फसल बीमा : प्रीमियम और क्षतिपूर्ति राशि निर्धारण। Fasal Bima

फसल बीमा : प्रीमियम और क्षतिपूर्ति राशि निर्धारण। Fasal Bima

बीमा एक प्रकार का आश्वासन होता है, जो अपने ग्राहक को इस बात के लिए आश्वासत करता हैं कि अगर उसे किसी प्रकार का वित्तीय नुकसान एक निश्चित समय सीमा में हुआ तो बीमा संगठन उसके नुकसान का तय शर्तों के अनुसार भरपाई करेगा। बीमा संगठन और बीमित के मध्य बीमा लेते समय एक लिखित करार होता है, उसी में सभी शर्तें लिखित होती है।

फसल बीमा : प्रीमियम और क्षतिपूर्ति राशि निर्धारण। Fasal Bima

बीमा, बीमित व्यक्ति कि कई प्रकार की जोखिम का बीमा करता हैं। बीमा करते समय बीमित और बीमाकर्ता द्वारा यह आवश्यक रूप से ध्यान में रखा जाता है कि बीमित की जोखिम मौद्रिक मूल्य में मापन योग्य है। बीमा उन सभी वस्तुओं और घटनाओं के लिए सम्भव होता है, जिनकी प्रकृत्ति अनिश्चित होती है, निश्चित घटनाएं बीमा योग्य नहीं होती है। किसानो द्वारा उगाई जाने वाली फसल एक अनिश्चित क्रिया है, इसकी उपज कई कारकों पर निर्भर करती है, ऐसे में फसल बीमा योग्य हैं। 

फसल बीमा - 


भारतीय कृषि को मानसून का जुआ कहा जाता है। भारतीय कृषि में कृषकों के लिए उपज की अनिश्चितता बनी रहती है। भारतीय कृषक अनावृष्टि के साथ ही अतिवृष्टि के समस्या का भी सामना करते हैं। खासतौर से खरीफ की फसल के समय भारत में कई बार गॉव के गॉव जलमग्न होने के समाचार प्राप्त होते रहते हैं। ऐसे में किसानो की जोखिम को देखते हुए भारत सरकार ने फसलों को बीमा से सुरक्षित करने के लिए बीमा कंपनी की शुरुआत की। 

फसल बीमा, समान्य बीमा का एक प्रकार हैं। इस प्रकार के बीमा के माध्यम से किसान अपनी खेती (फसल) को होने वाले नुकसान से खुद की फसल को सुरक्षित कर सकता है। इसके लिए किसान को फसल की बुआई के समय एक निश्चित धनराशि, जिसे प्रीमियम कहा जाता है, बीमाकर्ता (बीमाकार) को चुकाकर बीमा लिया जाता है। प्रीमियम की राशि जोत के क्षेत्रफल, फसल के प्रकार, सिंचाई की प्रकृति, क्षेत्र का पिछले वर्षों का औसत उत्पादन आदि कारकों पर निर्भर करती है। 

फसल बीमा किसानो की जोखिम को कम करने का एक साधन है। कृषक फसल की बुआई के समय किसी भी बैंक या संस्थान से ऋण ले चुके किसान और अन्य किसान बीमा ले सकते हैं। ऋणी किसान के लिए कुल बीमा राशि (Sum Assured Amount) ऋण राशि ऋण राशि के 100% होना आवश्यक है, जिसे बढ़ाकर अधिकतम ऋण राशि के 150% किया जा सकता है। 

प्रचलित फसल बीमा के महत्वपूर्ण बिंदू - 


भारत में प्रचलित राष्ट्रीय फसल बीमा कार्यक्रम (एनसीआईपी) के तीन महत्वपूर्ण घटक हैं। राष्ट्रीय फ़सल बीमा कार्यक्रम के ये घटक - संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (एमएनएआईएस), संशोधित मौसम आधारित फ़सल बीमा योजना (डब्ल्यूबीसीआईएस) एवं नारियल और ताड़ बीमा योजना (सीपीआईएल)। इन सभी के कुछ महत्वपूर्ण घटक हैं। इन्हें समझना अति आवश्यक है। इन्हें समझे बिना फसल बीमा को सही अर्थों में नहीं समझा जा सकता है, तो आइये एक नजर में निम्न बिंदुओं को देखे - 
  • सरकारी बीमा कंपनी के साथ ही निजी क्षेत्र की फ़सल बीमा कंपनियों को 'कार्यान्वयन एजेंसियों' के रूप में इस क्षेत्र में कार्य करने की अनुमति प्रदान की गई है। राज्य सरकारों की अनुमति से प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना भी निजी कंपनी को इस प्रकार का कार्य प्रभार दिया जा सकता हैं। 
  • बीमा कंपनियों द्वारा प्रीमियम की दरें बीमांकिक आधार (उपज, जोत की इंडेक्स) पर तय की जाती हैं। प्रीमियम की बीमांकिक दरें बीमा कंपनियों को वैश्विक पुनर्बीमा बाजार में जोखिम स्थानांतरित करने और सरकारों को उनकी देनदारियों का बजट बनाने में मदद करती हैं। 
  • सरकार, किसानों द्वारा देय प्रीमियम राशि को किफायती बनाने के लिए बीमा राशि प्रीमियम में पर्याप्त सब्सिडी दी जाती है, जिससे किसानो पर प्रीमियम राशि का भार कम हो सके। 
  • खेती की लागत में व्यापक रूप से (पंचायत, ब्लॉक या तालुका की समानता की आधारित समानता आधारित औसत उपज से) सुनिश्चित करना। 
  • सभी क्षतिपूर्ति दावों का भुगतान बीमा कंपनियों द्वारा किया जाएगा क्योंकि राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा दावों को साझा नहीं किया जाएगा।
यहां आपको इस बात पर जोर देकर समझना होगा। कि केंद्र और राज्यों की सरकारें बीमा लेते वक़्त किसानों पर अधिक भार ना पड़े, इसे ध्यान में रखते हुए प्रीमियम राशि पर सब्सिडी देती है, किंतु किसानो को हुए नुकसान की क्षतिपूर्ति कंपनी द्वारा की जाती है। सरकार एक बार फायदा देती है, बार-बार नहींl। किसानो द्वारा किए जाने वाले क्षतिपूर्ति के दावे का भुगतान फ़सल बीमा कंपनियों द्वारा किया जाता है, उसने सरकार किसी प्रकार का वित्तीय सहयोग नहीं करती है। 

यह समान्य बीमा कंपनी के द्वारा किए जाने वाले बीमा के साथ ही 'प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना' मे भी लागू होता है। 

उक्त लेख में आगे की चर्चा दो प्रकार के बीमा संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (एमएनएआईएस), संशोधित मौसम आधारित फ़सल बीमा योजना (डब्ल्यूबीसीआईएस) को ध्यान में रखते हुए की जाएगी। 

एमएनएआईएस और डब्ल्यूबीसीआईएस में अन्तर - 


संपूर्ण भारत में फसल बीमा में यह दोनों महत्वपूर्ण बीमा स्कीम है। दोनों के अन्तर को समझ लेने से आप दोनों स्कीम को कुछ हद तक समझ सकते हैं। आइए दोनों के प्रमुख अन्तर समझते हैं - 

आधार  एमएनएआईएस डब्ल्यूबीसीआईएस
योग्य किसान  ऋणी और गैर-ऋणी दोनों  ऋणी और गैर-ऋणी दोनों  
कुल बीमा राशि  लागत के बराबर  लागत के बराबर 
प्रीमियम राशि  जिलेवार जोखिम के आधार पर  खरीफ 10%, रबी 8% बागवानी और वाणिज्यिक फसलों के लिए 12% (लागत के आधार पर) 
फसले  जिनके आंकड़े उपलब्ध हैं  जिनके आंकड़े उपलब्ध नहीं, वो भी। 
क्षतिपूर्ति राशि  80% और 90% लागत का  लागत के बराबर। 

यहां इस बात पर ध्यान देना आवश्यक है कि एमएनएआईएस उपज नुकसान के लिए बीमा देती हैं, वही डब्ल्यूबीसीआईएस प्रतिकूल मौसम से होने वाले नुकसान को भी कवर प्रदान करती है। 

कितनी होती है प्रीमियम की राशि - 


जैसा कि आप समझ ही चुके है कि कृषक और बीमा कंपनी के मध्य बीमा का करार प्रीमियम राशि के भुगतान के उपरांत होता है। ऐसे में हर कोई जानना चाहता है कि बीमा कंपनियां कितना प्रीमियम किसानो से लेती है। तो आप बीमा स्कीम के अनुसार इसे जान लीजिए। 

एमएनएआईएस बीमा स्कीम के अंतर्गत प्रीमियम की दरें प्रत्येक फसल के लिए अलग-अलग होती है, यह बुआई पूर्व राज्य सरकारों द्वारा पूर्व आंकड़ों की उपलब्धता के आधार पर तय की जाती है। यह जिलेवार फसल की जोखिम को ध्यान में रखते हुए तय की जाती है। 

डब्ल्यूबीसीआईएस बीमा स्कीम में बीमा की प्रीमियम दरें खरीफ के लिए अधिकतम कुल लागत की 10% और रबी सीज़न के लिए 8% होती हैं। वही वाणिज्यिक/बागवानी फसलों के लिए 12% तक हो सकती हैं। राज्य और केन्द्र द्वारा प्रीमियम राशि में सब्सिडी दी जाती है, जो 25% से 50% तक उपलब्ध है। 

प्रीमियम की राशि तय करने का विषय राज्य सरकारों और बीमा कंपनियि का है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में यह राज्य सरकारों द्वारा तय किया जाता है। 

फसल बीमा किन फसलों का लिया जा सकता है? 


भारत एक कृषि प्रधान देश होने के नाते विभिन्न प्रकार के फसल बीमा सरकारी सहायता से प्रदान कर रहा है। भारत में उगाई जाने वाली लगभग सभी फसलों को किसान बीमा द्वारा सुरक्षित कर सकते हैं। आप निम्नलिखित फसलों का बीमा ले सकते हैं - 
  • खाद्य फसले, 
  • तिलहन और तेल की फसले, 
  • वार्षिक व्यापारिक फसले, 
  • बागवानी। 
यहां इस बात पर अवश्य ध्यान दिया जाना चाहिए कि फ़सल बीमा देने वाली कंपनियां केवल उन्हीं फसलों का बीमा कर सकती है, जिन फसलों का उस क्षेत्र विशेष का डाटा (बुआई, उपज और किस्म) का आंकड़ा उपलब्ध हो। साथ ही उस वर्ष में फ़सल कटाई के आंकड़े एकत्रित करने की योजना कंपनी द्वारा बनाई गई हो। 

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना अंतर्गत आने वाली फसलों में जिस क्षेत्र के लिए राज्य सरकार द्वारा जो फसले बीमा के लिए सुनिश्चित की है उसका एक नोटिफिकेशन राज्य सरकार द्वारा फसल बुवाई से पहले जारी किया जाता है। इसमे उन फ़सलो के नाम, प्रीमियम और बीमा कराने के लिए योग्यता की शर्तें इत्यादि इसमे बताई जाती है। 

यहां ध्यान दीजिये प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की शर्ते, प्रीमियम और बीमा कराने की योग्यता इत्यादि राज्य सरकारों द्वारा तय की जाती है। बीमा कराने की तिथि और अन्य सभी सूचनाओं का नोटिफिकेशन राज्य सरकारों द्वारा जारी किया जाता है। 

बीमा कंपनियां कितनी क्षतिपूर्ति देती है? 


सबसे बड़ा सवाल बीमा लेने वाले किसानो द्वारा फ़सल बीमा के सम्बन्ध में जो किया जाता है, वह है - बीमा कंपनियां कितनी क्षतिपूर्ति राशि देती हैं? कई बार लोग बीमा कंपनियों द्वारा दी जाने वाली क्षतिपूर्ति राशि पर भी सवाल खड़े करते हैं। कई बार सुनने में आता है कि किसानो को बीमा कंपनी द्वारा उचित क्षतिपूर्ति राशि प्रदान नहीं की गई। तो ऐसे में आप जान लीजिए कितनी क्षतिपूर्ति राशि दी जाती है। 

एमएनएआईएस बीमा स्कीम के अंतर्गत भारतीय बीमा कंपनियां सामन्यतः कुल लागत का 80% और 90% (प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजना के अंर्तगत) कुल बीमा राशि पर दी जाती है। यह प्रतिशत नुकसान की राशि से तय किया जाता है। 

वहीं डब्ल्यूबीसीआईएस स्कीम के तहत कुल बीमा राशि एमएनएआईएस की भांति पूर्व-निर्धारित होती है। यह खेती की लागत के आधार पर पर आधारित है, जो कुल फसल की लागत के बराबर होती हैं। यह राज्य सरकार द्वारा क्षेत्र वार पूर्व आंकड़ों के आधार पर बुआई के समय तय की जाती है। 

आप यह पहले ही समझ लीजिए कि कभी भी फसल बीमा कंपनी पूरा 100% (कुल बीमा राशि) के समान नहीं होती है। यह अधिकतम कुल बीमा राशि के 90% ही हो सकती है, सम्पूर्ण फ़सल क्षति होने पर। साथ ही कुल बीमा राशि प्रीमियम के अनुसार तय होती है। ऐसे में आप प्रीमीयम राशि, कुल बीमा राशि और फ़सल को हुई क्षति के अनुरूप ही क्षतिपूर्ति राशि प्राप्त कर सकते हैं। 

कैसे निश्चित की जाती है, फसल बीमा क्षतिपूर्ति राशि? 


फसल बीमा कंपनियां जब बहुत कम क्षतिपूर्ति राशि देती है, तब अधिकतर लोग क्षतिपूर्ति राशि पर सवाल करते हैं। कई लोग बीमा कंपनियों की कार्यशैली पर भी सवालिया निशान लगा देते हैं। लोग इसे मुनाफे का व्यापार घोषित कर देने का प्रयास शुरु कर देते हैं, ऐसे में आपको क्षतिपूर्ति की राशि की गणना को ध्यान में रखते हुए बात करनी चाहिए। 

बीमा क्षतिपूर्ति निर्धारण प्रक्रिया यह विशेष क्षेत्र-उपज सूचकांक या गारंटी के सिद्धांतों पर काम करती है। इसके लिए बीमा कंपनियां प्रत्येक समरूप क्षेत्र में प्रत्येक फसल की उपज (पिछले पांच वर्ष का औसत) की राशि के समान कुल बीमा राशि की गारंटी दी जाती है। विशेष क्षेत्र से तात्पर्य तालुका, ब्लॉक या ग्राम पंचायत आदि से है, जो उपज समरूपता के आधार पर निश्चित की जाती है। 

सामन्यतः बीमा कंपनियों द्वारा पिछले पांच वर्षों की वास्तविक उपज के औसत को लेती है लेकिन धान और गेहूं के मामले में इसे तीन वर्ष तक किया जा सकता है। यदि वर्तमान सीज़न की वास्तविक उपज सीमा (पिछले पांच या तीन बर्ष का औसत, जो भी लागू होता है) से कम दर्ज की गई है, तो बीमित कम उपज की राशि के लिए दावा कर सकता है, जो बीमाकर्ता के लिए भुगतान योग्य हो जाता है। ऐसे दावों के लिए उपयोग किया जाने वाला उपज डेटा फसल काटने के प्रयोगों के माध्यम से सामान्य फसल अनुमान सर्वेक्षण (जीसीईएस) के तहत उत्पन्न होता है। 

कृषकों द्वारा किए गए दावों का निपटारा बीमा कंपनियों द्वारा स्वचालित प्रक्रिया से निपटाया जाता है। स्वचालित प्रक्रिया द्वारा तय की गई राशि बीमा कंपनियो द्वारा सीधे कृषक के खाते में जमा करा दी जाती है।

फसल बीमा लेने के लाभ - 

कई किसान अक्सर प्रश्न करते हैं कि उन्हें फसल बीमा लेने से क्या लाभ होगा? कुछ किसान इसे घाटे का सौदा समझते हैं, वो मानते हैं कि बीमा लेने से प्रीमियम की दर उल्टा लागत बढ़ा देती है, ऐसे में इसके लाभ को समझना जरूरी है। एक नजर में देखते हैं, फसल बीमा के लाभ - 
  1. विपरीत परिस्थितियों में फसल उपज का नुकसान होने पर बीमा कंपनी द्वारा क्षतिपूर्ति का भुगतान। 
  2. बीमा कंपनियां समय-समय पर बेहतर उपज के लिए निर्देश और सलाह देती है, जिससे उपज अधिक होती है। 
  3. चिन्तामुक्त होना, क्योंकि नुकसान की दशा में बीमा कंपनियां भुगतान करती है। 
  4. विपरीत परिस्थितियों में साहूकारों के चंगुल में फंसने का डर समाप्त। 
  5. प्रीमियम राशि में सरकार द्वारा सब्सिडी देना। 
भारत में कृषि मानसून का जुआ है, ऐसे में बीमा काफी हद तक किसानो की जोखिम को कम करने में मदद करता हैं। किसान अपनी जोखिम को कुछ प्रीमियम राशि चुकाकर बीमा कंपनियों को हस्तांतरित कर सकते हैं। 

अन्य प्रश्न - 


प्रश्न - फसल बीमा योजना कौनसे जोखिम शामिल करती हैं? 

उत्तर - फसल बीमा योजना निम्नलिखित जोखिम शामिल करती है - 
  • प्राकृतिक आग, बिजली, तूफान, चक्रवात, ओलावृष्टि, बाढ़, भूस्खलन, बादल फटना और बवंडर आदि से उत्पन्न हुए नुकसान। 
  • सूखा। 
  • कीट और फसलों को होने वाले रोगों के नुकसान। 
  • उपज सूचकांक से कम उत्पादन। 
  • मौसम सूचकांक। 

प्रश्न - प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए पात्र किसान कौन होते हैं? 

उत्तर - राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित क्षेत्रों में अधिसूचित फसलें उगाने वाले सभी किसान बीमा का लाभ उठाने के पात्र हैं। ऋण लेने वाले किसानों की फसलों का बीमा अनिवार्य रूप से किया जाता है, जबकि गैर-ऋणी किसान अपने विकल्प के अनुसार अपनी फसलों का बीमा करा सकते हैं।

प्रश्न - प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में कौन-कौन सी कंपनियां फसल बीमा देती है। 

उत्तर - प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में निम्नलिखित सामान्य बीमा कंपनियों को फसल बीमा प्रदान करती है - 
  1. एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी ऑफ इंडिया लिमिटेड, 
  2. आईसीआईसीआई लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड। 
  3. IFFCO TOKIO जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड। 
  4. एचडीएफसी ईआरजीओ जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड। 
  5. चोलामंडलम एमएस जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड। 
  6. टाटा-एआईजी जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड। 
  7. फ्यूचर जनरली इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड। 
  8. रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड। 
  9. बजाज एलियांज जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड। 
  10. यूनिवर्सल सोम्पो जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड। 
  11. एसबीआई जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड। 

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