मित्र : सच्चे मित्र की पहचान कब होती है? Mitra

मित्र : सच्चे मित्र की पहचान कब होती है? Mitra

मित्र, सखा, साथी और दोस्त सब एक ही शब्द हैं। यह वास्तव में शब्द नहीं एक तसल्ली है, जो विश्वास दिलाता है - मैं हूँ ना। मित्र अथवा दोस्त ही वह होता है जो कोई भी विपदा में कंधे पर हाथ रखकर विश्वास दिलाता है। मित्र, भाई से बढ़कर भी हो सकता है। मित्र वही जो हर परिस्थिति में मजबूती से साथ खड़ा हो सके।

मित्र : सच्चे मित्र की पहचान कब होती है? Mitra

आजकल जमाने के साथ मित्र भी ऑनलाइन और ऑफलाइन होने लगे हैं। मित्र वह है जो अपने मित्र पर आई विपदा को भी अपने सिर ले लेता है। मित्र कभी भी अपने मित्र को अकेले नहीं छोड़ता है। मित्र वही है जो अपने मित्र की खुशी को दुगुना कर सके और ग़म को बांट सके। 

मित्र का अर्थ -


मित्र का अर्थ ऐसे व्यक्ति से है जो किसी से बराबरी, सम्मान, स्नेह और दिल की गहराई से जुड़ा हुआ हो। साथी, सखा या बंधु जो पारस्परिक स्नेह से जुड़ा हुआ हो। मित्र वह है जो अपने मित्र की भावना को समझता हो और बिना कहे भी जान लेता हो कि उसके मित्र की इस वक़्त क्या आवश्यकता है? वो उसकी परसाई होता है, हर वक्त छाए की तरह उसकी विपदा में साथ खड़ा होता है। मित्र के दर्द को मित्र ही समझता है इसलिए इसे हमदर्द भी कहा जाता है। हर काम में बिना सोचे समझे साथ देता है, जो मित्र का जुनून होता है, खासतौर से ऐसे काम में।

एक दोस्त वो होता है, जो अपने दोस्त के साथ हरदम खड़ा हो कहे तू कदम आगे बढ़ा मैं हूँ भाई। मित्र भाई भी हो सकता है, लेकिन भाई मित्र हो, यह आवश्यक नहीं है। मित्र वो होता है जो मित्र कि हर परेशानी मे साथ दे। एक सच्चे मित्र को अपने बराबर का भरोसा होता है, मित्र पर। दो मित्र के बीच जो सम्बन्ध होता है, उसे मित्रता कहा जाता है। मित्रता पर दुनिया टिकी हुई होती है, मित्रता दिल को सुकून और शांति देने वाली होती है। यह मन में सकारात्मकता की उत्पति कर एक लक्ष्य की तरफ बढ़ाती है, जो होता है किसी भी परिस्थिति में अपने मित्र की खुशी को बढ़ाना और ग़म को बांटना। मित्र की सफ़लता को मनना और उसकी असफ़लता पर उसके साथ खड़े हो सबक सीखने की सलाह देने से अगली बार देखते हैं कहकर उसके ग़म को बांट लेना।

मित्र कौन हो सकता है?


सबके मन में इस रंगीन और रंग बदलती दुनिया को देखकर तूफान की तरह सवाल उठता है, आखिर मित्र कौन है? उसकी क्या पहचान है? दुनिया के करोडों और उसके आसपास घूमते हुए सैकड़ों चेहरों में से आखिर मित्र की पहचान कैसे सम्भव है। कौन सच्चा साथी हो सकता है इसकी पहचान कैसे हो सकती है? किसी कि तरफ मित्रता का हाथ बढ़ा देने के बाद ahdas हो कि यह तो उसका मित्र बनने योग्य नहीं है या मित्र के नाम पर कहीं आस्तीन के साँप तो नहीं पाल रखे हैं। ऐसे में आप मित्र की पहचान यूँ कर सकते हैं और अपने मित्र को पहचान सकते हैं, कि आपका असली मित्र कौन है? इस शायरी से आप अपने दोस्त की पहचान कर सकते हैं। 

तू खुश तो मैं भी खुश, नहीं चेहरा रख उदास। 
तू उदास मैं भी उदास, तू है मेरा खासमखास।। 

दोस्त अथवा मित्र वो है जो आपको खुश देखकर खुद भी खुश हो जाए, और मन ही मन आपसे कहे अपना चेहरा उदास मत रख मित्र। तेरे उदास चेहरे को देखकर मैं भी उदास हो जाता हूँ, क्योंकि मित्र तू मेरा खास है। ऐसे में अपने खास को देखकर उसकी खुशी को बढ़ाता हूँ और ग़म को बांट उसके ग़म को कम करने का प्रयास करता हूँ। 

  • आपदा में साथ खड़ा हो - दोस्त अथवा मित्र वो है जो आपकी आपदा अथवा ग़म में आपके साथ रहे। कभी मुसीबत के समय आपको अकेला छोडकर भाग खड़ा ना हो। जो अपने मित्र पर आई हुई मुसीबत को देखकर भाग खड़ा होता है, वो कभी मित्र नहीं हो सकता है। ऐसे में मित्र की असली पहचान कोई मुसीबत ही करती है। 
  • आदत आपसे मिलती हो - मित्र वह होता है, जिसकी आदत आपकी आदतों से मिलती-जुलती हो। जिनकी आदतें एक जैसी नहीं होती है, ऐसे दो शख्स आपस में मित्र हो, यह काफी रोचक होता है। इसके अतिरिक्त समान रूचि और समान काम से भी मित्र बन सकते हैं। इसी कारण के चलते सामन्यतः सहकर्मी दोस्त बन जाते हैं, क्योंकि समान रूचि के चलते समान काम करने लगते हैं। 
  • आपकी बात पर गुस्सा ना करे - मित्र वो है, जो आपकी खुशी को दुगुना कर सके और ग़म को बांट सके। इसी के कारण वो आपकी बात पर गुस्सा नहीं हो सकता है। वो आपकी नकारात्मकता में भी सकारात्मकता ढूँढ कर आपकी कैसी भी बात को हंसकर टाल देता है। वो कभी आपकी बात, भाव या मज़ाक को लेकर गुस्सा नहीं करता क्योंकि आपकी प्रकृति को भलीभांति पहचानता हैं। 
  • आपका अनावश्यक फायदा ना उठाता हो - वह कभी भी आपका अनावश्यक तरीके से फायदा उठाने का प्रयास नहीं करता हैं। वह आपके जरिए अगर अपने काम की सोचता है तो समझ लीजिए, वह आपका मित्र नहीं है। वह आपका फायदा उठाने वाला आस्तीन का साँप हो सकता है। ऐसे में अगर कोई आपका फायदा उठाने का प्रयास कर रहा है तो उससे जितना जल्दी हो उतना दूर हो जाइए।
  • अपनी विपदा आपके सर ना डालता हो - एक सच्चा और पक्का मित्र कभी भी अपनी विपदा अथवा मुसीबत को आपके सिर पर नहीं डाल सकता है। सच्चा मित्र तो वही होता है जो अपने मित्र पर आई मुसीबत को भी अपने सिर पर ले ले। ऐसे में कोई मित्र किसी मुसीबत में आता है तो दोस्त की मदद ले सकता है लेकिन अपनी मुसीबत दोस्त के सिर नहीं डाल सकता है। 
एक सच्चे दोस्त में उपर्युक्त सभी गुण होते हैं। एक सच्चा दोस्त कभी भी अपनी मुसीबत दोस्त के सिर पर नहीं डालता है। सच्चा दोस्त सच्चा साथी होता है, ऐसे सच्चे दोस्त की पहचान उसके गुण से कीजिये। ऐसे में अगर किसी व्यक्ति में ऐसी सभी या कुछ विशेषताएं पायी जाती है, तो उसे आप मित्र मान सकते हैं। 

मित्रता की कहानी - 


एक समय कि बात है, एक जंगल में कई हिरण रहते थे। सभी हिरण मिलजुल कर भाई चारे से जंगल में रहते थे। उन हिरण में दो हिरण एलेक्स और जॉन में गहरी दोस्ती थी। साथ चरते साथ पानी पीते और बैठते भी साथ ही थे। उनकी दोस्ती को देखते हुए कैरी बहुत चिढ़ता था। वो उन पर हमला कर अपने इलाके से भगाना चाहता था लेकिन इस बात से डरता भी था कि अगर दोनों ने मिलकर हमला कर दिया तो उसकी (कैरी) की दुर्गति भी हो सकती है। 

एक दिन वो दोनों पानी पीने गए तो दोनों एक-दूसरे से अलग हो गए। कैरी ने जॉन को अकेला देख इसे एक अवसर समझते हुए जॉन पर हमला कर दिया। एकाएक हुए हमले से जॉन घबरा गया। वह लड़खड़ा कर गिर गया। कैरी ने हमला जारी रखा।  इस हमले को देख अन्य हिरण भागने लगे, यूँ लगा मानो जंगल में कोई जानवर है ही नहीं। 

अब कैरी पर पीछे से हमला हुआ। कैरी कुछ सोच पाता तब तक थके हुए कैरी पर एलेक्स टूट पड़ा। कैरी ने मुड़कर एलेक्स पर भी हमला कर दिया, अब एलेक्स भी गिरने ही वाला था। तब जॉन ने खड़ा हो कैरी पर हमला कर दिया। अब दोनों ने कैरी पर हमला किया तो कैरी भाग खड़ा हुआ। 

यह सच्चे मित्र की कहानी है जो अपने मित्र को मुसीबत में फंसा हुआ देखकर भाग खड़ा नहीं होता है। एलेक्स ने पहले जॉन को बचाया फिर जॉन ने एलेक्स को। दोनों ने एक-दूसरे का साथ दिया। यह ही सच्ची मित्रता होती है। 

सच्चे मित्र की 10 पहचान - 


हर कोई साथ रहने वाला मित्र नहीं होता है, हर कोई हमदर्द नहीं हो सकता है। मित्र में कुछ खास होना जरूरी होता है। अगर उसमे कुछ खास नहीं है तो वह सच्चा मित्र नहीं हो सकता है। एक सच्चे मित्र की निम्नलिखित विशेषताओं का होना जरूरी है। इन्हीं विशेषताओं से आप एक सच्चे मित्र की पहचान कर सकते हैं। 
  1. सच्चा मित्र किसी भी परिस्थिति में अपने मित्र से दूर नहीं होता है। अपने मित्र को मुसीबत में छोड़कर भाग नहीं सकता है। 
  2. सच्चा मित्र बारिश में भी अपने मित्र के आंसू देख लेता है, क्योंकि वो चेहरे को नहीं दिल को पढ़ना जानता है। 
  3. एक सच्चा मित्र अपने मित्र को हमेशा सम्मान से देखता है और हमेशा उसका दिल से सम्मान करता हैं। 
  4. सच्चा मित्र कभी भी अपनी मुसीबत को अपने मित्र के सिर पर नहीं डालता है। 
  5. मित्र पर आई मुसीबत को देखकर एक सच्चा मित्र भाग नहीं सकता है, वो अपने मित्र को बचाने के लिए सबसे पहले सामने आता है, मित्र को बचाने। 
  6. एक सच्चा मित्र वो है, जो कभी भी अपने दोस्त का मज़ाक नहीं उड़ाता है। 
  7. सच्चा मित्र कभी भी किसी मित्र की निजी बातों को अन्य लोगों के साथ शेयर कर उसका मज़ाक़ नहीं बनाने देता है।
  8. सच्चा दोस्त अपने दोस्त के दिल में चल रहे ख्याल को जान जाता है। 
  9. सच्चा दोस्त गलत सलाह नहीं देता लेकिन अपने मित्र के जुनून को पूरा करने में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देता है। 
  10. सच्चा मित्र अपने मित्र से फिजूलखर्ची नहीं कराता और ना ही करने की स्वीकृति देता है। 
उपर्युक्त के अतिरिक्त भी कई सारी विशेषताएं होती हैं। कई बार गलत कार्यो में लीन व्यक्ति अपने मित्र के कारण ऐसे कार्यो में लीन हो जाते हैं। इसे किसी भी परिस्थिति में उपयुक्त नहीं कहा जा सकता है। 

अन्य प्रश्न 


प्रश्न - मित्र के पर्यायवाची शब्द क्या हैं? 

उत्तर - मित्र, सखा, दोस्त, हमदर्द, वीरु, सहचर, साथी, शुभचिंतक, संगी और बंधु। 

प्रश्न - मित्र क्या होता है? 

उत्तर - मित्र, दोस्त या सखा वह साथी होता है जो विश्वास पात्र होने के साथ ही हर खुशी को दुगुना करने वाला और हर ग़म को बांटने वाला होता है। यह दिल से चाहने वाला व्यक्ति होता है को कभी अपने मित्र को मुसीबत में नहीं देख सकता है। मित्र भाई से अलग एक भाई होता है जो विपदा में फंसे मित्र को निकालने का प्रयास करता हैं। यह वो व्यक्ति होता है जो अपने मित्र के सपनों को अपनी आँखों में देखना चाहता है, उसे पूरा करने के लिए अपना सर्वस्व त्याग देता है। 

प्रश्न - मित्रता का मूल आधार क्या होता है? 

उत्तर - मित्रता, एक सच्ची मित्रता का मूल आधार विश्वास होता है। मित्र एक-दूसरे पर खुद से भी अधिक विश्वास करते हैं। इसके बाद मित्रता का आधार स्नेह और बराबरी होता है। मित्रों में अगर बराबरी नहीं होगी तो इसे आप मित्रता नहीं कह सकते हैं। मित्र वही जो मुसीबत में काम आए, बिना स्नेह के कोई मुसीबत में खड़ा नहीं होता है, ऐसे में स्नेह मित्रता का सबसे बड़ा आधार होता है। 

प्रश्न - मित्र का कर्तव्य क्या होता है?

उत्तर - एक सच्चे मित्र का कर्तव्य मुसीबत में फंसे हुए अपने मित्र को निकालने से उसे पुनः समान्य स्थिति में लाने तक का होता है। एक सच्चा मित्र अपने मित्र पर पूर्ण विश्वास करता हैं ऐसे में मित्र का कर्तव्य है कि वो इस जिम्मेदारी को समझते हुए अपने मित्र के विश्वास को कायम रखे और स्वयं भी विश्वास करे। मित्रता कभी एक तरफा नहीं होती है। दोनों का बराबर सहयोग और सम्मान होना जरूरी है। मित्र किसी भी परिस्थिति में अपने मित्र को नीचा दिखाने की कोशिश नहीं करता ऐसे में उसका कर्तव्य है कि अपने मित्र से सम्मान, स्नेह और बंधुत्व से पेश आए। सबसे अहम मित्र का कर्तव्य है कि अपने मित्र की निजी बातों को अन्य लोगों के साथ शेयर कर उसे मज़ाक़ का पात्र ना बनाये। बल्कि उसके ग़म को अपना ग़म समझकर दूर करने के लिए पूर्ण प्रयास करे। 

प्रश्न - किसे मित्र नहीं बनाना चाहिए?

उत्तर - किसी ऐसे व्यक्ति को मित्र नहीं बनाना चाहिए जो विश्वास पात्र ना हो। जो आपको सम्मान की नजर से देखने की बजाय आपको नीचा दिखाने का प्रयास करे वो कभी भी मित्रता के काबिल नहीं हो सकता है। मित्रों में बराबरी का होना जरूरी है, ऐसे में घमंडी व्यक्ति भी मित्रता के काबिल नहीं हो सकता है। 

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