  3. बीएसएनएल के घाटे का कारण 3G स्पेक्ट्रम नहीं दिया जाना था, तब भी बरसों तक क्यों नहीं दिया? 
  4. बीएसएनएल को आवश्यक उपकरण किस सरकार ने और क्यों नहीं दिए? 
  5. बीएसएनएल को राहत पैकेज दे पुनः किसने खङा किया? 
उपर्युक्त सभी प्रश्नो का उत्तर ढूँढने की कोशिश की जाए तो क्रम संख्या 1 से 4 तक के प्रश्नो का उत्तर है, मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार। यूपीए सरकार बीएसएनएल की दुर्गति के लिए जिम्मेदार है। उस सरकार ने देश की सबसे बड़ी मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनी को ना सिर्फ घाटे में डाला बल्कि प्रतिस्पर्धा से बाहर तक कर दिया। सरकार ने निजी कंपनियों की तुलना में हमेशा बीएसएनएल की उपेक्षा की, जो कंपनी के लिए काल साबित हुई। 

पांचवे प्रश्न का उत्तर है - नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार। इस सरकार ने ना सिर्फ बीएसएनएल को राहत पैकेज दिया बल्कि आवश्यक उपकरण भी प्रदान किए। साथ ही बीएसएनएल की अधिकृत पूंजी को भी बढ़ाया। 

सभी तथ्यों के अध्ययन से इतना तो स्पष्ट है कि आज वो बीएसएनएल के अच्छे दिन लौट आए हैं, इसका श्रेय किसी को जाता है तो वह है, नरेंद्र मोदी सरकार। इस सरकार की नीतियों और बीएसएनएल के प्रति सकारात्मक धारणा से आज कंपनी पुनः लौट आयी है, बाजार में निजी कंपनियों को पुनः कड़ी प्रतिस्पर्धा देने के लिए। 

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