किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत पूजा पाठ से किये जाने का सनातन धर्म में विधान है। शुभ कार्य की शुरुआत से इति तक सभी कार्य उचित परंपरा को निभाते हुए विधान से सम्पन्न किए जाते हैं। शुभ कार्य को करते समय उठने - बैठने और पहनावे तक के विधान है।
किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत के समय हाथ में कलावा बांधे जाने का भी विधान है। अक्सर आपने देखा होगा कि किसी मुहूर्त के समय, गृह प्रवेश, व्यापार की शुरुआत, लग्न, नए वाहन को खरीदना आदि शुभ कार्यो के समय हाथ में कलावा अथवा मोली बांधी जाती हैं।
कलावा क्या होता है?
कलावा जिसे मोली भी कहा जाता है, यह तीन रंगों का सूत से बना हुआ धागा होता है। इसमे लाल, पीले, सफेद और हरे रंग के धागे होते हैं। कलावे के तीनों धागे त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) के प्रतीक माने जाते हैं। माना जाता है जो व्यक्ति कलावा धारण करता हैं, उनकी रक्षा त्रिदेव स्वयं करते हैं। जो व्यक्ति इसे धारण करता हैं उसकी सभी अनिष्ट से रक्षा ये देव स्वयं करते हैं।
कलावा आमतौर पर कलाई में धारण किया जाता है। इसे बांधने का विधान होता है। यह शारीरिक समस्याओ से निजात दिलाता है। यह मानव शरीर में कफ, वात और पित से निजात दिलाता हैं। कलावा शिक्षा प्राप्ति, व्यापार लाभ, रोजगार की प्राप्ति, सकारात्मकता और विवाह सम्बन्धित समस्याओं के निवारण के लिए भी बाँधा जाता है। किसी मुहूर्त, उद्घाटन या पूजा-अर्चना के समय पंडित जी द्वारा यजमानों को कलावा बांध उन्हें अनिष्ट से बचाने की ईश्वर से प्रार्थना की जाती है।
कलावा बांधने का मंत्र -
कलावा बांधते समय विधिवत नियमो का पालन किए जाने के साथ ही कलावा बांधने के मंत्र का जाप भी किया जाता है। यह मंत्र इस प्रकार हैं -
ॐयेन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबलः,तेन त्वां मनुबध्नामि, रक्षं मा चल मा चल।
कलावा बांधने के मंत्र का जाप बांधने वाले के साथ, जिसे बाँधा जा रहा है, उनमे से कोई भी कर सकता है। बिना मंत्र का जाप किए कलावा बांधे जाने जा फल प्राप्त नहीं होता है।
कलावा बांधे जाने के मंत्र का अर्थ -
कहा जाता है कि जब भगवान विष्णु ने अपने वामन अवतार में राजा बली (महाबली) को पाताल लोक भेजने से पूर्व कलावा बांधा था। कलावा बांधे जाने का मंत्र उसी घटना का जिक्र है। अतः कलावा बांधे जाने के मंत्र का अर्थ है -
जिस प्रकार से दानवों के राजा महाबली को बाँधा था, उसी प्रकार से तुम्हें बांध रहा हूँ। हे, रक्षा सूत्र तुम चलायमान ना हो।
कलावा बांधने का मंत्र एक पौराणिक घटना का जिक्र है, जो भगवान विष्णु को याद करते हुए बाँधा जाता है।
कलावा बांधने के नियम -
कलावा बांधे जाने के सनातन संस्कृति में कई नियम है। ऐसे नियमो का पालन किया जाना चाहिए, जो इसे कलाई में धारण करने जा रहे हैं उन्हें। कुछ नियम इस प्रकार से है।
कलावा किस हाथ में बाँधा जाता है?
कलावा बांधने कि एक विधिवत प्रक्रिया है, उसी प्रक्रिया के कारण इसे बांधे जाने के कुछ नियम भी है। उन्हीं नियमो का पालन करते हुए कलावा बंधा जाता है। महिला और पुरुष के कलावा बांधे जाने के अलग-अलग नियम है। कुंवारी कन्याओं और पुरुषों के दाहिने हाथ में कलावा बाँधा जाना चाहिए, वहीं विवाहित स्त्रियों के बांये हाथ में कलावा बाँधा जाना चाहिए।
कलावा कलाई पर कितनी बार लपेटा जाना चाहिए?
जैसे कलावा हाथ के बांधने का नियम है ठीक उसी प्रकार से कलावा को लपेटने का भी नियम है। सनातन संस्कृति में एकी को शुभ माना जाता है। ऐसे कलावा हाथ की कलाई पर तीन, पांच या सात बार लपेटा जाना चाहिए। यहां इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि जिस हाथ कि कलाई पर कलावा बाँधा जा रहा है, उस हाथ की हथेली को खाली नहीं रखा जाना चाहिए। उस हाथ में सिक्का रखा जाना चाहिए और दूसरा हाथ सिर के पीछे रखा जाना चाहिए। हाथ में जो सिक्का होता है, उसे पंडित जी या को कलावा बाँध रहा है, उसे दे देना चाहिए।
पुराना कलावा कैसे खोला जाना चाहिए?
जैसे कलावा बांधे जाने का नियम है, ऐसे ही इसे खोलने का भी नियम है। कलावा खोलने के लिए नियमो का पालन करने के लिए कलावा किसी भी दिन नहीं खोला जाना चाहिए। इसे मंगलवार या शनिवार को खोला जाना चाहिए। इसे पूजा के समय खोलना ही उपयुक्त माना जाता है, ऐसे में पूजा के बाद पुराना कलावा खोल नया कलावा बाँध लेना चाहिए।
पुराने कलावा का क्या करे?
पुराना कलावा जो आपने कलाई से खोला है, उसे कहीं भी नहीं फेंक देना चाहिए। इसे पीपल, वट या खेजड़ी के पेड़ के नीचे रख देना चाहिए। अगर इस तरह का पेड़ नहीं मिले तो इसे बहते पानी में भी प्रवाहित किया जा सकता है।
कलावा बांधने के फायदे -
कई लोगों को लगाता है कि कलावा महज उनके धर्म की पहचान है, इसके लिए इसे धारण किया जाता है। लेकिन ऐसा नहीं है, कलावा के आयुर्वेदिक, ज्योतिष और धार्मिक महत्व है, इन्हीं को ध्यान में रखते हुए कलावा धारण किया जाता है। आइए जानते हैं ऐसे कुछ फायदे -
कलावा बांधने के आयुर्वेदिक फायदे -
आयुर्वेद स्वास्थ्य का विज्ञान और चिकित्सा है। कलावा के आयुर्वेदिक फायदे मानव शरीर को होने वाले स्वास्थ्य सम्बन्धित लाभ को इंगित करता हैं। ऐसे में आयुर्वेद मानता है कि कलावा हाथ की कलाई पर धारण करने से हाथ की कई नसों पर दबाव आता है। इस दबाव से मानव शरीर के त्रिदोष (वात, पित्त और कफ) से जुड़ी हुई समस्याएं समाप्त हो जाती है। इसके अतिरिक्त हृदय रोग, अनिद्रा, मधुमेह और रक्तचाप से सम्बन्धित बीमारियाँ भी ठीक होती है।
कलावा बांधने के ज्योतिष फायदे -
कलावा सामन्यतः पुरोहित द्वारा पूजा अर्चना के समय या शुभ मुहूर्त के समय बाँधा जाता है। ऐसे में इसके कई ज्योतिष की दृष्टि से फायदे हैं। ज्योतिष के अनुसार कलावा के साथ इसके रंगों का भी महत्व माना गया है। कुछ रंग का महत्व इस प्रकार से हैं -
- लाल या केसरी - कुंडली में मंगल का अशुभ प्रभाव कम होता है।इससे सुख समृद्धि में वृद्धि होती है।
- नारंगी - शिक्षा और एकाग्रता को बढावा देता है। इस रंग का कलावा गुरुवार या बसंत पंचमी को धारण करना चाहिए।
- पीले और सफेद - विवाह सम्बन्धित समस्याओं का निदान करने के लिए ऐसे रंग का कलावा शुक्रवार या दीपावली के दिन।
- नीला - रोजगार और आर्थिक लाभ के लिए। इसे शनिवार को किसी बुजुर्ग से बंधवाना चाहिए।
- काले रंग का धागा - इसे हाथ या पैर में धारण करने से शनि का प्रभाव कम होता है।
उपर्युक्त सभी रंगों का महत्त्व और फायदे के अनुसार धारण करने से ज्योतिष के अनुसार लाभों की प्राप्ति होती है।
कलावे के धार्मिक महत्व और फायदे -
कलावे के आयुर्वेद और ज्योतिष के महत्व के अतिरिक्त कई धार्मिक महत्व भी है। ऐसे कुछ धार्मिक महत्व निम्न हैं -
- मंदिर की मोली - मंदिरों में भी देवी देवता के नाम की मोली बांधी जाती है। यह जातक को संकट और विपत्तियों से बचाती हैं।
- त्रिदेव की मोली - तीन रंगों की मोली त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) की मानी जाती है। ऐसी मोली को धारण करने से जादू, टोना, सम्मोहन, उच्चाटन और भूत-प्रेत का असर नहीं होता है।
- दुर्गुणों का नाश - कलावा बांधने से त्रिदेव के साथ देवी लक्ष्मी, पार्वती और सरस्वती की कृपा बनती है। इससे व्यक्ति के दुर्गुणों का नाश होता है।
- कमर पर धागा - कमर पर धागा बांधने से बूरी आत्मा शरीर में प्रवेश नहीं करती है और पेट से सम्बन्धित रोगों का निदान होता है।
- पवित्रता - कलावा बांधने से मन में बुरे विचार नहीं आते हैं। इससे पाप की राह पर चलने से खुद को बचा सकता है।
उपर्युक्त सभी धार्मिक महत्व है। किसी पाठ-पूजा और मुहूर्त के समय उसके रंग और वार को महत्व नहीं देना चाहिए।
कलावा
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