इंश्योरेंस क्या होता है? Insurance Kya Hota Hai?

इंश्योरेंस क्या होता है? Insurance Kya Hota Hai?

इंश्योरेंस या बीमा से आप भलीभाँति परिचित होंगे। आजकल बीमा या इंश्योरेंस की चलन बहुत अधिक है। हर कोई इंश्योरेंस को लेकर बात करता हैं। जब भी आप कोई चीज ऑनलाइन खरीदते हैं तब आपके सामने उस वस्तु का इंश्योरेंस कराने का ऑप्शन आता है।

इंश्योरेंस क्या होता है? Insurance Kya Hota Hai?

इंश्योरेंस अथवा बीमा चलन भारत में सदियों पूर्व भी होने के स्पष्ट प्रमाण है। इंश्यारेंस या बीमा वर्तमान में औद्योगिक रुप धारण किए हुए हैं। लेकिन कहा जाता है पहले यह सहकार की तरह हुआ करता था, जो समय की मांग को ध्यान में रखते हुए आधुनिक रुप में तेजी से विस्तार करने लगा है। 

इंश्योरेंस का अर्थ क्या होता है? What is meaning of Insurance? 


इंश्योरेंस को हिन्दी में बीमा कहा जाता है। बीमा एक वित्तीय सुरक्षा कवच है, जो व्यक्ति विशेष को भविष्य में होने वाले नुकसान या क्षति के विरुद्ध भरपाई की गारंटी देता है। यह बीमित व्यक्ति को भविष्य में होने वाले नुकसान की क्षतिपूर्ति की गारंटी अथवा आश्वासन देता है। यह बीमित को अज्ञात चिंता से मुक्त करने का एक उपकरण हैं। बीमा पूरी तरह से एक गारंटी नहीं है बल्कि एक आश्वासन है। यह आश्वासन वित्तीय क्षति की भरपाई का आश्वासन है। 

बीमा दो व्यक्ति अथवा संगठनों (जिन्हें पक्षकार कहकर संबोधित किया जाता है) के मध्य एक करार हैं। एक पक्षकार जो आश्वासन देता है, बीमाकर्ता या बीमाकार कहलाता है। जो पक्ष बीमाकर्ता से वित्तीय क्षतिपूर्ति का आश्वासन प्राप्त करता हैं, उसे बीमित कहा जाता है। बीमित, बीमाकर्ता को निश्चित प्रीमियम राशि का भुगतान कर एक निश्चित सीमा तक निर्देशित समय के लिए क्षतिपूर्ति का आश्वासन प्राप्त करता हैं। बीमित और बीमाकर्ता के मध्य का करार कानूनी दृष्टि से वैध होता है। तथा बीमित को नुकसान अथवा क्षति होने की दशा में बीमाकर्ता द्वारा क्षतिपूर्ति नहीं किए जाने पर कानूनी कार्रवाई भी कर सकता है। 

भारत में होने वाले बीमा व्यवसाय को भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) द्वारा नियमित किया जाता है। यह बीमा व्यवसाय की नियामक संस्था है, जो बीमा से सम्बन्धित सभी प्रकार के निर्देश देने के साथ इसे सुगम बनाने के लिए अपनी अहम भूमिका निभाता है। 

बीमा के पक्षकार - 


पहले परिभाषा में आपको बताता गया कि बीमा के दो पक्षकार होते हैं। आधुनिक व्यावसायिक मॉडल के अनुरूप देखा जाए तो इसके कुछ अन्य पक्षकार भी होते हैं। ऐसे में बीमा के निम्न पक्षकार हो सकते हैं। 
  • बीमाकार या बीमाकर्ता (Insurer) - जो बीमा कंपनी एक निश्चित प्रीमियम राशि को चुकाकर के बदले में बीमित को क्षतिपूर्ति के लिए आश्वासन देता है, उसे बिमाकार या बीमाकर्ता कहा जाता है। 
  • बीमित (Indured) - जो व्यक्ति बीमाकर्ता को एक निश्चित प्रीमियम राशि चुकाकर बदले में क्षतिपूर्ति का आश्वासन प्राप्त करता हैं, उसे बीमित कहा जाता है। 
  • एजेंट (Agent) - बीमा कर्ता द्वारा बेची जाने वाली बीमा पॉलिसी (सेवा) एजेंट के माध्यम से बीमित को बेची जाती हैं। एजेंट ही वह व्यक्ति होता है, जो बीमित को पॉलिसी के संबंध में सम्पूर्ण जानकारी प्रदान कर उसे बीमा लेने के लिए राजी करता हैं। एजेंट अपने कार्य के बदले बीमाकर्ता से कमिशन प्राप्त करता हैं। यह अपने कार्य के अनुसार कमिशन प्राप्त करता हैं। 
  • नियामक प्राधिकरण (Regulatory Authority) - भारत मे बीमा नियामक प्राधिकरण बना हुआ है, जिसे आईआरडीएआई कहा जाता है। यह बीमा कंपनियों के दिशा-निर्देश तय करते हैं। 
उपर्युक्त सभी बीमा के पक्षकार है। हालांकि बीमाकर्ता और बीमित महत्वपूर्ण पक्षकार है। आजकल ऑनलाइन के दौर में एजेंट अपना स्थान खो रहा है, लेकिन नियामक प्राधिकरण का स्थान महत्वपूर्ण होता जा रहा है। 

बीमा के सिद्धांत (Principle of Insurance) - 

बीमा के सात सिद्धांत है, इन्हें बीमा लेते समय से लेकर क्षतिपूर्ति का दावा करते समय तक बरकरार रखना अनिवार्य होता है। अगर इन्हें बरकरार रखने में किसी प्रकार की कोई कमी की जाती है तो बीमा का करार समाप्त हो जाता है। ऐसे में इन सिद्धांतो को जानना अति आवश्यक है तो आइये जानते हैं, बीमा के ऐसे अमूल्य सिद्धांत। 
  • परम सद्भावना का सिद्धांत (Utmost good Faith) - बीमित द्वारा अपनी जोखिम से संबंधित सभी जानकारी बीमाकर्ता को सच्चाई के साथ बतानी होती है।अगर बीमित कोई जानकारी अथवा तथ्य बीमाकर्ता से छुपाता है, तो बीमा करार रद्द भी हो सकता है। दूसरी ओर, बीमाकर्ता को भी बीमा पॉलिसी की सभी विशेषताओं का खुलासा करना आवश्यक होता है। 
  • बीमायोग्य हित का सिद्धांत (Insurable Interest) - बीमा के इस सिद्धांत के अनुसार, जिस व्यक्ति अथवा वस्तु का बीमा बीमाकर्ता द्वारा किया गया है, उसमें बीमित का बीमा योग्य हित होना चाहिए। किसी जिवित व्यक्ति की ही पॉलिसी खरीदी जा सकती है, मृत की नहीं। ऐसे ही समान्य बीमा में बीमा राशि बाजर मूल्य से अधिक नहीं हो सकती है। 
  • निकतम कारण का सिद्धांत (Proximate cause) - जीवन बीमा को छोड़कर अन्य बीमा में क्षति के निकतम कारण को देखा जाता है। उचित कारण को जानने के बाद ही क्षतिपूर्ति की जाती है। बीमित स्वयं द्वारा किए गए नुकसान बीमा पॉलिसी को रद्द कर देते हैं। 
  • प्रतिस्थापन का सिद्धांत (Subrogation) - जब बीमित को किसी तीसरे व्यक्ति या पक्ष द्वारा नुकसान पहुंचाया जाता है तो बीमा कंपनी बीमित का स्थान ले लेती है। बीमा कंपनी बीमित के नुकसान की क्षतिपूर्ति स्वयँ करती है, किंतु तीसरे पक्ष द्वारा किए नुकसान की वसूली का अधिकार बीमित से ले लेती है। स्थान में बदलाव के कारण ही इसे प्रतिस्थापन कहा जाता है। 
  • क्षतिपूर्ति का सिद्धांत (Indemnity) बीमा, बीमित व्यक्ति के केवल उस नुकसान के लिए कवर प्रदान करेगा जो वास्तव में हुआ है। बीमाकर्ता, बीमित के नुकसान का गहन निरीक्षण और मौद्रिक मूल्य गणना करेगा। इस सिद्धांत का मुख्य उद्देश्य बीमित को वित्तीय रूप से उसी स्थिति में लाना है, जिस स्थिति में वह नुकसान होने से पहले था। हालाँकि, यह सिद्धांत जीवन बीमा और गंभीर स्वास्थ्य पॉलिसियों  की दशा में लागू नहीं होता है। 
  • योगदान का सिद्धांत (Contribution) - इस सिद्धांत के अनुसार, यदि बीमित ने जीवन बीमा को छोड़कर अन्य बीमा में एक से अधिक बीमा कंपनियों से पॉलिसी ले रखी है, तो सभी बीमा कंपनियां (जिनसे पॉलिसी ली हुई है) अपने-अपने कवरेज के अनुपात में नुकसान को साझा करेंगी। यदि किसी एक बीमा कंपनी ने बीमित को नुकसान का पूर्ण भुगतान कर दिया है, तो उसे दूसरी बीमा कंपनियों से आनुपातिक राशि प्राप्त करने का अधिकार है।
  • हानि न्यूनीकरण का सिद्धांत (Loss Minimisation) - बीमित को नुकसान होने पर उस नुकसान को सीमित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए। बीमा खरीदने के बाद भी नुकसान को रोकने के लिए आपको सभी आवश्यक सावधानियां बरतनी चाहिए। ऐसा नहीं करने पर बीमा का दावा रद्द किया जा सकता है।
बीमा के सिद्धांत बीमित और बीमाकर्ता के हितों की रक्षा करने के साथ ही बीमा व्यवसाय को पर देशी बनाते हैं। बीमा के सिद्धांतों के चलते ही बीमा ने वर्तमान स्वरुप धारण किया है। 

बीमा के प्रकार (Types of Insurance) - 


बीमा के कई प्रकार है। बीमा के सभी प्रकार पर प्रकाश नहीं डाला जा सकता है, इस छोटे से लेख में बीमा के कुछ महत्वपूर्ण प्रकार पर संक्षिप्त प्रकाश डाल रहे हैं। दो आपको सबसे पहले बता दे कि प्रकृति के आधार पर बीमा को दो बड़े भागों में बांटा जा सकता है, जो निम्न है 
  • जीवन बीमा, 
  • समान्य बीमा। 
जीवन बीमा और समान्य बीमा को अलग इसलिए किया जा रहा है क्योंकि जीवन बीमा जिवित व्यक्तियों से सम्बन्धित होने के साथ इस पर बीमा के कई सिद्धांत लागू नहीं होते। ऐसे ही कुछ सिद्धांत जो जीवन बीमा पर लागू होते हैं वो समान्य बीमा पर लागू नहीं होते हैं। तो आइये देखते हैं, इन्हें - 

जीवन बीमा (Life Insurance) - 


जीवन बीमा, जिवित व्यक्ति का बीमा है। यह बीमाकृत व्यक्ति की मृत्यु या अपंगता की दशा में होने वाली आर्थिक क्षति के विरुद्ध एक सुरक्षा कवच है। बीमा कम्पनी द्वारा एक निश्चित अवधि को पूरा कर लेने (maturity of policy) अथवा बीमाकृत व्यक्ति की इस अवधि के पूर्व मृत्यु हो जाने पर एक निश्चित धनराशि के भुगतान का वचन बीमित को देती है। इस प्रकार का बीमा बीमित द्वारा बीमा प्रदाता को प्रीमियम का भुगतान करके प्राप्त किया जाता है। 

जीवन बीमा में बीमित व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर बीमा कंपनी उसके आश्रित व्यक्ति को दावा राशि का भुगतान करती है। 

समान्य बीमा (General Insurance) - 


जीवन बीमा को छोड़कर अन्य महत्वपूर्ण वस्तुओ और घटनाओं का बीमा समान्य बीमा कहलाता है। सामान्य बीमा, बीमित और बीमाकर्ता के मध्य एक अनुबंध है जिसमें बीमा कंपनी बीमित को वादे के अनुसार विशिष्ट क्षति के उपरांत राशि प्रदान करती है। इसमें व्यक्तिगत बीमा जैसे दुर्घटना, देयता बीमा, जिसमें सभी कानूनी दायित्व शामिल हैं, संपत्ति बीमा जो चोरी या आग के नुकसान की सुरक्षा प्रदान की जाती है, और स्वास्थ्य बीमा शामिल है। इसके कुछ महत्वपूर्ण प्रकार निम्नलिखित है - 

वाहन/गाड़ी बीमा - 


वाहन बीमा में थर्ड पार्टी बीमा अनिवार्य है। हालांकि, मालिक और गाड़ी की की सुरक्षा के लिए भी कवर लिया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त वाहन को प्राकृतिक आपदाओं और मानव निर्मित जोखिमों से भी बीमा कवर दिया जाता हैं। इस बीमा में तीन अलग-अलग श्रेणियां शामिल हैं और वे हैं - 
  • दोपहिया वाहन बीमा
  • वाणिज्यिक वाहन के लिए बीमा
  • गाड़ी बीमा।

गृह बीमा (Home Insurance) - 


घर व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकताओं मे से एक हैं। यह किसी व्यक्ति के जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति होती है, इसे प्राकृतिक और मानव निर्मित जोखिमों से बचाने के लिए इस प्रकार के बीमा की शुरुआत की गई। यह घर में होने वाली चोरी, प्राकृतिक आपदाओं, आग, आतंकवाद आदि से सुरक्षा प्रदान करता है। गृह बीमा घर की निर्माण लागत का भी क्षतिपूर्ति करता है। हालाँकि, इस प्रकार के बीमा में प्लॉट या भूमि की लागत को कवर नहीं किया जाता है, जिस पर बीमित ने अपना घर बना रखा है। 

यात्रा बीमा (Travel Insurance) - 


आमतौर पर इस प्रकार का बीमा अंतरराष्ट्रीय यात्रा के लिए बीमित द्वारा लिया जाता है। आपातकालीन स्थिति में, इस तरह की पॉलिसी बीमित का विदेश में चिकित्सा व्यय कवर करती है। अधिकांश बीमाकर्ता अपने ग्राहको को दुनिया भर के अस्पतालों की सूची सौंपते हैं, जहाँ बीमित कैशलेस उपचार का लाभ उठा सकता है। इसके साथ ही यह निम्नलिखित जोखिम को भी कवर करती है -
  • पासपोर्ट खो जाना, 
  • सामान खो जाना, 
  • व्यक्तिगत दुर्घटना, 
  • यात्रा रद्द करना, 
  • विदेश यात्रा के दौरान जोखिम, 
  • यात्रा में देरी। 
यह सभी जोखिम इसमे कवर की जाती है। 

फसल बीमा (Crop Insurance) - 


यह किसानो द्वारा अपनी फ़सल को जोखिम से सुरक्षित किए जाने का एक बीमा हैं। इस प्रकार के बीमा में किसान को फसल को होने वाले नुकसान से बचाने के लिए बीमा बेचा जाता है। विस्तृत जानकारी के लिए - यह पढ़े

स्वास्थ्य बीमा (Health Insurance) - 


स्वास्थ्य बीमा बीमित व्यक्ति के चिकित्सकीय उपचार पर होने वाले व्यय के विरुद्ध एक वित्तीय सुरक्षा है। इस प्रकार के बीमा में वित्तीय सुरक्षा की सीमा बीमाकृत राशि तक की होती है। स्वास्थ्य बीमा व्यक्ति के स्वास्थ्य और चिकित्सकीय उपचार के दौरान होने वाले व्यय की क्षतिपूर्ति का आश्वासन देता है। यह व्यक्ति के व्यय  बीमा की अवधि के दौरान के कवर करता हैं। स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियां आयकर में छूट भी दिलाती हैं।

उपर्युक्त सभी के अतिरिक्त अग्नि, इवेंट, पेंशन, शिक्षा, शादी, दुकान और अन्य कई प्रकार के बीमा, बीमा कंपनियों द्वारा किए जाते हैं। 

बीमा के महत्व (Importance of Insurance) - 


बीमा, बीमित को होने वाले वित्तीय नुकसान के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता हैं। इसका वर्तमान में बहुत महत्व है। इसके कुछ निम्नानुसार महत्व है - 
  1. बीमा प्राकृतिक और मानव निर्मित जोखिमों के विरुद्ध एक वित्तीय सुरक्षा का कवच है। 
  2. जीवन बीमा की दशा में यह एक प्रकार का निवेश है, जो मितव्ययी आदत का निर्माता है। 
  3. बीमित के उत्तराधिकारी को वित्तीय सुरक्षा देता है। 
  4. यह आयकर में छूट प्रदान कराता है। 
  5. बीमा साख सुविधा मे वृद्धि करता हैं, जिससे ऋण लेने में आसानी होती है। 
  6. यह वैधानिक दायित्व खासतौर से तृतीय पक्ष के प्रति से मुक्ति प्रदान करता हैं। 
  7. यह मानसिक शांति के साथ ही स्वावलंबन को प्रोत्साहन देता है। 
  8. जीवन बीमा वृद्धावस्था का सहारा बनता है, आजकल इसके लिए बाजार में पेंशन बीमा भी उपलब्ध है। 
  9. यूनिट लिंक्ड प्लान निवेश को बढावा देता है। 
  10. बीमा से सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। 
  11. भविष्य की आवश्यकता को पूरा करता हैं। 
बीमा एक सुरक्षा कवच है जो जीवन बीमा की टैग लाइन 'जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी' को सार्थक सिद्ध करता हैं। इसके सामाजिक, आर्थिक और व्यावसायिक महत्व है। 

बीमा की सीमाएँ (Limitations of Insurance) - 


बीमा एक कवच है, लेकिन इसकी कुछ सीमाएँ भी है। इसकी कुछ सीमाएँ इस प्रकार से हैं -
  1. बीमा केवल वित्तीय जोखिम ही कवर करता हैं, यह सभी प्रकार की जोखिम को कवर नहीं करता हैं। 
  2. ऊंची प्रीमियम दरे लागत को बढ़ा देती है। 
  3. यह बहुत ही कम ब्याज और लाभांश देता है, जिसके कारण यह उचित निवेश नहीं है। 
  4. बीमा की संचालन लागते ऊंची और अधिक होती है। 
  5. कुछ बीमा जैसे कृषि बीमा केवल सरकारी सहयोग पर निर्भर है। 
  6. यह वित्तीय मूल्यों तक ही सीमित है। 
  7. यह अधिक जोखिम को कवर नहीं करता है। 
बीमा केवल अनिश्चितता से बचाने का प्रयास है। ऐसे के बावज़ूद भी यह कम जोखिम को ही कवर देता है।

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