एनपीए समस्या और समाधान : कारण और प्रकार। NPA

एनपीए समस्या और समाधान : कारण और प्रकार। NPA

अक्सर हम अखबार, टीवी चैनल पर एनपीए के बारे में सुनते और पढ़ते रहते हैं। राजनीतिक और गैर राजनैतिक चर्चा में जहां बैंक और ऋण का उल्लेख होता है, वहाँ एनपीए की चर्चा ना हो यह सम्भव ही नहीं। पिछले कुछ वर्षो में एनपीए के बिना बैंक की चर्चा सम्भव ही नहीं हो पा रही है।

एनपीए समस्या और समाधान : कारण और प्रकार। NPA

एनपीए वर्तमान में बैंक और वित्तीय संस्थाओं के समक्ष सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरी हैं। एनपीए एकतरफ जहां बैंक और वित्तीय संस्थाओं की ऋण देने की शक्ति को प्रतिकूल तरीके से प्रभावित करता हैं तो दूसरी ओर एनपीए से उनकी नीयत पर भी प्रश्न चिह्न लग जाते हैं।

एनपीए क्या है? -


एनपीए (Non-performing Assets) का अर्थ गैर निष्पादित परिसंपत्तियों से हैं। ये संपत्तियां बैंक कि बहियों और बैलेंस शीट में तो होती है, लेकिन इनका वास्तव में कोई अर्थ नहीं रह जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ये बैंक द्वारा वसूल किए जाने या इनके द्वारा साख का निर्माण कर किसी और को ऋण देने योग्य नहीं रहती है। सामन्यतः जब किसी बकाया ऋण के मूलधन और ब्याज की 90 दिन या इससे अधिक समय अवधि में वसूली नहीं होती है तो बैंक ऐसे ऋणों को एनपीए मान लेता है। 

बैंक के लिए एनपीए एक बड़ी समस्या है। जब बैंक द्वारा दिए गए ऋण की वसूली नहीं होती है तो बैंक उसे बकाया मान लेता है। जब बकाया राशि की लंबे समय तक वसूली नहीं होती है तो इसे डिफॉल्ट कर दिया जाता है। डिफॉल्ट का अर्थ यह है कि बैंक और ऋण प्राप्त कर्ता के मध्य का समझोता टूट गया है और ऋण प्राप्त करने वाला व्यक्ति बैंक को ऋण का भुगतान करने में समर्थ नहीं है। 

एनपीए के सम्बन्ध में आरबीआई के नियम -


आरबीआई (रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया) ने वर्ष 2021 में गैर निष्पादित परिसंपत्तियों के सम्बंध में नए नियम बनाये गये। आरबीआई द्वारा बनाये गये नए नियमो को समझने के पूर्व कुछ मुख्य बातों को समझ लेना आवश्यक है जो यूँ है - 
  • विशिष्ट उल्लेखित खाते (Special Mentioned Account - SMA) में SMA-0 खाते 30 दिन, SMA-1 खाते 30 दिन se 60 दिन और SMA-2 खाते 60 दिन se 90 दिन तक कि अवधि का उल्लेख करते हैं। 
  • SMA के लिए दिनों की गिनती कैलेंडर से होगी, कृषि सम्बन्धित ऋणों के लिए यह नियम लागू नहीं होते हैं। 
  • एनपीए में डाले गए खाते को मानक खाते में हस्तांतरित किया जा सकता है, अगर ऋणी पूरी बकाया राशि का भुगतान कर दे तो। 
आरबीआई के नए नियमों के मुताबिक अगर बैंक या किसी वित्तीय संस्थान द्वारा दिया गया ऋण 90 दिन की अवधि से बकाया है। ऐसे बकाया के लिए मूलधन और ब्याज की राशि का कोई भुगतान नहीं किया गया है, उसे SMA-2 की श्रेणी में रखते हुए बैंक या वित्तीय संस्थान द्वारा एनपीए घोषित कर दिया जाता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के खातों के सम्बन्ध में निम्न नियम है - 
  • नकद क्रेडिट/बैंक ओवर ड्राफ़्ट के संबंध में एक खाता 'ऑउट ऑफ ऑर्डर' हैं, अथवा मूलधन या ब्याज बकाया है। 
  • 90 दिन से अधिक अवधि के लिए बकाया बिल। 
  • कृषि ऋणों के सम्बन्ध में 2 फ़सल की अवधि तक के लिए बकाया। 
  • लंबी अवधि की फसलों के लिए एक अवधि (मौसम) पूर्ण होने के बाद भी बकाया। 
  • तरलता से सम्बन्धित उधारी और अग्रिम की 90 दिन की अवधि के बाद भी बकाया। 
कृषि सम्बन्धित ऋणों को छोड़कर शेष के 90 दिन कि अवधि में बकाया की वसूली नहीं होने पर बकाया को एनपीए घोषित किया जा सकता है। 

एनपीए के प्रकार - 


एनपीए के निम्न प्रकार है - 

सभी एनपीए के खाते एक समान नहीं होते हैं, इनमे कुछ भेद भी होता है। यह भेद अवधि से किया जाता है। ऐसे में अवधि के अनुसार एनपीए को निम्न प्रकार में बांटा गया है - 
  1. घटिया एनपीए (Substandard NPA) - यह विशेष एनपीए है जो 12 महीने से कम अवधि या उसके बराबर की अवधि के लिए अतिदेय हो। 
  2. संदिग्ध एनपीए (Doubtful NPA) - ऐसा एनपीए जो 12 महीने या उससे अधिक अवधि के लिए घटिया एनपीए बना रहता है। 
  3. हानि परिसंपत्तियां (Loss Assets) - जब एनपीए भारतीय रिजर्व बैंक के नियमानुसार बैंक या वित्तीय संस्थानों के लिए हानि अथवा नुकसान की श्रेणी में आ जाएं। 
उपर्युक्त सभी प्रकार वसूली ना होने की अवधि से है। 

एनपीए खाता क्या होता है? 


एनपीए खाता से अभिप्राय ऐसे खाते से है, जिससे बैंक या वित्तीय संस्थान आरबीआई द्वारा निर्धारित की गई अवधि के दौरान मूलधन और ब्याज की वसूली ना हुई हो। सामन्यतः कृषि सम्बन्धित ऋणों को छोड़कर शेष 90 दिन के लिए बकाया है तो ऐसे खातों को एनपीए खाता घोषित कर दिया जाता है। इसे आप यह भी कह सकते हैं कि कृषि के अतिरिक्त अन्य खातों से लगातार तीन महीने तक किसी प्रकार की वसूली नहीं होने से खाता एनपीए घोषित कर दिया जाता है। 

एनपीए खाता उन खातों को कहा जाता है, जिनसे लगातार 3 महीने की अवधि या उससे अधिक अवधि में वसूली नहीं हुई हो। जब बैंक मूलधन और ब्याज की लगातार तीन महिने तक वसूली करने में असमर्थ रहता है तो उसे सबसे पहले घटिया एनपीए मान लेता है। जब ऐसे खाते से एक वर्ष की अवधि तक वसूली नहीं होती है तो इसे संदिग्ध एनपीए घोषित कर देते हैं। इसके बाद भी वसूली नहीं होने पर आरबीआई के दिशानिर्देशों से नुकसान घोषित कर दिया जाता है। इस अवधि के दौरान किसी खाते से वसूली हो जाती है तो इसे प्रमाणित (standard) खाता घोषित कर दिया जाता है। 

एनपीए एक समस्या - 


एनपीए भारतीय बैंकों और वित्तीय संस्थानों के लिए एक बहुत बड़ी समस्या है। इस समस्या के चलते बैंक, उद्योग, रोजगार और अर्थव्यवस्था को नुकसान होता है। ऐसे में यह समस्या बैंक या वित्तीय संस्थान तक सीमित ना होकर एक विस्तृत समस्या है जो अर्थव्यवस्था को प्रतिकूल तरीके से प्रभावित करती है। ऐसे में इस समस्या को समझने के लिए हम इस कुछ हिस्सों में बांट देखते है। सबसे पहले एनपीए होने के कारणों का अध्ययन करते हैं। 

एनपीए के कारण - 


बैंक और वित्तीय संस्थानों द्वारा दिए गए लोन की वसूली ना होने से एनपीए की उत्पत्ति होती है, लेकिन सवाल यह है कि आखिर यह राशि डूब क्यों जाती है? कई विशेषज्ञों का इसके लिए मानना है कि - 
  • बाजार के आर्थिक कारणों से - कई बार मंदी, बाजारों की प्रतिकूल परिस्थिति या उद्योग की चुनौतियों के कारण ऋणी बैंक को समय से या बिल्कुल भी नहीं भुगतान कर पाते हैं। 
  • कुप्रबंधन - बैंक और वित्तीय संस्थानों का प्रबंध जब लोन देने के लिए गलत फैसले लेता है तो ऐसे लोन का पुनर्भुगतान सम्भव ही नहीं होता है। विजय माल्या का लोन इसी श्रेणी के लोन मे था। 
  • सरकारी नीति में बदलाव - सरकार समय-समय पर उद्योग सम्बन्धित नीतियों में परिवर्तन करती रहती है। ऐसे में जब सरकार कोई ऐसी नीति लागू कर दे जो उद्योग के मूल उद्येश्यों के प्रतिकूल हो तो उद्योग बंद हो जाता है और उसके ऋण एनपीए की श्रेणी में आ जाते हैं। 
  • प्राकृतिक और बाह्य कारण - भूकंप बाढ़, भूस्खलन जैसे प्राकृतिक नुकसान और चोरी, लूट और आगजनी की घटना से उद्योग को नुकसान होता है तो ऋण का भुगतान सम्भव नहीं हो पाता है। 
उपर्युक्त सभी कारणों से बैंक और वित्तीय संस्थाओं के ऋणों का भुगतान समय से सम्भव नहीं हो पाता है। 

एनपीए से बैंक और वित्तीय संस्थाओं को नुकसान - 


एनपीए से सर्वाधिक नुकसान बैंक और उन वित्तीय संस्थानों को होता है, जो ऋण की वसूली नहीं कर पाते हैं। ऐसे में उन्हें होने वाले कुछ नुकसान निम्नानुसार है - 
  1. एनपीए से बैंक और वित्तीय संस्थाओं की लाभदायकता घटती है। 
  2. जब देश में एनपीए बढ़ता जाता है तो बैंक की कुल पूंजी का क्षय होने लगता है, जिससे राष्ट्रीय आय और जीडीपी प्रभावित होती है। 
  3. अधिक एनपीए का अर्थ है बैंक द्वारा लोन की वसूली नहीं होना, जिससे बैंक नए लोन नहीं दे सकता और ना ही लोगों की जमा का समय से भुगतान कर पाता है, जिससे आर्थिक मंदी की उत्पत्ति हो सकती हैं। 
  4. जब बैंक के एनपीए बढ़ते जाते हैं तो बैंक का प्रमुख कार्य पूंजी निर्माण अथवा साख निर्माण में कमी आने लगती है, जिससे ऋण देने की शक्ति प्रभावित होती है। 
  5. एनपीए के बढ़ने से बैंकिंग व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव होता है। 
  6. जब बैंक अपने ऋण की वसूली करने में असमर्थ हो जाता है तो ऋण देने की शक्ति में कमी आने लगती है। 
  7. देश में जब एनपीए बढ़ने लगाता है तो सरकार बैंक और वित्तीय संस्थाओं के लिए ऋण के लिए कड़े कानून बनाने लगती है, जिससे लोन देना आसान नहीं रह जाता है। 
एनपीए से सर्वाधिक और सीधा नुकसान बैंक को होता है। बैंक द्वारा वसूली नहीं किए जाने से बैंक के कार्य भी विपरित तरीके से प्रभावित होते हैं। 

एनपीए से अर्थव्यवस्था को नुकसान - 


एनपीए स बैंक और वित्तीय संस्थाओं के साथ अर्थव्यवस्थाओं को भी नुकसान होता है, जिसका असर पूरे देश पर होता है, ऐसे में एनपीए अर्थव्यवस्था के लिए भी एक समस्या है। जिसके कारण निम्न हैं - 
  • विकास दर में बाधक - एनपीए देश की अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव करता हैं, जिससे देश की आर्थिक विकास की रफ़्तार धीमी होती है। 
  • वित्तीय नियंत्रण - जब एनपीए बढ़ने लगता है तो सरकार बैंक और अन्य वित्तीय संस्थाओ के लिए कई कानून लाती है। सरकार के ऐसे कानून से वित्तीय नियंत्रण होता है, जिससे कई बार उपभोक्ता की क्रय शक्ति तक प्रभावित हो जाती है। 
  • निवेश और उद्योग स्थापना में कमी - एनपीए के चलते बैंक नए ऋण नहीं देते हैं। बैंकों द्वारा नए ऋण नहीं दिए जाने से निवेश में कमी आने लगती है, जिससे नए उद्योग धंधे स्थापित नहीं हो पाते हैं। 
  • रोजगार पर विपरीत प्रभाव - जब नए उद्योग धंधे स्थापित नहीं होते हैं तो रोज़गार पर भी विपरीत असर होने लगता है और रोजगार घटने लगते हैं। 
उपर्युक्त सभी कारण स्पष्ट तरीके से स्पष्ट करते हैं कि एनपीए एक बहुत बड़ी समस्या है। एनपीए से ना सिर्फ बैंक बल्कि अर्थव्यवस्था और समाज को भी नुकसान होते हैं। समाज को एक निवेशक, उपभोक्ता और श्रमिक के रुप में नुकसान होता है।

एनपीए का निपटारा - 


एनपीए बैंक और वित्तीय संस्थानों के समक्ष एक बड़ी चुनौती है। इस चुनौती से निपटने के लिए भारत सरकार ने दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 लागू की गई। इस कानून के अंतर्गत बैंकों को वसूली की शक्तियां प्रदान की गई। जिन खातों में 1 रुपये से अधिक बकाया राशि हैं, उन खातों से दिवालिया अधिनियम के तहत राशि वसूली के लिए शक्ति प्रदान की गई। 

सरकार ने बैंकों पर बढ़ते हुए एनपीए के भार को देखते हुए समग्र नीति लागू करने की घोषणा की। इसके अतिरिक्त एनपीए के लिए 'सुनील मेहता समिति' का गठन जून 2018 में किया गया। यह समिति ‘बैड बैंक’ की व्यावहारिकता को परखने और सम्पति पुनर्निर्माण कंपनी के गठन के लिये सिफारिश दिये जाने हेतु कहा गया था। इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने एक ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) के निर्माण की घोषणा की जो ₹ 500 करोड़ से अधिक के फंसे हुए लोन की वसूली करेगी।यह बैंक के एनपीए खाते खरीद वसूली का काम करेगी, जिसमें सरकार की कोई दखल नहीं होगी। 

एनपीए का समाधान -


एनपीए एक समस्या है। लेकिन हर समस्या के कुछ समाधान भी होते हैं ऐसे में एनपीए के भी कुछ समाधान अवश्य है। सरकार ने मिशन इंद्रधनुष के तहत एनपीए से निपटने के लिए 4 आर पर जोर दिया जो इस प्रकार से हैं -
  • Recognition (पहचान) - बैंकों को अपनी संपत्तियों का सही मूल्य निर्धारण करने की आवश्यकता है, उन्हें उनके वास्तविक मूल्य के साथ संरेखित करना चाहिए। इसके लिए बैंक को विशेष समिति का गठन करना चाहिए। 
  • Recapitalization (पूर्नपूंजीकरण) - बैंकों की पूंजी को सुरक्षित रखने के लिए, और बाजार की मांगों को पूरा करने के लिए अपनी परिसंपत्ति के मूल्यों का वास्तविक निर्धारण करने के पाश्चात् नए निवेश को बढावा देने के लिए अंश जारी किए जाने चाहिए। 
  • Resolution (संकल्प) - बैंक द्वारा जिन कॉर्पोरेट संपत्तियों को एनपीए घोषित किया हुआ है या तो उन्हें बेचा जाना चाहिए या उनका पुनर्वास किया जाना चाहिए। सरकार इसे सुविधाजनक बनाने के लिए समग्र योजना लागू करने को तत्पर है।
  • Reform (पुर्नगठन) - बैंकों को एनपीए को रोकने के लिए अपने नियमो, योजनाओं और वित्त सभी का पुर्नगठन करना चाहिए। 
उपर्युक्त सभी सुझाव सरकार द्वारा बनाई गई इन्द्रधनुष योजना से है, इनके द्वारा एनपीए को कम किया जा सकता है और किया गया भी है। 

अन्य प्रश्न -


प्रश्न - एनपीए (NPA) का फुल फॉर्म क्या है?

उत्तर - एनपीए (NPA की फुल फॉर्म नॉन परफॉर्मिंग ऐसेट है।

प्रश्न - एनपीए फुल फॉर्म इन हिन्दी क्या है?

उत्तर - एनपीए यानी ऋणों नॉन परफॉर्मिंग ऐसेट कि हिन्दी फुल फॉर्म गैर निष्पादनीय परिसंपत्ति है। 

प्रश्न - एनपीए के लिए किस समिति का गठन किया गया? 

उत्तर - एनपीए के लिए सुनील मेहता समिति का गठन किया गया। 

प्रश्न - एनपीए के लिए सुनिल मेहता समिति का गठन कब हुआ? 

उत्तर - एनपीए के लिए सुनिल मेहता समिति का गठन जून, 2018 में हुआ। 

प्रश्न - सुनील मेहता समिति का संबंध किससे है? 

उत्तर - सुनील मेहता समिति का संबंध बैंक एनपीए से है। 

प्रश्न - एनपीए की वसूली के लिए कौनसा अधिनियम लागू होता है? 

उत्तर - एनपीए की वसूली के लिए दिवाला और दिवालियापन अधिनियम, 2016 लागू होता है। 

प्रश्न - कितने समय वसूली नहीं होने के बाद बैंक द्वारा लोन को एनपीए घोषित कर दिया जाता है? 

उत्तर - लगातार तीन महीने लोन की वसूली नहीं होने के बाद बैंक लोन को एनपीए घोषित कर देता है। 

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