बूंद बूंद से बनता है सागर, बिन संचय नदिया के नीर सूख जाए। Bund Bund

बूंद बूंद से बनता है सागर, बिन संचय नदिया के नीर सूख जाए। Bund Bund

बचपन से आप सुनते आए हैं, बूंद बूंद से बनता है सागर। बूंद-बूंद से ही घड़ा भरता है। हर बूंद होती है अनमोल उसे संचय करने से ही बनते हैं, तालाब और समंदर। बूंद भले जल की हो या कोई और चीज़ की, सब अनमोल है। हर बूंद की कीमत है, विद्वान और गुणी ही इस कीमत की पहचान सकते और समझ सकते हैं।

बूंद बूंद से बनता है सागर, बिन संचय नदिया के नीर सूख जाए। Bund Bund

जल को ही ले लीजिए, बरसात होती है तो बूंदे गिरती है, इन्हीं से तालाब भरते हैं। तालाब तब भरते हैं, जब इनकी कीमत को समझा जाता है। कीमत को समझने का अभिप्राय तालाब बनाए जाते हैं और उनमें पानी के बहाव को लाया जाता है, इसी से सालभर पीने, नहाने और अन्य कामों के साथ कृषि कार्यो के लिए उपयोग में लिया जाता है।

बूंद का अर्थ -


बूंद का अर्थ जल या किसी अन्य तरल पदार्थ के छोटे से अंश से है, जो भूमि या अन्य वस्तु पर गिरते ही गोल घेरे का या अन्य कोई आकार प्राप्त कर लेता है। बूंद एक छोटा सा अंश होता है, इसका उपयोग सामन्यतः टपकने या गिरने वाले तरल पदार्थ के लिए किया जाता है। इसके कुछ अन्य नाम कतरा और टोप है।

बूंद शब्द का उपयोग तरल पदार्थ के अतिरिक्त छोटी-छोटी चीजों के लिए भी कहा जाता है। सामन्यतः रंगीन कपड़ों में की जाने वाली कशीदाकारी में जो बूटे बनाये जाते हैं, इनके एक अंश को बूंद कहा जाता है।

बूँद तो एक आभास है जो गिरती हुई दिखती है। जितनी तेजी से बूंद गिरे उतना ही तेजी से आँगन गिला हो जाता है। ऐसे ही आज की सबसे बड़ी बूंद है रुपया। रुपया भी जितनी तेजी से जेब में गिरता है उतनी ही तेजी से जेब भरती है। रुपया और जल में एक समानता भी है, दोनों का संचय करना होता है। अगर कोई निकास रह जाता है तो दोनों जिस तेजी से आते हैं, उसी तेजी से निकल जाते हैं। लोग रास्ता और लीकेज ढूंढते है पर नज़र ही नहीं आता है। लीकेज तो तब मिलता है, जब उसे संचय करने के लिए पाल (बाँध) बनाया हो। 

एक बूंद की कीमत - 


जल की प्रत्येक बूंद की एक उचित कीमत होती है। इसी के कारण इसे संचित किया जाता है, इसे व्यर्थ बहा दिया जाए तो गर्मी में जीना संभव नहीं होता है। गर्मी में उपयोग लिया जाने वाला पानी बरसात के पानी का कुछ संचित हिस्सा ही तो होता है। जो संचित कर दिया जाता है, उसकी कीमत होती है। संचित जल की एक-एक बूंद की कीमत होती है। उन इलाकों को जरा एक बार देखिए या सोचिए जहां बरसात के दिनों में भी नाममात्र की बरसात होती है। बरसात में गिरने वाली जल की बूँदों का संचय कर इसे सालभर उपयोग में लिया जाता है। इसके संचय के लिए भूमिगत टैंक (टांका) बनाया जाता है। 

जैसे बारिश की उस बूंद की कीमत होती है, जिसे संचित कर दिया जाता है। ठीक उसी प्रकार से कमाए गए धन में भी उसी की कीमत है, जिसे संचित अथवा बचत के तौर पर जमा किया गया है। ऐसे ही उस हर चीज़ की कीमत है, जिसे आप बचा लेते हैं। जो व्यर्थ में बहा दिया है, वो समंदर के खारे पानी से मिलकर व्यर्थ हो चुका है, उसकी कभी कोई कीमत नहीं हो सकती है। ठीक इसी प्रकार जो धन कहीं से आता है, उसे व्यर्थ ही खर्च कर दिया जाए तो उसकी कोई कीमत नहीं रह जाती। कीमत उसी की है जो उचित स्थान पर बचत के तौर पर रखा गया है। 

बूंद-बूंद का संचय - 


बूंद-बूंद का संचय ही सागर का रहस्य है। सागर या समंदर में जल को संचित किए जाने की शक्ति होती है। यह शक्ति उस जल को अपनी ओर खींचती है, जिसका संचय उचित तरीके से नहीं किया गया है। नदियों का बहता जल अपनी आखिरी मंजिल सागर में जा गिरता है। खेतों का बहता पानी नदी नाले में बह जाता है या फिर धरती की गहराई में समा जाता है। उचित व्यवस्था नहीं होने पर यह वाष्प बन उड़ जाता है। बिन संचय के इसकी कीमत सम्भव नहीं है। संचय तो बूंद-बूंद से ही होता है। जहां बूंद-बूंद का संचय नहीं होता वो ऊंची कीमत दे दूर से जल मंगवाते है। 

ऐसे ही धन का संचय भी बूंद-बूंद (रुपया-रुपया, पैसा-पैसा) से ही होता है। जिस बूंद का संचय नहीं किया गया वो आसपास के बड़े स्त्रोत (सेठ-साहूकार) की तिजोरी में उनके संचय के साथ जा मिलेगी। रुपये का बहाव भी जल की भांति ही है। दोनों में समानता है बिन संचय के ऐसी जगह जा गिरना जहां संचय सम्भव है। बुजुर्ग भी कहते हैं 'रुपया, रुपये को खिंचता है'। रुपये में चुंबक की तरफ (सेठ-साहूकार) खिंचे जाने की शक्ति है, अधिक धन में अधिक गुरुत्वाकर्षण होता है, जो आसपास की छोटी रकम को अपनी और खिंचता है। लेकिन छोटी रकम को मजबूती से पकड़ा रखा जाए तो यह गुरुत्वाकर्षण व्यर्थ हो जाता है। 

संचय करने के लिए हर बूंद को उस तरफ बहाना होगा जहां भारी भरकम संचय करने वाली शक्ति की तरफ रुख ना हो। बहाव का रास्ता रोक उसकी दिशा में परिवर्तन कर अपने स्त्रोत की तरफ बहाव करना होगा। ऐसा रुपये में भी लागू होता है, उसके बहाव (खर्च) के रास्ते को समझ उस तरफ का बहाव रोकना होगा। 

घट भरने में लगता है, समय - 


बूंद-बूंद से घट भरने में समय लगता है। हाथो-हाथो घड़ा नहीं भरता। आदमी की प्यास बुझाने के लिए घड़ा ही काफी होता है, लेकिन घड़ा बूंद-बूंद से ही भरता है। घड़ा कोई समंदर नहीं जो तत्काल भर जाए और वाष्प बन उड़ भी जाए। घड़े में जमा पानी आसानी से ना निकलता है और ना ही वाष्प बन उड़ता है। घड़े में जमा पानी हमेशा साथ देता है, परिस्थिति कैसी भी हो। घड़े की खासियत है कि उसमें बूंद-बूंद ही जमा होता है अपनी बनावट के कारण और निकलता भी बूंद-बूंद ही है। उल्ट जाए तब भी पूरा पानी नहीं बह जाता है। इसलिए कहा जाता है, बूंद-बूंद से घड़ा भरता है।

घड़े जैसी ही होती है आदमी की बचत। बूंद-बूंद से होती है, कभी एकदम से नहीं होती। बूंद-बूंद से घड़ा भर जाता है, वैसे ही आदमी की बूंद-बूंद की बचत उसे इतनी बचत करा देती है जो उसके लिए एक निश्चित समय अथवा परिस्थिति के लिए उपयुक्त हो। घड़े में जब बूंद गिरने ही ना दी जाए तो वो कभी भरेगा ही नहीं। ऐसे में जब रुपये का संचय ही नहीं किया जाए तो कभी टिकेगा ही नहीं। दोनों में परिश्रम की आवश्यकता होती है। बिना परिश्रम के कुछ नहीं सम्भव नहीं होता है। 

व्यर्थ खर्च - 


भले पानी हो या जीवन किसी को व्यर्थ खर्च नहीं करना चाहिए। कहा जाता है कि समय अनमोल है, जिसे कैद नहीं किया जा सकता है। बीत गया तो बीत गया, वैसे ही धन जो रीत (खर्च) हो गया बस गया। समय काम करने पर भी जाता है और काम ना करे तब भी जाता है, ऐसे में व्यर्थ में ही जाया करने से बेहतर है, कुछ किया जाए। समय की ही भांति धन भी उपयोग और अनुपयोग दोनों तरीकों से जाता है। उपयोगी तरीके में कुछ खरीदने या कोई चीज़ लेने मे जाता है, लेकिन अनुपयोगी फिजूल में ही जाता है। बूंद-बूंद आते ही निकल जाता, पता ही नहीं चलता कहाँ खर्च हो गया। 

जल ही जीवन है तो दूसरी ओर धन ही प्रतिष्ठा का जरिया है। ऐसे में दोनों का खर्च उचित नहीं है। एक जीवन देता है तो दूसरा प्रतिष्ठा। चार आदमी उसी को पूछते हैं जिसकी जेब में माल होता है। यह माल किसी के पास अकस्मात ही आ जाए तो पुलिस पूछने आ सकती है। ऐसे में माल का बूंद-बूंद में ही आना जरूरी होता है। जिसके पास पहले से है, इसके पास तो थैले भरकर भी आ सकता है क्योंकि धन में भी गुरुत्वाकर्षण होता ही है। रुकने का कहीं नाम नहीं लेता है तो वह है जिसके पास नाम मात्र का धन हैं। 

दो बूंद जिंदगी की -


आपको याद होगा कि किसी समय प्लस पोलियो अभियान भारत में जोर-शोर से चलता था। हर महीने घर-घर 0-5 वर्ष के बच्चों को दवा पिलाने का कार्य घर-घर पहुंच सरकारी कर्मचारी किया करते थे। उनके पास एक थैला होता था, प्लस पोलियो अभियान का, जिस पर लिखा हुआ होता था 'दो बूंद जिंदगी की'। हालांकि वह टैग लाइन थी, प्लस पोलियो अभियान कि लेकिन जिंदगी की सच्चाई में यह कई जगह खरी उतरती है। जिंदगी की सच्चाई है, दो बूंद। बूंद-बूंद से सागर बनता है, इसी सागर से जल की आवश्यकता पूरी होती है। 

ऐसे ही व्यक्ति अपनी कुल आय से दो बूँद यानी थोड़ी से बचत करे तो यह उसे जिंदगी दे सकती है। किसी विपरीत परिस्थिति या हारी-बीमारी में यह दो बूंद यानी अल्प बचत उसे साँसे देने में कामयाब हो सकती है। इस देश में प्रतिवर्ष हज़ारों नहीं बल्कि लाखो लोग ईलाज के अभाव में अपनी साँसे खो देते हैं। ऐसा नहीं है कि इस देश में ईलाज नहीं है, ईलाज है। लेकिन ईलाज के लिए रकम की आवश्यकता होती है, इस रकम के अभाव में ईलाज नहीं करा सकते हैं। अगर अपनी आय का कुछ हिस्सा बचत के रुप में जमा करते जाए तो आसानी से ईलाज करा सकते हैं और अपनी साँस की डोर थमने से रोक सकते हैं। 

अन्य प्रश्न -

प्रश्न - शबनम की बूंद से क्या अभिप्राय है?

उत्तर - शबनम की बूंद ओस की बूंद को कहा जाता है।

प्रश्न - बूंद को अँग्रेजी में क्या कहते हैं?

उत्तर - बूंद को अग्रेजी में ड्रॉप (drop) कहा जाता है।

प्रश्न - बूंदे किसे कहते हैं?

उत्तर - कान की छोटी बाली को बूंदे कहा जाता है।

प्रश्न - बूँद का शब्दिक अर्थ क्या है?

उत्तर - बूंद का अर्थ तरल के छोटे अंश से हैं।

प्रश्न - बरसात की बूंद कैसी दिखती है?

उत्तर - बरसात की बूंद घुमावदार गुंबद की तरह प्रतीत होती है। 

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