प्रकृति की अपनी विशाल और समृद्ध विरासत है। असंख्य पशु पक्षियों की जातियां और वनस्पति इस विरासत में पली और बढ़ी है। कितनी ही जातियां आधुनिकता का दंश झेलते हुए विलुप्त हो गई तो कितनी ही विलुप्ति की कगार पर हैं। इस समृद्ध विरासत को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है, मनुष्य ने।
ऐसा ही पशु चिंकारा अपने अस्तित्व की लड़ाई खुद लड़ रहा है। यह कितने दिन तक चलती रहेगी, इसे लेकर कोई स्पष्ट जबाव नहीं दिया जा सकता हैं। हमारी आँखों के सामने पिछले दो दशक में जहां यह झुंड में नजर आता था, अब वहाँ इक्का-दुक्का ही देखने को मिलते हैं। दूसरी ओर कई गांवों में तो इसकी संख्या शून्य हो गई जो एक दशक पहले सैंकड़ों में अवश्य हुआ करती थी।
वैज्ञानिक विवरण -
तथ्य | स्पष्टीकरण |
---|---|
जगत (Kingdom) | जंतु (Animal) |
संघ | रज्जुकी |
वर्ग | स्तनपायी |
गण | द्विखुरीय |
कुल | बोविडी |
उपकुल | एँटिलोपीनी |
वंश | गजॅला (Gazella) |
जाति | बेनेटी (Bennettii |
वैज्ञानिक नाम | गजॅला बेनेटी (Gazella bennettii) |
चिंकारा का परिचय -
चिंकारा घास के मैदान और मरूस्थल में पाया जाने वाला एक चौपाया जानवर है। मरूस्थल में पाए जाने के कारण इसका रंग सामन्यतः धूसर होता है, किंतु खुद को मौसम के अनुसार सुरक्षित करने के लिए मौसम के साथ रंग बदलने की कला में भी पारंगत होता है। चिंकारा देखने मे एक छोटी बकरी के समान प्रतीत होता है। इसका वजन और ऊंचाई बकरी के मुकाबले में थोड़ी कम होती है, किंतु इसकी रफ्तार बहुत तेज होती है। चिंकारा के सिंग बकरी के समान ही होते हैं, जो एकदम सीधे ही होते हैं। हालांकि बकरी और अन्य जानवरों के सिंग टेढ़े-मेढ़े हो सकते हैं, किन्तु चिंकारा के नहीं।
चिंकारा शर्मिला पशु होने के कारण अक्सर बस्ती से दूर खेतों में विचरण करता हुआ मिल जाता है। इसका रंग गर्मी के मौसम में मिट्टी के समान धूसर होने से आसानी से पहचान में आ जाता है। शीतकाल में इस रंग गहरा भूरा हो जाता है, किंतु पिछले पैरों का पिछला हिस्सा और पेट का निचला हिस्सा सफेद रंग का होता है, सफेद हिस्सा हमेशा ही सफेद ही रहता है, मौसम के अनुसार इसका रंग परिवर्तित नहीं होता है। इसकी पूंछ छोटी सी होती है जो करीब 6-8 इंच की होती है। चिंकारे के सिंग काफी मजबूत होते हैं, जो करीब 18 इंच तक लंबे होते हैं। सींगों की बनावट विशेष प्रकार की होती है, सींगों में छल्ले बने हुए होते हैं।
चिंकारा हिरण परिवार का पशु है, जिसके कारण यह उछल-कूद और लंबी कुलांचे मारने में सक्षम होता है। इसके खुर द्विखुरीय (दो भागों में बंटे हुए) बकरी से मिलते-जुलते से यह आसानी से मरूस्थल में दौड़ लगा सकता हैं, इससे इसके पैर रेतीली मिट्टी में धँसते नहीं हैं। इसका हल्का वजन (वयस्क चिंकारा 25 किलो के आसपास) इसे तेज दौड़ने में मदद करता हैं। चिंकारा 80 किलोमीटर प्रति घन्टा की रफ़्तार से दौड़ लगाने में सक्षम होता है। एक वयस्क चिंकारा 26 इंच ऊंचा होता है। इसकी लंबाई करीब 40 इंच तक हो सकती है। इसके कान बकरी के कानो से अलग होते हैं, किसी खतरे को भांप लेते ही कानो को खड़ा कर देता है, तब ये कान गाय के कानो के समान प्रतीत होते हैं।
चिंकारा का आहार -
चिंकारा घास के मैदानों और मरुस्थल में पाया जाने वाला पशु होने से यह जंगल और खेतों में होने वाली वनस्पति को बड़े चाव से खाता है। यह फल, फूल, घास, कन्द मूल, जड़ और पत्तियों को खाता है। बरसात के मौसम में होने वाली फसलों को आसानी से खाता है। यह अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए दिन में झाड़ियों में आराम करना पसंद करता है और रात में चरने के लिए निकलता है। एक सामान्य धारणा लोगों में यह भी पायी जाती है, जो सत्य भी है कि चिंकारा का पसंदीदा आहार मोठ की फसल होती है। इसके अतिरिक्त मतीरा (तरबूज) और ककड़ी काचरा को भी बड़े चाव से खाता है।
चिंकारा के मरुस्थलीय पशु होने के कारण इसमे मरुस्थलीय पशुओं के समान विशेषताएँ भी पाई जाती है। यह कई दिनों तक बिना पानी के रह सकता है। कई दिनों तक इसे पानी पीने की आवश्यकता नहीं होती है। यह अपनी पानी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए रात में पेड़ों की पत्तियों पर जमने वाली ओस को चाटकार या ठण्डी हवा की नमी से भी अपनी पानी की आवश्यकता को पूरा कर लेता है।
गर्मियों के दिनों में जब मरुस्थल में सब सूखने लगता है उस समय चिंकारा आक की पत्तियों और नागफनी (Cactus) को भी खा लेता है। इसके अतिरिक्त गर्मी के मौसम में राजस्थान के मरूस्थल में होने वाली वनस्पतियों को भी आसानी से खा लेता है। गर्मियों में यह दिनभर झाड़ियों में रहता है, जिससे पानी की आवश्यकता कम होती है।
चिंकारा का प्रजनन -
किसी भी पशु पक्षी को अपने वंश को आगे बढ़ाने के लिए प्रजनन की आवश्यकता होती है। चिंकारा भी अपने वंश को बनाए रखने के लिए प्रजनन करते हैं। चिंकारा एक स्तनपायी जानवर है, जो बच्चे (बछड़े) को जन्म देता है। चिंकारा मादा वर्ष में दो बार प्रजनन करते हैं, हालांकि एक मादा वर्ष में एक बार ही करती है, किंतु अलग-अलग समय अलग-अलग मादा प्रजनन करती है। चिंकारा (मादा) का गर्भकाल 5 से 5.5 महीने का होता है। ये मार्च-अप्रैल और अगस्त-सितंबर में बच्चों को जन्म देती है। बच्चों को जन्म देने के बाद दो महीने तक मादा दूध पिलाती है और 1 वर्ष (अधिकतम) अपने साथ रखती है। इसके बाद बच्चे को खुद से अलग कर देती है। इस समय वो दूसरे बच्चे को जन्म भी दे देती है।
एक मादा चिंकारा एक वर्ष की उम्र में प्रजनन के लिए तैयार हो जाती है, वही नर चिंकारा 2 वर्ष की अवधि के बाद प्रजनन के लिए परिपक्व होता है। जब मिलन की ऋतु आती है तब नर चिंकारा में मादा को लेकर संघर्ष चिढ़ता है। इसके लिए एक-दूसरे से युद्ध भी होता है। एक नर कई मादा से मिलन कर सकता है, इसलिए एक झुंड में सामन्यतः एक नर और कई मादा होती है। इसी के कारण कई नर अकेले ही रहते हैं तो मादा झुंड में रहती है। नर चिंकारा मादा को रिझाने के लिए उछल-कूद करते हैं। इसमे कई बार नर 6 मीटर तक कि छलांगे लगा देते हैं।
चिंकारा राज्य पशु -
चिंकारा राजस्थान राज्य का राज्य पशु है। वर्तमान समय में राजस्थान राज्य के दो राज्य पशु है, ऐसे में पहला राज्य पशु चिंकारा है। इसे 22 मई 1981 को राज्य पशु घोषित किया गया।चिंकारा को राज्य पशु घोषित किए जाने का कारण निम्न है -
- राज्य में बहुतायत में पाया जाना।
- शिकार और अस्तित्व संकट से बचा कर संरक्षित किया जाना।
- विभिन्न समुदायों की चिंकारा के प्रति आस्था।
- मरुस्थल के अनुकुल पशु को पर्यटन को बढावा देने मे सहायक।
- राज्य सरकार द्वारा विशेष सरंक्षण।
उपर्युक्त सभी कारणों के चलते राज्य सरकार ने इसे राज्य पशु घोषित किया। राज्य पशु घोषित किए जाने के बाद विशेष दर्जा प्राप्त हो जाता है, जिससे मानव द्वारा किये जाने शिकार पर पूर्ण प्रतिबंध लग जाता है। राज्य सरकार ने इसे विशेष महत्व दे संरक्षित करने के उदेश्य से राज्य पशु घोषित किया।
बिश्नोई जाति और चिंकारा -
राजस्थान और हरियाणा में पायी जाने वाली बिश्नोई जाती चिंकारा को पूज्य मानता आया है, ये इसे भगवान की तरह पूजते है। इसी कारण जहां बिश्नोई समाज का बाहुल्य होता है, वहाँ चिंकारा की जनसंख्या आज भी अधिक है। बिश्नोई समाज हिरण और चिंकारा को बचाने के लिए समय-समय पर मुहिम भी चलाता है। इस मुहिम में इसे कुत्तों के बनते शिकार से रोकने से लेकर घायल पशु को अस्पताल तक पहुंचाने के प्रयास शामिल होते हैं। खासतौर से ग्रीष्मकाल में इसे बचाने के लिए विभिन्न प्रयास किए जाते हैं।
इसे शिकार से बचाने से लेकर, शिकारियों को सजा दिलाने में बिश्नोई समाज अग्रिम पंक्ति में खड़ा रहता है। शिकारी भले कितना ही बड़ा और पहुंच वाला व्यक्ति हो, समाज एकजुट हो उसे सजा दिलाने के लिए प्रयास करता हैं। समाज के इस प्रयास को आप फिल्म अभिनेता सलमान खान के मामले में देख सकते हैं। ऐसे ही कई और भी उदाहरण भी है। समाज समय-समय पर सरकार से आग्रह के साथ खुद ही समूह बना इसे बचाने के लिए प्रयासरत रहता है।
चिंकारा का अस्तित्व संकट -
आज देश सहित राजस्थान में चिंकारा अपने अस्तित्व के संकट से जुझ रहा है। पहले प्रदेश के गाँवो मे चिंकारा के जो झुंड देखने को मिल जाते थे, अब वो आसानी से देखने को नहीं मिलते हैं। कई गाँवों में इसकी संख्या गिनी चुनी रह गई है। आज चिंकारा मानव द्वारा आधुनिकता के नाम से किए जा रहे कार्यो और खेतों की मजबूती से रखवाली का शिकार हो रहा है। ऐसे में इसके अस्तित्व के संकट के कुछ कारण निम्न है -
- शिकार - आज भी कई जगह से चिंकारा के शिकार की खबरें आती है। ऐसे में हो सकता है कि शिकार की सभी खबरें हम तक नहीं पहुंच रही हो या चुपके से शिकार हो रहा हो। यह शिकार इनकी संख्या पर प्रतिकूल असर कर रहा है।
- तारबंदी - खेतों की रखवाली के उदेश्य से की जाने वाली तारबंदी चिंकारा का तेजी से शिकार कर रही है। इसके तारो में उलझ कितने ही पशु बली चढ़ जाते हैं। तो कई बूरी तरह से घायल हो जाते हैं। आजकल जो प्लास्टिक की तार बंदी होती है वो तो इनके लिए फांसी का फंदा ही बन गई है। प्लास्टिक की डोर में उलझने के बाद डोर जोर और मुँह को घुमाने के साथ टाइट हो फंदा बन जाती है।
- कुत्तों द्वारा शिकार - कुत्ते हालांकि पहले भी शिकार करते आए हैं, किन्तु खेतों में तार बंदी किए जाने के बाद से कुत्तों के लिए चिंकारा का शिकार आसान हो गया है। अब चिंकारा भागते हुए तारो में उलझ जाते हैं तो कुत्ते इन्हें आसानी से पकड़ शिकार बना रहे हैं।
- बिजली - कई बार बिजली के तार टूट कर गिर जाते हैं। तो कभी खंबे में करंट आ जाता है, इससे इनकी मृत्यु पहले से हो रही थी। अब खेतों की रखवाली के लिए बैटरियों का उपयोग किया जाने लगा है, इनके झटके से कई बार चिंकारा शिकार हो रहे हैं।
- दुर्घटनाएं - गांवों में जो सड़कों के जाल बिछ रहे हैं, वो चिंकारा के लिए घातक सिद्ध हो रहे हैं। सड़क पर वाहनों की टक्कर से चिंकारा के मारे जाने की खबरे लगातार रिपोर्ट की जा रही है।
इन्हीं सब कारण से चिंकारा का अस्तित्व संकट में आ गया है। आज चिंकारा को जिस संकट का सामना करना पड़ रहा है, वह मानव निर्मित संकट है। बढ़ती मानव जनसंख्या और आधुनिकता इनके विचरण क्षेत्र में अतिक्रमण कर रही है।
चिंकारा का अस्तित्व संकट में होने के कारण ही अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति सरंक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature - IUCN) की रेड डेटा सूची (IUCN, 2017) के अनुसार चिंकारा की स्थिति को कम से कम चिंताजनक (LC) घोषित किया गया है। हालांकि चिंताजनक स्थिति है लेकिन कम है, बिल्कुल लुप्तप्राय जैसी नहीं। लेकिन अगले एक दशक में हालात चिंताजनक भी हो सकते हैं। इसी को देखते हुए इसे रेड बुक में शामिल किया गया है।
सरकार और समाज के चिंकारा बचाने के प्रयास -
चिंकारा और हिरण का भारतीय संस्कृति में हमेशा से ही महत्व रहा है। लोकगीतों से कहावतों तक में इसे हमेशा से महत्व दिया जाता रहा हैं। हमेशा से ही इसके महत्व को देखते हुए इसे चलचित्र में भी महत्व दिया है।
फ़िल्मों में अक्सर गाने में आपने 'हिरनी जैसी चाल' तो सुना ही होगा। ऐसे ही ग्रामीण आँचल में किसी के वेग को लेकर 'हिरन की तरह दौड़ता है' कहा जाता है। ऐसे ही किसी खतरे को भांप हिरण सचेत हो छींकता है और रोता है तो कहावत चल पड़ी 'रोता है, हिरण की तरह'। आज यह चिंकारा जो अस्तित्व बचाने के लिए जुझ रहा है, इसे बचाने के लिए सरकार और संगठन (सामाजिक) साझा प्रयास कर रहे हैं। ऐसे कुछ प्रयास निम्न है -
अभ्यारण्य - इन्हें बचाने के लिए केंद्र सरकार ने इनके निवास स्थल को अभ्यारण्य घोषित कर अवैध प्रवास और अतिक्रमण दोनों को निषेध कर दिया है। गुजरात राज्य का नारायण सरोवर अभ्यारण्य चिंकारा के अस्तित्व को बचाने के उदेश्य से घोषित किया गया अभ्यारण्य है।
संरक्षित क्षेत्र - विभिन्न राज्यों की राज्य सरकारों ने चिंकारा के विचरण स्थलों को संरक्षित क्षेत्र घोषित कर शिकार और वाहनों की स्पीड पर रोक लगाने के प्रयास किए है। राजस्थान राज्य में जहां चिंकारा की जनसंख्या अधिक है, वहाँ ऐसे क्षेत्र घोषित किए गए हैं। ऐसे क्षेत्रो में राज्य सरकारों द्वारा तार बंदी को भी निषेध माना जाता है।
सजा - वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अनुसार चिंकारा का शिकार निषेध होने के साथ ही कानूनी अपराध की श्रेणी में आता है। राजस्थान राज्य द्वारा चिंकारा को राज्य पशु घोषित किए जाने से इसके शिकार करने पर ₹ 1000/- का आर्थिक दंड और तीन वर्ष का कारावास हो सकता है।
जल कुंड और चारा - समाज और विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा ग्रीष्मकाल में इन्हें बचाने के लिए चारा की व्यवस्था (कम होते विचरण और चराई योग्य स्थलों के कारण) की जाती है और पीने के लिए पानी के जल कुंड बनाये जाते हैं। सरकार भी जलकुंड बनाने के लिए प्रयास कर रही है।
तार बंदी - समाज और सरकार के साझा प्रयासों से राष्ट्रीय राजमार्ग और अन्य राजमार्गों के किनारे तार बंदी की जा रही है, जिससे इनकी दुर्घटना से मौतें कम की जा सके।
उपर्युक्त सभी प्रयास इनकी जनसंख्या को बढावा देने के उदेश्य से किए जा रहे हैं। ताकि आने वाले समय में इनका अस्तित्व बना रहे।
प्रश्न -
प्रश्न - चिंकारा को राजस्थान के राज्य पशु के रुप में कब दर्जा दिया गया?
उत्तर - चिंकारा को राजस्थान राज्य का राज्य पशु 22 मई 1981 को घोषित किया गया।
प्रश्न - चिंकारा का वैज्ञानिक नाम क्या है?
उत्तर - चिंकारा का वैज्ञानिक नाम गजॅला बेनेटी (Gazella bennettii) हैं।
प्रश्न - चिंकारा किस जिले का शुभंकर है?
उत्तर - चिंकारा राजस्थान राज्य के गंगानगर जिले का शुभंकर है।
प्रश्न - चिंकारा बिना पानी के कैसे रहता है?
उत्तर - चिंकारा कई दिनों तक बिना पानी के इसलिए रह जाता है क्योंकि यह अपने लिए आवश्यक पानी की आपूर्ति वनस्पतियों के रस और उनकी पत्तियों पर जमी ओस से कर देता है।
प्रश्न - चिंकारा का शिकार करने पर क्या सजा होती है?
उत्तर - चिंकारा का शिकार करने पर एक हजार रुपये आर्थिक दंड और 3 वर्ष का कारावास, दोनों सजा के रुप में दिए जा सकते हैं।
प्रश्न - क्या चिंकारा लुप्तप्राय पशु हैं?
उत्तर - जी नहीं। अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति सरंक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature - IUCN) की रेड डेटा सूची (IUCN, 2017) के अनुसार चिंकारा की स्थिति को कम से कम चिंताजनक (LC) घोषित किया गया है
प्रश्न - चिंकारा के अन्य नाम क्या है?
उत्तर - चिंकारा का अन्य नाम भारतीय गजेल है।
0 टिप्पणियाँ