क्या महँगाई को बढ़ने से रोका जा सकता है? Mahangai

क्या महँगाई को बढ़ने से रोका जा सकता है? Mahangai

बढ़ती हुई महँगाई आम आदमी के जीवन को त्रस्त करती है। बढ़ती हुई महँगाई में आम आदमी रोजमर्रा की चीजे तक नहीं खरीद पाता है। उसके लिए अपने दैनिक खर्च अथवा जीवन यापन के खर्च करना मुश्किल हो जाता है। महँगाई के कारण कई घरों में चूल्हा जलाने तक का संकट खड़ा हो जाता है, क्योंकि दाम इतने ऊंचे हो जाते हैं कि बाजार से कुछ खरीद पाना वश की बात नहीं रहती है। 

क्या महँगाई को बढ़ने से रोका जा सकता है? Mahangai

महँगाई को लेकर अक्सर लोग बात करते रहते हैं। राष्ट्रीय मीडिया से सोशल नेटवर्किंग साइटों पर भी महँगाई को लेकर हमेशा से ही बहस छिड़ी रहती है। लोग महँगाई को लेकर अपने-अपने तर्क देने के साथ महँगाई से उत्पन्न हो रही समस्याओं का जिक्र भी करते हैं। महँगाई का जो असर समाज पर हो रहा उसकी भी चर्चा होती रहती है। 

महँगाई का अर्थ -


महँगाई का अर्थ वस्तुओं का अपने वास्तविक मूल्य के मुकाबले में अधिक महँगा बिकने से हैं। वस्तुओं के मूल्य में यकायक ऐसा उछाल आना, जिससे उनके मूल्य में वृद्धि हो जाएं। दूसरी ओर मुद्रा का मूल्य इतना गिर जाता है, जिससे व्यक्ति वस्तुओ को उस मात्रा में नहीं खरीद सकता जितना कुछ समय पूर्व एक निश्चित मूल्य का भुगतान कर खरीद लेता था। महँगाई में वस्तुओ की महत्ता मुद्रा की तुलना में बढ़ जाती है, जिससे वो महंगी होने लगती है। 

महंगाई एक व्यक्ति द्वारा निश्चित समय में जीवन-यापन के लिए आने वाली लागत का एक माप है। इसका उपयोग आमतौर पर विभिन्न मुद्राओं के सापेक्ष वस्तुओं के मूल्यों की तुलना करने के लिए किया जाता है। व्यक्ति के जीवन यापन की लागत और मुद्रा कि क्रयशक्ति में परिवर्तन को महँगाई से मापा जाता है। एक निश्चित समय अवधि के दौरान मुद्रा की क्रय शक्ति में जो गिरावट या वस्तुओ के मूल्य में जो अधिकता आती है, उसी से इसकी दर को ज्ञात किया जाता है। भारत में, वस्तुओ के मूल्य में जो परिवर्तन होता है उसी से महँगाई की गणना की जाती है।

महँगाई की विस्तृत जानकारी के लिए महँगाई के कारण और निदान को अवश्य पढ़े। 

महँगाई के कारक -


महँगाई हमेशा से विद्यमान रहती है, जो हमेशा बढ़ती रहती है। ऐसा कभी-कभार ही सुनने को मिलता है कि महँगाई कम हो गई है। महँगाई की दर हमेशा एक लंबे समय काल खंड अथवा दीर्घ काल में बढ़ती है। कभी कभार अल्प समय अवधि में महँगाई की दर कम होती है, जो लंबे समय तक बनी हुई नहीं रहती है। ऐसे में महँगाई के बढ़ने के कारकों का अध्ययन किया जाना अति आवश्यक है, एक बार इसके कारकों पर एक नजर डाल देते हैं -

महँगाई को समझने के उदेश्य से इसे दो भागों में विभाजित कर देते हैं, ताकि आसानी से समझा जा सके। 
  1. अल्पकाल में महंगाई 
  2. दीर्घकाल में महँगाई 

अल्पकाल की महँगाई - 


यह महँगाई एक छोटी अवधि में बाजार में होने वाले परिवर्तनों के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है। कुछ समय बाद जब परिस्थितियां समान्य हो जाती है तो यह स्वतः ही समाप्त हो जाती है। 

  • बढ़ी हुई मांग - जब वस्तु की मांग बढ़ जाती है तो मूल्य भी उसके सापेक्ष में बढ़ने लगते हैं, परिणामस्वरूप महँगाई की स्थिति उत्पन्न होती है।
  • कम उत्पादन - किसी वस्तु के कम उत्पादन होने से उस वस्तु की वास्तविक बाजार मांग के समकक्ष आपूर्ति सम्भव नहीं हो पाती। जब मांग, आपूर्ति के मुकाबले में अधिक हो जाती है तो स्वतः ही महँगाई की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  • आपदा - प्राकृतिक आपदा या किन्ही अन्य परिस्थितियों में जब माल बाजार तक पहुंच नहीं पाता है, तब वस्तु का मूल्य स्वतः ही बढ़ने लगता है। 
  • असंतोष - कभी लोगों में यह भ्रम उत्पन्न हो जाता है कि भविष्य में किसी वस्तु की आपूर्ति कम हो सकती है अथवा मूल्य बढ़ सकता है। ऐसे ही कोई उपद्रव, युद्ध या कृत्रिम आपदा में मूल्य में वृद्धि सम्भव है। 
उपर्युक्त सभी कारणों से अल्प काल (अधिकतम 6 महीने) के लिए बाजार में महँगाई उत्पन्न हो सकती है। 

दीर्घकाल की महँगाई - 


सर्वाधिक चर्चा का विषय दीर्घकाल की महंगाई का होता है। इस तरह की महँगाई में वस्तुओं के मूल्य दीर्घकाल में बढ़ते ही जाते हैं। उदाहरण के लिए वर्ष 2003 में भारत में पेट्रोल ₹32.7/- लीटर था, जो 2013 में ₹ 76.06/- - सितंबर माह) लीटर और 2023 मे ₹ 96.73/- लीटर हो गया। यह समय के साथ बढ़ी हुई महँगाई हैं। इस तरह की महँगाई समय के साथ बढ़ती जाती है, इसके निम्न कारण है - 
  • बढ़ी हुई मुद्रा आपूर्ति - दीर्घकालिक अवधि में जब राष्ट्र की अर्थव्यवस्था का विस्तार होता है तो सरकारे इसे अधिक लचीला बनाने के लिए मुद्रा की आपूर्ति में वृद्धि कर देती है, परिणामस्वरूप बाजार में महँगाई बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए भारत में वर्ष 2015 मे कुल मुद्रा की आपूर्ति ₹ 14.48 ट्रिलियन थी जो बर्ष 2023 में बढ़कर ₹33.38 ट्रिलियन हो गई। ऐसे में इस दौरान महँगाई का दुगुने से अधिक हो जाना स्वाभाविक है। 
  • माल और श्रम मूल्यों मे वृद्धि - जब मुद्रा की आपूर्ति में वृद्धि होती है तो माल और श्रम के मूल्यों में भी सापेक्ष वृद्धि होती है। यह वृद्धि महँगाई को जन्म देती है। ऐसी वृद्धि दीर्घकाल में अधिक होती है। 
  • मुद्रा का मूल्य - दीर्घकाल में समय के साथ मुद्रा के मूल्यों में कमी होती है, इसी कमी का परिणाम होता है वस्तुओं का बढ़ा हुआ मूल्य। मुद्रा का समय मूल्य महँगाई को बढावा देता है। 
उपर्युक्त सभी कारकों से दीर्घकाल में महँगाई बढ़ती है। यह सभी कारक दीर्घकाल में महँगाई के जिम्मेदार होते हैं। 

क्या महँगाई को रोका जा सकता है? 


महँगाई दो तरीके से बढ़ती है अल्पकालिक महँगाई और दीर्घकालीन महँगाई। इसे आप महँगाई का प्रकार की कह सकते हैं, जो हमने पहले बता दिया साथ ही इसके कारकों को भी आपके सामने रखा। दोनों प्रकार की महँगाई का अध्ययन करने के बाद प्रश्न खड़ा होता है कि क्या महँगाई को रोका जा सकता है? इसे समझने के लिए दोनों प्रकार की महँगाई से स्पष्ट करते हैं। 

अल्पकाल की महँगाई - 


अल्पकाल की महँगाई कुछ समय के बाद बिना किसी प्रकार के कदम उठाए अथवा महँगाई नियंत्रण के उपायों के एक सतत बाजार में स्वतः ही नियंत्रित हो जाती है। इस प्रकार की महँगाई को नियंत्रित करने के लिए सरकार और आपूर्तिकर्ता कोई ऐसे कदम नहीं उठा सकते जिससे महँगाई कुछ समय में नियंत्रित हो सके। कुछ समय के बाद यह स्वतः ही नियंत्रण में आ जाती है अगर बाजार की स्थिति में किसी प्रकार परिवर्तन नहीं किया तो जाए तो यह निम्नलिखित कारण है - 
  1. बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए वस्तु की आपूर्ति को बढ़ा दिया जाता है, जिसका कारण यह भी होता है कि मूल्य बढ़ने पर आपूर्ति भी बढ़ती है। आपूर्ति बढ़ने से मांग के साथ संयोजन स्थापित कर मूल्य को कम कर देती है। 
  2. मूल्य बढ़ने से आपूर्तिकर्ता को बढावा देते हैं, जिससे मूल्य स्थायी हो जाते हैं। 
  3. किसी प्रकार की आपदा के समाप्त होने पर रुकी हुई आपूर्ति के कारण आपूर्ति पहले से भी अधिक बढ़ जाती है, जिससे मूल्य कम होने लगते हैं। 
  4. संतोष की स्थिति अधिक समय तक गायब नहीं रह सकती है, कुछ समय बाद लौट आती है। 
  5. मौसम आने के साथ ही आपूर्ति को बढावा मिलता है। 
उपर्युक्त कारणों से अल्प काल की महँगाई स्वतः ही कम होने लगती है। अगर बाजार या ग्राहकों की मनःस्थिति या किन्ही अन्य स्थिति में बदलाव आ जाने अथवा तकनीकी में परिवर्तन होने से बाजार और मूल्य पुनः अपनी स्थिति पर लौट आए सम्भव नहीं होता है। ऐसे में यह उस स्थिति में लागू होता है, जब बाजार सतत बना हुआ रहे। 

दीर्घकाल की महँगाई - 


दीर्घकाल की महँगाई, अल्पकाल की महँगाई की भांति कुछ समय बाद स्वतः ही नियंत्रित नहीं होती है। यह निरंतर बढ़ती ही जाती है। जैसा आपको पहले पेट्रोल के मूल्य का उदाहरण देकर समझाया गया। ऐसा ही सभी प्रकार की वस्तुओं के लिए दीर्घकाल में लागू होता है। इनके मूल्य नियंत्रित नहीं होते हैं, ये बढ़ते ही जाते हैं। अगर आप सोना, चांदी, खाद्य पदार्थ या अन्य रोज़मर्रा के सामान का मूल्य पिछले 20 सालो का निकलेंगे तो आप पाएंगे कि सभी चीजों के दाम में वृद्धि हुई है। 

अगर किसी वस्तु के दाम में दीर्घकाल में गिरावट आती है तो इसका अर्थ है कि उसका कोई महत्व नहीं रह गया है, क्योंकि महँगाई का अर्थ महत्व से भी हैं। कुछ तकनीकी चीजों के मूल्य कम हुए हैं किन्तु उनका महत्व अब ना के बराबर रह गया है। ऐसे में स्पष्ट है कि दीर्घकाल में महत्व की वस्तुओ के मूल्य बढ़ते है। इसके बढ़ने के कारण पहले ही स्पष्ट किए जा चुके हैं और महत्वपूर्ण कारण होता है, मुद्रा की आपूर्ति में वृद्धि किया जाना।

दीर्घकालिक महँगाई क्यों नियन्त्रित नहीं की जा सकती हैं? 


दीर्घकाल की महंगाई को इसलिए नियंत्रित नहीं किया जा सकता है क्योंकि सरकार दीर्घ काल में मुद्रा आपूर्ति को बढावा देती है, जिससे महँगाई बढ़ती है। अगर सरकार ऐसा ना करे तो जिनके पास पहले से अधिक धन है वो अधिक धनवान होते जाएंगे और बाजार में मांग आपूर्ति का संतुलन भी समाप्त हो जाएगा जो देश की जनता को बेरोजगारी की तरफ धकेल सकता है। 

इसे पढने के बाद आपके दिमाग में प्रश्नो की बाढ़ आ गई होगी कि मुद्रा आपूर्ति को बढावा नहीं देने से धनवान और धनवान होंगे, कैसे? मान लीजिए सुदेश के पास ₹ 5 लाख नकद है, अगर बाजार में किसी प्रकार की महँगाई नहीं होती है तो वह इस पैसे को बैंक में 7% की ब्याज दर पर जमा कर प्रति वर्ष ₹ 35000 ब्याज प्राप्त करेगा, जो उसकी वास्तविक सम्पति को बढावा देगी। दूसरी ओर महँगाई में ऐसा सम्भव नहीं होता है क्योंकि महँगाई में ब्याज वास्तविक धन को महज बाजार मूल्य से संयोजित ही कर पाता है। ऐसे ही जो ब्याज देगा उसकी वास्तविक आय भी कम होती जाएगी। 

अगर दीर्घ काल में मुद्रा आपूर्ति ना बढ़ाई जाए तो - 


अगर दीर्घकाल में मुद्रा की आपूर्ति को ना बढ़ाया जाए तो महँगाई नहीं बढ़ेगी, किंतु बाजार असंतुलन की स्थिति में चला जाएगा। इस स्थिति में बेरोजगारी और समाज में भयंकर असंतोष की स्थिति भी पैदा हो सकती है, जिसके निम्नलिखित कारण है -
बैंक के पास उधार देने के लिए रकम नहीं होगी - 
  • ब्याज दरों में वृद्धि - अगर नई मुद्रा का निर्गमन और आपूर्ति का विस्तार ना किया जाए तो बैंक के पास ना जमा होगी और ना ही उधार देने के लिए रकम होगी। बैंक का महत्व समाप्त हो जाएगा।
  • निवेश में कमी - जब बैंक के पास उधार देने के लिए धन नहीं होगा तो निवेश में कमी होगी क्योंकि बैंक के पास धन नहीं होने का अर्थ है उसके पास जमा नहीं। यह सीधे लोगों के पास धन की उपलब्धता से प्रभावित होती है। 
  • आय में कमी - जब निवेश नहीं होगा, नए उद्योग धंधे स्थापित नहीं होंगे तो लोगों की आय में कमी होगी। 
  • मांग में कमी - आय में कमी का प्रभाव मांग पर विपरित प्रभाव करेगा। लोग कम चीजे खरीदेंगे और मांग भी कम होगी। 
  • उद्योग धंधों पर विपरित प्रभाव - मांग में कमी होने से उद्योग धंधे उत्पादन बंद कर देंगे और नए उद्योग धंधे स्थापित नहीं होंगे। 
  • बेरोजगारी को बढावा - मांग में कमी का अर्थ है उत्पादन में कमी। जब बाजार में मांग ही नहीं तो उत्पादन करने का क्या अर्थ रह जाता है? ऐसे में उद्योग धंधे या तो बंद हो जाएंगे या उत्पादन कम कर देंगे। दोनों ही स्थिति में श्रम की कम आवश्यकता होगी जो बेरोजगारी को बढावा देगी।
  • सामाजिक बुराई - जब रोजगार नहीं होंगे तो सामाजिक बुराई लूट, चोरी और अन्य जुर्म में बढावा होगा। 
सरकारों द्वारा दीर्घकालिक अवधि में मुद्रा की आपूर्ति नहीं किए जाने से ऐसी स्थिति पैदा होगी जो अर्थव्यवस्था के लिए खतरा उत्पन्न करेगी। कुछ समय में देश की अर्थव्यवस्था ध्वस्त भी हो सकती है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ