नकारात्मकता का भाव आजकल इतना तेजी से बढ़ रहा है कि कोई किसी की थोड़ी सी प्रशंसा क्या कर दे, सुनने वाले किसी अचम्भे में आ जाते हैं। हर कोई बस आजकल इतना नकारात्मकत हो गया है उन्हें किसी भी व्यक्ति, भाव या वस्तु में सकारात्मकता बहुत ही कम नजर आती है।
सोशल मीडिया का जितना उपयोग बढ़ा, लोगों में उतना ही नकारात्मकता का भाव भी बढ़ता गया। इसी का नतीजा है कि आज हर कोई नकारात्मकता में पैर से सिर तक डूब चुका है, जो प्रतिदिन एक घंटा या अधिक समय सोशल मीडिया पर बिताता है। सोशल मीडिया से व्यक्ति कृत्रिम तरीके से नकारात्मकता सीख रहा है।
नकारात्मकता का अर्थ -
नकारात्मकता मन का ऐसा भाव है, जो किसी वस्तु, विचार या तथ्य को स्वीकार करने में संदेह की उत्पत्ति कर मन को उसे नकारने के लिए विवश करता हैं। यह मन का ऐसा भाव है को भ्रम और संदेह से अस्वीकार के भाव पैदा करता हैं। मन के ऐसे भाव किसी पूर्वाग्रह और अपनी समझ के भाव से भी पैदा हो सकते हैं। यह एक निराशावादी दृष्टिकोण है, जो लाभ या सुलभता को ढूँढने की बजाय नुकसान और भविष्य में किसी प्रकार की बाधा की तरफ इशारा कर व्यक्ति को नकारा भाव से सोचने के लिए विवश करता हैं।
नकारात्मकता व्यक्ति की ऐसी मनोदशा है, जो उसे कुछ बेहतर करने और सोचने से रोकती है। नकारात्मकता जो भाव पैदा करती है वो है नकारा, अस्वीकार्य। ऐसे भाव व्यक्ति को आगे बढ़ने से रोकते हैं। मन में भ्रम पैदा कर कदम पीछे की तरफ लेने के लिए भ्रमित किया जाता है। ऐसे भाव में व्यक्ति चिंतित और उदास हो अकेला भी महसूस करता हैं।
नकारात्मक उन्हें कहा जाता है, जिसमें ना का बोध हो। ऐसे ही ना के बोध को कराने वाला व्यक्ति का भाव नकारात्मक भाव होता है। ऐसे नकारात्मक भाव के सतत उपयोग से व्यक्ति में नकारात्मकता की उत्पत्ति होने लगती है। जब व्यक्ति के मन में नकारात्मकता की उत्पत्ति हो उसे पूरी तरह से घेर लेती है, उस समय वो चिढ़चिढ़ा और उदास हो थकावट को महसूस करने लगता है। नकारात्मकता बूरी होने के बावज़ूद भी लोगों को घेरे जा रही है।
नकारात्मक क्या होता है?
नकारात्मक से आशय ऐसी प्रतिक्रिया या भाव से है, जिसमें विशिष्ट गुणों अथवा विशेषताओं का अभाव प्रकट करता है। नकारात्मक का सम्बन्ध ना अथवा नहीं है। यह हमे बताता है कि ऐसा नहीं है। साथ ही नकारात्मक गणितीय भाषा में ऋणात्मक भाव होता है। उदाहरण के लिए शेयर बाजार नकारात्मक है, इसका अर्थ है कि उसमे गिरावट आई है। ऐसे ही किसी बच्चे के प्रोग्रेस रिपोर्ट के नकारात्मक होने का आशय अंक पूर्व परीक्षा की तुलना में कम आए हैं।
नकारात्मक एक प्रकार से इंकार या निषेध को इंगित करता हैं। यह स्पष्ट करता हैं कि चाही गई विशेषता नहीं है अथवा क्रिया नहीं हो रही है। उदाहरणार्थ - मैं नहीं आ सकता हूं। यह नकारात्मक भाव है, जिसमें यह बता रहा हूँ कि मैं नहीं आने वाला। ऐसे ही भाव को नकारात्मक भाव कहा जाता है।
व्यक्ति का स्वभाव भी नकारात्मक हो सकता है। ऐसे लोग किसी पूर्वाग्रह के कारण हमेशा नहीं होने का ही सोचते हैं। ऐसे भाव से गिरे हुए लोग नकारात्मकता को बढावा देते हैं। एक सिक्के के दो पहलू होते हैं, सकारात्मक और नकारात्मक। वैसे ही व्यक्ति की सोच भी सकारात्मक और नकारात्मक हो सकती है। सकारात्मक लोग हमेशा सही सोचते हैं तो वही नकारात्मक लोग गलत सोचते हैं। उदाहरणार्थ दो अलग प्रकार की सोच के व्यक्ति बिजली के बारे में चर्चा करेंगे तो सकारात्मक सोच के व्यक्ति बिजली के गुण की बात करेंगे और नकारात्मक सोच वाले बिजली के दोषों पर अपना रोना रोयेंगे।
नकारात्मकता के कारण -
नकारात्मकता किसी इंसान को यूँ ही नहीं घेर लेती है, इसके कुछ कारण होते हैं। एक व्यक्ति को नकारात्मकता निम्नलिखित कारणों से उत्पन्न होती है -
- गलत अवधारण पर अधिक विचार और विश्लेषण -व्यक्ति जब गलत अवधारणा का या ऐसी अवधारणाओं का उपयोग करते हुए विश्लेषण करता हैं, तो निष्कर्ष गलत आते हैं। गलत निष्कर्ष उसे गलत राह यानी नकारात्मकता की ओर ले जाता है।
- नकारात्मक चिंतन -.व्यक्ति कि सोच इस प्रकार की हो जाती है या किसी वातावरण की वज़ह से नकारात्मक हो चिंतन करने लगता है तो इसका प्रभाव उसके व्यावहार में आने लगता है।और ऐसे व्यवहार के कारण जब भी करता हैं तो उसमे महक नकारात्मकता आती है।
- क्रोध - जब व्यक्ति क्रोधित होकर कोई चिंतन या विशलेषण करता हैं तो परिणाम भयावह होते हैं। ऐसे परिणाम उस व्यक्ति को नकारात्मकता की ओर ले जाते हैं। उदाहरणार्थ जब कोई आपको कुछ गलत कहता है तो आप भी उसे हानि पहुंचाने के बारे में सोचने लगते हैं, जो नकारात्मकता का भाव है।
- भविष्य का डर - भविष्य के डर की वज़ह से आदमी नकारात्मक होने लगता है। एक विद्यार्थी अनुत्तीर्ण होने के डर से किसी कोर्स में प्रवेश ना ले, किसान बारिश ना होने के डर से खेती ना करे और व्यापारी घाटा होने के डर से नया व्यापार करने की सोचते ही नहीं है। तो ऐसे भाव नकारात्मकता के भाव है जो आदमी को नकारा कर कुछ भी नया नहीं करने देते हैं।
- नकारात्मक आत्म-आलोचना - आदमी खुद ही किसी वस्तु अथवा विचार की नकारात्मकता से आलोचना करने लगे तो कुछ समय बाद यह उसके व्यावहार का हिस्सा बन जाता है। ऐसा व्यावहार आदमी को नकारात्मकता की सोच में धकेल नकारा कर देता है, जो कुछ भी स्वीकार करने की स्थिति में ही नहीं रहता है।
- आत्म-विश्वा की कमी - जिन लोगों में आत्मविश्वास की कमी होती है, उनकी सोच नकारात्मक हो जाती है। जिस विद्यार्थी में उत्तीर्ण होने का आत्मविश्वास ना हो या व्यापारी में व्यापार करने के लिए आत्मबल ना हो ऐसे लोग उस कार्य को कर ही नहीं सकते और उनकी सोच भी उस कार्य के प्रति नकारात्मक हो जाती है।
- विनाशकारी सोच - जिन लोगों की सोच विनाशकारी होती है, उनके विचार नकारात्मक होते हैं। या आप यूँ भी कह सकते हैं कि नकारात्मकता विचारधारा विनाशकारी कृत्यों की ओर धकेलती है। ऐसे में ऐसी सोच के व्यक्ति हमेशा नकारात्मक ही सोचते हैं।
- जल्द निर्णय लेना - कई बार बहुत जल्द सभी चीजों को सही से परखें बिना निर्णय लेने से सही निर्णय नहीं होते हैं, ऐसे निर्णय नकारात्मकता की ओर धकेलते है। हमेशा निर्णय उपयुक्त समय के साथ और सही सोच विचार करके ही लेने चाहिए।
- दृष्टिकोण - कई लोग माहौल, शिक्षा या जीवन की घटनाओं से नकारात्मक हो जाते हैं। ऐसे लोगों का दृष्टिकोण भी नकारात्मक हो जाता है। उदाहरण के लिए कई (लगभग आधी आबादी) का राजनीति और राजनेताओं के प्रति ऐसा दृष्टिकोण पाया जाता है। ऐसे नकारा दृष्टिकोण के व्यक्ति राजनीति को लेकर एक ही बात कहते हैं, कोई भी जीत जाए, कोई भी आ जाए, सब खाएंगे।
- स्वदोष - अपने स्वयं के दोष के कारण या खुद को ही कई घटनाओं का जिम्मेदार मानते हुए कई व्यक्ति मन में नकारात्मक सोच भर लेते हैं। ऐसी सोच अपने दृष्टिकोण या शिक्षा के कारण भी हो सकती है। कई लोग मानते हैं कि अगर मैं मैच देखूँगा तो मेरी टीम (जिसे सपोर्ट कर रहा है) हार जाएगी।
नकारात्मकता से भरी हुई अपनी सोच के कारण व्यक्ति यह सोच दूसरे लोगों के साथ शेयर कर दूसरों में भी नकारात्मक भावना भर देते हैं।
सोशल मीडिया से नकारात्मकता -
आजकल सोशल मीडिया से लोगों में तेजी से नफरती के साथ नकारात्मकता की भावना तेजी से बढ़ रही है। लोग कुछ लाइक्स और शेयर पाने के लिए इस तरह की पोस्ट करते हैं। इस तरह की पोस्ट का समाज पर क्या असर होगा? खासतौर से उन लोगों पर जो भावनात्मक रूप से बहुत ही भावुक होते और हर बात उन्हें सच्ची ही लगती है। बच्चों पर क्या असर होगा, जो अपने पेरेंट्स के साथ मोबाइल फोन देखते हैं। यह सोचे बिना ही ऐसी पोस्ट शेयर करने या पोस्ट करने से, भावुक लोग उनकी गिरफ्त में आ जाते हैं। किसी के लिए यह महज एक पोस्ट है, जिसका इस्तेमाल महज लाइक्स पाने के लिए किया जा रहा है। लेकिन यही पोस्ट किसी की सोच, भावना और दुनिया को उजाड़ कर रख देती है, यह सोचते तक नहीं हैं।
आजकल ऐसा सुनने और देखने में आम है कि गुमसुम रहने वाले व्यक्ति किसी विशेष प्रकार के शो देखते हैं। कई ऑनलाइन गेम खेलने वाले तो अपनी जिंदगी के साथ भी खेल जाते हैं। ऐसे में नकारात्मक विचारो को पढ़ने और देखने वाले की क्या दुर्दशा होती है। पहले सुनने और अखबारो में खबरे आती थी कि किसी फिल्म को देखकर क्राइम का तरीका सीख लिया। ऐसे ही नकारात्मकता से भरा सोशल मीडिया समाज को बीमारू और नकारा बना रहा है। सोशल मीडिया पर किसी व्यक्ति या समूह के प्रति नकारात्मकता फैला उनका बंटाधार कर देते हैं।
विस्तृत जानकारी के लिए इसे बचे - सोशल मीडिया की नकारात्मकता और बचाव।
नकारात्मकता का स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव होते हैं?
नकारात्मकता की भावना महज विचारो तक ही सीमित नहीं रहती है। यह धीरे-धीरे व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक दोष उत्पन्न करने लगती है। अधिक नकारात्मक सोचने पर स्वास्थ्य पर निम्न प्रभाव होते हैं -
- थकावट - आदमी जल्दी थकान महसूस करने लगता है और उसके शरीर पर जल्द थकावट आने लगती है।
- सिरदर्द - अधिक नकारात्मक सोचने से सिरदर्द होने लगता है। कई बार बुखार तक नहीं आ जाता है, ऐसा होने का कारण एक अदृश्य भय भी हो सकता है।
- अनिद्रा - नकारात्मक विचार आदमी के सुख-चैन छिन लेते हैं। ऐसे में नींद गायब होने लगती है। अनिद्रा के भयंकर परिणाम भविष्य में देखने को मिल सकते हैं।
- चिंता - नकारात्मकता का कारण चिंता होती है, और चिंता से स्वास्थ्य पर विपरित प्रभाव होते हैं। किसी ने ठीक ही कहा है कि चिंता शरीर की चिता बना देती है।
- तनाव - नकारात्मकता से तनाव भी होने लगता है क्योंकि चिंता, सिरदर्द और अनिद्रा से तनाव होना आम बात है।
उपर्युक्त के अतिरिक्त नकारात्मकता से जल्दी क्रोध आना आम बात है। कई बार अधिक नकारात्मकता से व्यक्ति के मानसिक संतुलन के बिगड़ने तक का भय उत्पन्न हो जाता है। इनके अलावा पेट खराब होना भूख ना लगना, बैचैनी आदि भी हो सकते हैं।
नकारात्मकता से बचने के उपाय -
नकारात्मकता व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए घातक है। व्यक्ति के शरीर को दुर्बल बना देती है, आंखे कमजोर होने लगती है और कमर झुक जाती है। ऐसे में इससे बचना जरूरी है, इससे बचने के लिए निम्न उपाय किए जा सकते हैं -
- योग - योग से मानव मस्तिष्क को शांति मिलती है। ग़ज़ब की ताजगी का एहसास होता है। यह ताजगी व्यक्ति के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करती है।
- अध्ययन या पढ़ना - अच्छा और सकारात्मक साहित्य पढ़कर व्यक्ति नकारात्मकता से दूर हो सकता है। ऐसे ही सकारात्मक विचार पढ़ने से नकारात्मकता दूर हो सकती है। अगर आप सोशल नेटवर्किंग साइट पर नकारा लोगों को फॉलो करते हैं तो आज ही उन्हें बाय करे।
- लोगों से बातचीत - अच्छे स्वास्थ्य के लिए लोगों से बातचीत ज़रूरी है। अच्छे लोगों से बातचीत करने से सकारात्मक विचारो की उत्पत्ति होती है और नकारात्मक विचार मन में उत्पन तक नहीं होते हैं।
- अपने दृष्टिकोण की तुलना - अगर किसी व्यक्ति का दृष्टिकोण ही नकारात्मकता है तो उसे दूसरे लोगों के साथ अपनी तुलना करनी चाहिए। अगर नकारात्मकता को छोड़कर तुलना की जाए तो विचारो और भावनाओं में परिवर्तन सम्भव हैं।
- नए दोस्त बनाना - नए दोस्त बनाने से नए विचारो की उत्पत्ति होती है। लेकिन नए दोस्त बनाते समय इस बात का ध्यान रखे कि आपके नए दोस्तों के विचार सकारात्मक हैं।
- विचार करना - नकारात्मक विचारधारा के लोगों को कभी अपने विचारो पर विचार या विश्लेषण करना चाहिए। ऐसा करने से कई नकारात्मक विचार स्वत ही समाप्त हो उनकी जगह सकारात्मक विचार ले सकते हैं।
- प्रकृति से बाते - अपने आप और प्रकृति से बाते करने से व्यक्ति में प्रेम की भावना बढ़ती जा रही। प्रेम ही एक ऐसी दवा है जो बड़ी से बड़ी नकारात्मकता से पीछा छुड़ा सकती है।
ऐसे नकारा विचारो का त्याग करने के लिए व्यक्ति को अच्छी नींद लेने का प्रयास करना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि नकारा विचार उसे छू तक ना सके।
नकारात्मकता को छोड़ना जरूरी क्यों?
नकारात्मकता व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए उचित नहीं होती है, इसे तत्काल छोड़ देना ही उपयुक्त है। आपको लेख के माध्यम से इसके दोष बताये जा चुके हैं। यह सभी दोष व्यक्ति को के स्वास्थ्य पर बुरा असर करते हैं। साथ ही कुछ और भी कारण है, जिसके कारण ऐसे विचारो का त्याग आवश्यक है -
- नकारात्मकता कभी दोस्ती की तरफ हाथ नहीं बढ़ाती है, ऐसे में नकारा विचार रखने वालों को लोग छोड़ देते हैं।
- ऐसे अनुपयुक्त विचार नया सीखने में बाधा बनते हैं।
- व्यक्ति का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है।
- ऐसे विचारो से व्यक्ति की सोच विनाशकारी हो जाती है और स्वयं को भी चोट पहुंचा सकता है।
- ऐसे विचारो से व्यक्ति तनावग्रस्त हो अकेला महसूस करने लगता है।
नकारात्मकता को छोड़ना जरूरी है वर्ना लोग या तो छोड़ देते हैं, या मज़ाक़ बनाने लगते हैं। ऐसे में व्यक्ति घोर निराशा में चला जाता है। इसलिए इसका त्याग आवश्यक है, इसे छोडने की महता समझने के लिए नीचे लिखी लाइन को पढ़े -
ज्ञानी से ज्ञानी मिले करे ज्ञान की बात।मुर्ख से मुर्ख मिले या मुक्का या लात।।नकारा विचार उपजाए विनाश की बात।शुद्ध विचार संवारे जीवन के सारे पात।।
यहां पात से अभिप्राय जीवन के हिस्सों से है। जैसे पात से घर की छत बनती है, वैसे ही विचारो से जीवन की छत और जीने की आस बनती है।
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