पश्चिमी राजस्थान के सबसे बड़े धार्मिक स्थल रामदेवरा से हर कोई वाकिफ हैं। बाबा रामदेव की नगरी के नाम से पहचान रखने वाली इस नगरी को साम्प्रदायिक सौहार्द कि नगरी के रुप में जाना जाता है। इस नगर में लोक देवता बाबा रामदेव का मंदिर है। यह मंदिर उनकी समाधि पर बना हुआ है, इसी मंदिर से इस नगरी की महत्ता है।
बाबा रामदेव को दुखियों का देव माना जाता है। बाबा रामदेव की आराधना से तन और मन के कष्ट हर जाते हैं। लोग कोसों से अपनी मनोकामना को लेकर पैदल अपने घरों से निकल कई दिनों तक यात्रा करते हुए बाबा के दरबार में हाजिर हो उनके सामने अपनी मनोकामना को पूरा करने के लिये अर्ज़ करते हैं।
बाबा रामदेव मंदिर। Baba Ramdev Mandir
बाबा रामदेव मंदिर से आशय ऐसे मंदिर से है, जिसमें लोकदेवता बाबा रामदेव की मूर्ति लगी हुई होती है। बाबा रामदेव का सबसे बड़ा मंदिर उनके समाधि स्थल रुणीचा, राजस्थान में है। रुणीचा के अन्य नाम रणुजा, रुणेचा आदि है। वर्तमान में इसे रामदेवरा नाम से जाना जाता है। यह जैसलमेर जिले में पोखरण कस्बे से 12 किलोमीटर दूर पूर्व दिशा में है। इस कस्बे का नाम बाबा रामदेव की समाधि के कारण ही रामदेवरा पड़ा।
बाबा रामदेव की समाधी पर एक भव्य मंदिर बना हुआ है। इस भव्य मंदिर का निर्माण बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने 1939 ईस्वी में कराया। इस ऐतिहासिक मंदिर के निर्माण में कुल 57 हज़ार का खर्च आया। इसके बाद मंदिर क्षेत्र का विस्तार हुआ किन्तु गर्भगृह वही है, जो महाराजा गंगा सिंह द्वारा बनाया गया।
बाबा रामदेव को पीरो का पीर कहा जाता है, जिसके कारण हिन्दू और मुसलामान दोनों श्रद्धा से मंदिर परिसर में सर झुकाते है। बाबा रामदेव के मंदिर में सुबह शाम आरती में हज़ारों श्रद्धालु प्रतिदिन शामिल होते हैं। भाद्रपद महीने में मेला भरने के कारण इस आरती में लाखो की संख्या में श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं। इसी के कारण मंदिर परिसर को समय के साथ बढ़ाया गया। मंदिर परिसर में एक साथ 10,000 अधिक लोग खड़े हो सकते हैं। इस परिसर में बाबा रामदेव के अतिरिक्त डाली बाई की भी समाधि और कंगन है।
बाबा रामदेव के मंदिर को देवरा कहा जाता है। देवरा से ही रामदेवरा का नाम पड़ा। गॉव में बाबा रामदेव के छोटे-छोटे मंदिर होते हैं, जिन्हें देवरा कहा जाता है, वही पेड़ों के नीचे बनाये जाने वाले छोटे-छोटे चबूतरो (जिस पर बाबा रामदेव के प्रतीक चिह्न पगल्या स्थापित किया जाता है) को थान कहा जाता है।
बाबा रामदेव मंदिर में प्रसाद -
बाबा रामदेव मंदिर में जाने वाले जातरु मंदिर परिसर के गर्भगृह में प्रसाद और चढावा चढ़ाते है। मंदिर में चढ़ाए जाने प्रसाद की मंदिर परिसर के बाहर कई दुकाने है। इन दुकानों में मंदिर में चढ़ाए जाने योग्य नारियल (सूखा और गिला), मखानै, मिठाई, मीठी गोली आदि मिलती है। बाबा को प्रसाद के रुप में मीठा और शुद्ध शाकाहारी मंदिर में चढ़ाया जाता है। मंदिर परिसर की दुकानों पर प्रसादी के अतिरिक्त मंदिर में चढ़ाए जाने वाले झंडे, घोड़े और ध्वज के साथ पट्टी भी मिल जाती है।
खासतौर से भाद्रपद महीने में भक्तों की लंबी कतार के कारण कई लोग जो मंदिर की कतार में खड़े रहने में असमर्थ होते हैं, उन्हें मंदिर के बाहर प्रसाद चढ़ाने की वैकल्पिक व्यवस्था की जाती है। मंदिर परिसर के आसपास की दुकान पर सब चीज़ मिल जाने के बावज़ूद नहीं कुछ चीजे भक्त बाबा रामदेव के मंदिर में चढ़ाने के लिए घर से लेकर जाते हैं।
माना जाता है कि बाबा रामदेव पांच वर्ष की आयु में मां से घोड़ा लाने की जिद करने लगे। तब उनके लिए दर्जी से हरे रंग के कपड़े से घोड़ा सिलाकर उन्हें दिया गया। बाबा इस कपड़े के घोड़े पर जैसे ही विराजमान हुए तो घोड़ा आसमान की ऊंचाई पर उड़ने लगा। इसी के कारण मान्यता है कि बाबा रामदेव को घोड़ा अतिप्रिय होता है। इसी मान्यता के चलते हुए भक्त कोसों दूरी से अपने घर से कपड़े का घोड़ा लेकर आते हैं और इसे मंदिर में चढ़ाते है। बाबा को नीले घोड़े का अश्वार कहा जाता है।
बाबा रामदेव मंदिर की ध्वजा -
बाबा रामदेव की ध्वजा पांच रंग की होती है, इसे नेजा कहा जाता है। नेजा में सफेद, हरा, पीला, नीला (आसमानी) और हरा रंग होता है। बाबा रामदेव का प्रतीक चिह्न 'पगल्या' होता है। पगल्या का अर्थ दो पैर के निशान से हैं। ऐसे में कई बार बाबा रामदेव के मंदिर में सफेद ध्वजा जिस पर लाल रंग के कपड़े से पगल्या बना हुआ होता है, उसे भी चढ़ाया जाता है।
ध्वजा के अतिरिक्त केसरिया रंग की पट्टियां भी बाबा रामदेव के मंदिर में चढ़ाए जाते हैं। यह ध्वजा भी अधिकांश भक्त जो बाबा रामदेव के मंदिर रामदेवरा जाते हैं, वो अपने घर से ही लेकर जाते हैं। इसी से पहचान होती है कि यह बाबा के जातरु है, जो बाबा के दरबार में हाजिरी लगाने के लिए जा रहे हैं।
आजकल दूर-दूर से बाबा के मेले में दर्शन करने के लिए जाने वाले जातरु अपने साथ बड़े-बड़े ध्वज लेकर जाते हैं। कई बार ये ध्वज 51 से 151 फीट या हाथ लंबे होते हैं, जिन्हें कई लोगों द्वारा डंडे के सहारे से पकड़ा हुआ होता है। इसके अतिरिक्त आजकल कई लोग बाबा के दरबार में हाजिरी लगाने के कोसों से घुटनों के बल भी जाते हैं।
भाद्रपद महीने में रामदेवरा जाने वाले सभी राजमार्गों पर पैदल बाबा के दरबार में दर्शन के लिए जाने वाले जातरुओं के जत्थे और उनके हाथो में ध्वजा और बाबा के जयकारें मन मोह लेते हैं। साथ ही इन रास्तो पर जातरुओं का स्वागत करने वालों का भी तांता लगा रहता है। वो भी इसी ध्वजा से इनकी पहचान करते हैं।
बाबा रामदेव मंदिर रामदेवरा में अन्य मंदिर -
बाबा रामदेव की समाधि स्थल रामदेवरा में बाबा रामदेव के मंदिर के पास विशाल परिसर में अन्य समाधियाँ और मंदिर भी है। मंदिर परिसर में उनकी शिष्या डाली बाई की समाधि है जहां उनका मंदिर भी बना हुआ है। उनकी समाधि के पास ही डाली बाई का पत्थर का बना हुआ कंगन है। मान्यता के अनुसार इस कंगन में से निकलने पर शरीर के कष्ट दूर होते हैं।
कहा जाता है कि बाबा रामदेव जी के पिता अजमल जी के कोई सन्तान नहीं थी। उन्होंने सन्तान प्राप्ति के लिए द्वारकानाथ की यात्रा की तब द्वारकाधीश ने उन्हें उनके घर अवतार लेने का वचन दिया। इसी के कारण बाबा रामदेव को अजमल घर अवतार और द्वारकाधीश भी कहा जाता है। यहां उनकी द्वारकाधीश के रुप में भी पूजा होती है।
इसके अतिरिक्त मंदिर परिसर में बाबा रामदेव का पालना भी है। बाबा रामदेव को 'बांजियों को पूत देवे' भी कहा जाता है। ऐसे में मान्यता है कि जिनके औलाद नहीं होती वो पति पत्नी जोड़े में बाबा के पालने को झुला देते हैं तो बाबा खुश होकर उन्हें आशीर्वाद में सन्तान सुख देते हैं। बाबा को अंधों को आंखे देने वाला और कुष्ट रोग को हरने वाला भी कहा जाता है।
यह भी अवश्य पढ़े - रामदेवरा : बाबा रामदेव की नगरी।
बाबा रामदेव मंदिर में भजन -
मंदिर परिसर में ही बाबा रामदेव के भजन गाने वाली मंडली विराजमान रहती है। यह मंडली बाबा का जागरण देती है। इस जागरण समेत भजन के लिए विशेष शब्द प्रयोग में लिए जाते हैं।
- जम्मा - बाबा रामदेव की पूजा अर्चना मे दिए जाने वाले जागरण को जम्मा कहा जाता है।
- वाणी - बाबा रामदेव के जम्मा के गाए जाने वाले भजनों को वाणी कहा जाता है। यह बाबा रामदेव के जीवन और उनके द्वारा दिए गए परचा से संबंधित होती है।
- रिखिया - बाबा रामदेव का जम्मा मेघवाल जाति के लोगों द्वारा वाणी (भजन) गाकर दिया जाता है। इस गायक मंडली को रिखिया कहा जाता है।
- तेरहताली - बाबा रामदेव के मंदिर परिसर में कामड़िया जाति की महिलाओ द्वारा बैठकर नृत्य किया जाता है, जिसे तेरहताली नृत्य कहा जाता है। इस नृत्य की शुरुआत पादरला, पाली जिले से हुई।
- बाबा री बीज - बाबा रामदेव का जन्म भाद्रपद शुक्ल दशमी के दिन अजमल जी के घर हुआ। इनके गुरु बालीनाथ जी का मेला जोधपुर में इस दिन भरता है। इनके गुरु बाबा रामदेव के भांजे की हरकत से गुस्सा होकर जोधपुर आ गए। जोधपुर में ही भाद्रपद द्वितीया को मसूरिया पहाड़ी (बालीनाथ जी की समाधि) पर मेला भरता है। इस दूज को बाबा की बीज कहा जाता है।
राजस्थान के सभी लोकदेवता में सबसे लंबे गाने बाबा रामदेव के है। इनके श्रद्धालुओं द्वारा घरों में की जाने वाली भजन संध्या में भी यह वाणी बोली जाती है।
बाबा रामदेव मंदिर के खुलने का समय -
लोग अक्सर पूछते रहते हैं कि बाबा रामदेव जी का मंदिर जो रामदेवरा में स्थित है, कितने बजे खुलता है? यहां आपको बता देते हैं कि रामदेवरा में स्थित रामदेव जी का मंदिर सूर्योदय से एक घन्टा पूर्व खुल जाता है। भाद्रपद में जब मेला चलता है, उस समय लगभग 4 बजे मन्दिर खुल जाता है और सवेरे 5 बजे आरती होती है, शाम को 10 बजे तक दर्शन के लिए खुला रहता है।
अन्य प्रश्न
प्रश्न - बाबा रामदेव मंदिर रामदेवरा का निर्माण किसने कराया?
उत्तर - बाबा रामदेव मंदिर रामदेवरा का निर्माण बीकानेर के महाराजा श्री गंगा सिंह ने 1939 ईस्वी में कराया।
प्रश्न - बाबा रामदेव के मंदिर को क्या कहा जाता है?
उत्तर - बाबा रामदेव के मंदिर को देवरा कहा जाता है।
प्रश्न - बाबा रामदेव जी के मंदिर में प्रतीक क्या होता है?
उत्तर - बाबा रामदेव जी के मंदिर अथवा देवरा में प्रतीक के तौर पर पगल्या होता है।
प्रश्न - बाबा रामदेव जी के मंदिर में ध्वज में कितने रंग होते हैं?
उत्तर - बाबा रामदेव जी के मंदिर के ध्वज में 5 रंग होते हैं।
प्रश्न - बाबा रामदेव जी का मंदिर कहाँ हैं?
उत्तर - बाबा रामदेव जी का मंदिर राजस्थान राज्य के जैसलमेर जिले में रामदेवरा नामक स्थान पर है।
प्रश्न - बाबा रामदेव मंदिर राजस्थान में कहाँ है?
उत्तर - बाबा रामदेव मंदिर राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित है। यह रामदेवरा नामक जगह पर हैं, जो पोखरण से 12 किलोमीटर दूर स्थित है।
प्रश्न - बाबा रामदेव मंदिर रुणिचा किस जिले में है?
उत्तर - बाबा रामदेव मंदिर रुणिचा जिसे रामदेवरा के नाम से जाना जाता है, जो जैसलमेर, राजस्थान में हैं।
0 टिप्पणियाँ