उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के कारण। Jagdeep

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के कारण। Jagdeep

भारत के 14 वें उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ के खिलाफ राज्यसभा में विपक्ष द्वारा अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है। इस अविश्वास प्रस्ताव को लाने के लिए विपक्ष के 87 सदस्यों ने हस्ताक्षर किए हैं।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के कारण। Jagdeep Dhankhar

आजादी के बाद से उपराष्ट्रपति के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने का यह पहला मामला है। अब तक किसी भी उपराष्ट्रपति के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया गया है। ऐसे में यह विश्वास प्रस्ताव बड़ा रोचक हो गया है, हर तरफ विश्वास प्रस्ताव लाए जाने कि बजाय क्यों लाया गया? ऐसी चर्चा का जोर ज्यादा है।

अविश्वास प्रस्ताव क्या होता है?


अविश्वास प्रस्ताव से आशय ऐसे प्रस्ताव से है जो किसी भी सदन में विपक्ष द्वारा इस विश्वसनीयता के साथ लाया जाता है कि सरकार या सभापति के पास आवश्यक संख्या में सदस्यों का बहुमत नहीं है। अब वो इस कुर्सी को बनाए रखने के लिए आवश्यक सदस्य संख्या का विश्वास नहीं रखते हैं इसलिए उन्हें अब इस कुर्सी से हटा दिया जाना चाहिए। सामन्यतः अविश्वास प्रस्ताव एक ऐसा प्रस्ताव है जो सत्ता पर विराजमान दल या व्यक्ति को हटाने के लिए लाया जाता है। 

भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ राज्यसभा में लाया गया यह अविश्वास प्रस्ताव अपने आप में एक नई राजनीति की शुरुआत होने के साथ ही कई तरह की शंका से भरा हुआ है। इसके कई मायने है। हर कोई कारण जानने को बेताब हैं, परिणाम सबको पता है। 

भारत में कब लाया गया उपराष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव? 


भारत में उपराष्ट्रपति के खिलाफ पहला अविश्वास प्रस्ताव वर्ष, 2024 में लाया गया। कॉंग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष के 87 सदस्यों ने प्रस्ताव लाने के लिए हस्ताक्षर किए। यह आजाद भारत में पहला मामला है। हालाँकि इस प्रस्ताव पर अब तक वोटिंग नहीं हुई है। लेकिन प्रस्ताव कानून के मुताबिक है, जिसे जल्द ही स्वीकार कर लिया जाएगा। नियम के मुताबिक राज्यसभा सदस्यों की वोटिंग भी होगी। 

उपराष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाना संसदीय प्रणाली के मुताबिक ही है। इसमें कुछ नया नहीं है, लेकिन बिना ठोस कारण के प्रस्ताव लाया जाना चर्चा का कारण जरूर है। 

किस अनुच्छेद में उपराष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का उल्लेख - 


भारत के उपराष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का उल्लेख अनुच्छेद 67 (भाग 5)में उल्लिखित है। उपराष्ट्रपति के कार्यकाल में इसे हटाने के प्रकिया लिखी हुई है जो अनुच्छेद 67 का हिस्सा है। इसके मुताबिक उपराष्ट्रपति अपना कार्यभार संभालने की दिनाँक से अगले पांच वर्ष तक पद पर बने रह सकते हैं। उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति को अपने हस्ताक्षर से अपना इस्तीफा सौंप सकते हैं। इसके अतिरिक्त राज्यसभा द्वारा भी उन्हें हटाया जा सकता है। 

राज्यसभा द्वारा ऐसे संकल्प से उपराष्ट्रपति को पद से हटाया जा सकता है, जो उस समय के राज्यसभा सदस्यों द्वारा बहुमत से पारित किया गया हो। लेकिन राज्यसभा द्वारा बहुमत से पारित किये गये संकल्प पर लोकसभा की स्वीकृति आवश्यक है। लेकिन ऐसे प्रस्ताव पर तब ही विचार किया जा सकता है, जब इसकी सूचना कम से कम 14 दिन पहले दी हो। 

इसे आप इस तरीके से समझ सकते हैं कि भारत में उपराष्ट्रपति को अविश्वास प्रस्ताव से हटाने के लिए पहले राज्यसभा में प्रस्ताव लाना होता है, फिर उसे 245 सदस्यों (इसमे से 12 राष्ट्रपति द्वारा नामित) वाली राज्यसभा में उपस्थित सदस्यों द्वारा बहुमत से पारित करना होगा। इसे बहुमत से पारित करने के पश्चात्‌ वर्तमान में 543 सदस्यों वाली लोकसभा में भी बहुमत से पारित करना होता है। बिना दोनों सदनों के बहुमत के इसे पारित नहीं किया जा सकता है। 

क्या उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को हटाया जा सकता है? 


जी बिलकुल नहीं। यह बात हर कोई जानता है कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को वर्तमान सदस्य संख्या देखते हुए नहीं हटाया जा सकता है। इन्हें अपने पद से हटाने के लिए कॉंग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष को राज्यसभा में 126 (अगर सभी सदस्य उपस्थित हो तो) सदस्यों का मत चाहिए। वर्तमान में 245 सदस्यों वाली राज्यसभा में 20 पद खाली है। वर्तमान में 225 सदस्यों में से कॉंग्रेस नेतृत्व वाले विपक्ष के कुल 87 सदस्य है। जो बहुमत के 113 के आंकड़े से 26 कम है। दूसरी ओर अकेली बीजेपी के पास 87 सदस्य हैं। और एनडीए के पास 110 सदस्य हैं, जो बहुमत से 3 कम हैं। 28 अन्य सदस्य है, जो किसी गठबंधन को समर्थन नहीं करते हैं। 

हालांकि अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए 87 सदस्यों के हस्ताक्षर है, जो पूरे इंडिया गठबंधन के सदस्य हैं। अन्य 28 सदस्यों का सहयोग नहीं है, ना उनकी मंशा स्पष्ट है। ऐसे में उनके अनुपस्थित रहने के चांस भी बन सकते हैं। या किसी भी गठबंधन के साथ जा सकते हैं। 

विभिन्न गठबंधन के पास सदस्य संख्या - 


एनडीए - (110) 
बीजेपी -           87
जेडी (यू) -        04
एनसीपी -         02
जेडीएस -         01
शिवसेना -        01
आरएलडी -      01
पीएमके -         01
एजीपी -          01
एनपीपी -        01
आरपीआई -    01
यूपीपीएल -     01
टीएमसी (एम) -01
निर्दलीय -        02
मनोनीत -        06

INDIA गठबंधन - (87) 
कॉंग्रेस -                       26
टीएमसी -                    13
आप -                         10
डीएमके -                     10
सीपीआई (एम) -           04
सीपीआई -                   02
आरजेडी -                    05
एसपी -                        04
जेएमएम -                    03
एनसीपी (शरद) -           02
शिवसेना (उद्धव) -         02
आईयूएमएल -              02
एजीएम -                     01
केसी -                         01
एमडीएमके -                01
निर्दलीय -                    01

अन्य (28)
वाईएसआरसीपी - 11
बीजेडी -             08
सीआरएस -         04
एआईडीएमके -    03
बीएसपी -           02
एमएनएफ -        01

खाली - 20

उपर्युक्त संख्या में विभिन्न गठबंधन के पास और पार्टियां के पास राज्यसभा में सदस्य हैं। 

इस सदस्य संख्या को देखते हुए विपक्ष कमजोर प्रतीत हो रहा है। ऐसे में ऐसा प्रस्ताव लाया जाना रोचक है। किन्तु राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि कॉंग्रेस के नेतृत्व वाला विपक्ष चर्चा के बाद वॉक आउट कर वोटिंग कराने से पूर्व सदन छोड़ सकता है, उसे भीतरघात का डर भी है। 

अगर कॉंग्रेस किसी परिस्थिति में राज्यसभा में बहुमत हासिल कर ले तब इसे लोकसभा में बहुमत से पारित करना होगा, जहां एनडीए के पास स्पष्ट बहुमत है। ऐसे में उपराष्ट्रपति को पद से किसी भी परिस्थिति में हटाना मुमकिन नहीं है। 

फिर लाए जाने के कारण - 


किसी भी परिस्थिति में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को विपक्ष द्वारा पद मुक्त नहीं किया जा सकता है। राज्यसभा में प्रस्ताव पर चुनाव (मतदान) होने में भी संदेह है। प्रस्ताव के गिरने और कॉंग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष द्वारा चुनाव से पूर्व वॉक आउट कर देने दोनों ही परिस्थितियों में कॉंग्रेस समेत पूरे विपक्ष का मज़ाक बनना भी तय है। साथ ही बीजेपी के प्रमुख नेताओं के राज्यसभा के सदस्य होने से विपक्ष की हालत लोकसभा में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के समान ही होने वाली चीज़ है। 

हरियाणा में चुनाव के ठीक पूर्व किसान के पुत्र पर इस तरह का प्रस्ताव लाए जाने से कॉंग्रेस को नुकसान होना भी तय है। फिर भी कॉंग्रेस द्वारा ऐसा प्रस्ताव लाए जाने के निम्न कारण है। 

  • किसान का बेटा - उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ किसान के पुत्र है, जो कॉंग्रेस समेत तमाम विपक्ष के लिए खटकने वाली बात है। इतिहास गवाह है चौधरी चरण सिंह से देवी लाल तक को कॉंग्रेस ने कभी बक्सा नहीं। ऐसे में जगदीप धनखड़ द्वारा अपना कार्यकाल निर्बाध रूप से पूरा किया जाना कॉंग्रेस के लिए एक ना चाहने वाली बात है। कॉंग्रेस की इस मंशा को धनखड़ द्वारा पदभार संभालने के साथ ही भांपा जाने लगा। इनके द्वारा पदभार ग्रहण करते ही कॉंग्रेस इन पर कभी झुकने तो कभी माइक बंद कर देने के नाम से हावी रही। अब कॉंग्रेस ने अपने इरादे देश की जनता के सामने गलती से ही सही लेकिन स्पष्ट कर दिए कि इन्हें भी चौधरी चरण सिंह की तरह पद मुक्त बनाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देगी। 
  • असीमित ज्ञान और वाकपटुता - उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ असीमित ज्ञान का भंडार होने के साथ हाजिर जबाब व्यक्ति भी है। जब भी विपक्ष ने इन्हें घेरने की कोशिश की तब विपक्ष खुद ही घिरता नजर आया। ऐसे कॉंग्रेस इन्हें घेरने के लिए एक नई तरकीब लाई है, जिसमें भी कॉंग्रेस खुद के घिरने के पूरे आसार नजर आ रहे हैं। 
  • मनमानी करने से रोकना - अपने ज्ञान, प्रबंध क्षमता और निर्णय लेने की शक्ति के कारण धनखड़ किसी भी दल को मनमानी करने नहीं देते। ऐसे में हमेशा नियमो को तोड़ मनमानी पर जोर देने वाला विपक्ष इसे सहन नहीं कर पा रहा है, इन्हें नियंत्रित करने के उदेश्य से ऐसा प्रयोग करने जा रहा है। लेकिन इसके परिणाम क्या होंगे जो निकट भविष्य में देखने को मिल सकते हैं। 
  • सोनिया गांधी का पहली बार ऊपरी सदन में जाना - सबसे लंबे समय तक कॉंग्रेस की अध्यक्षा रही सोनिया गांधी जो यूपीए की अध्यक्ष और संयोजक भी रही। यह पहली बार ऊपरी सदन की सदस्य बनी है। ऐसे में वो अपनी छाप इस सदन में छोड़ने का एक प्रयास कर रही है। साथ ही कॉंग्रेस और इसके साथी दलों के सदस्य भी इनके सामने नायक बनने के ऐसे प्रस्ताव का समर्थन दे रहे हैं। 
  • कार्यवाही में खलल पैदा करना - राज्यसभा में ऐसा प्रस्ताव अब से पहले कभी नहीं आया। इस समय ऐसा प्रस्ताव लाने का कारण विपक्ष का कार्यवाही में दखल डालने का भी एक उदेश्य हो सकता है। जब से धनखड़ इस पद पर बैठे हैं, तब से सदन की नियमित कार्यवाही हो रही है। इसमे बाधा डालने के लिए इससे बेहतर और क्या प्रयास हो सकता है? इससे दो तीन दिन आराम से निकाले जा सकते हैं। 
  • सोच और दूरदर्शिता का अभाव - इस प्रस्ताव का गिरना तय है। राज्यसभा में ही इसे पास नहीं कराया जा सकता है, लोकसभा तक पहुंचने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं। साथ ही कई लोगों का दावा है कि ऐसी पार्टी जिनके सदस्य राज्यसभा में नहीं है, उनसे चर्चा नहीं की। चर्चा नहीं किए जाने वाली बात में कोई दम है तो इसका साफ अर्थ है कि यह एक अदूरदर्शी कदम है, जिसका खामियाजा विपक्ष को ही भुगतना है। 
  • ध्यान भटकाना - इस समय बांग्लादेश में जो हो रहा है, सरकार उस मुद्दे पर चर्चा चाहती है। साथ ही वक्फ बोर्ड पर भी चर्चा चाहती है। कॉंग्रेस समेत पूरे विपक्ष की दोनों मुद्दो में कोई रुचि नहीं है। जनता का ध्यान दोनों मुद्दो से हटाने के लिए यह एक स्टंट लाई है, जिससे जनता का ध्यान इस तरफ आकर्षित किया जा सके। 
उपराष्ट्रपति के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव का पहला मामला है। कई लोगों का मानना है कि विपक्ष के सामने जगदीप धनखड़ का शानदार, उज्जवल, बेदाग और स्वच्छ व्यक्तित्व एक बड़ी चुनौती है। अक्सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर उनके निजी जीवन को लेकर हमलावर होने वाला विपक्ष जगदीप धनखड़ के व्यक्तित्व और निजी जीवन और छबि पर कोई सवाल नहीं कर सकता और ना ही आरोप लगा सकता है। ऐसे में इनकी छवि पर प्रश्न चिन्ह लगाने के लिए ऐसा कदम उठाया है। 

कोई कुछ भी कहे लेकिन यह साफ है कि कॉंग्रेस समेत पूरा विपक्ष देश की जनता के सामने एक बार फिर किसान और किसान के पुत्रों के प्रति अपनी सोच को उजागर करने के लिए उजागर हो रहा है। विपक्ष के सभी सदस्यों द्वारा प्रस्ताव लाए जाने से विपक्ष की मानसिकता पर सवाल जरूर खड़े हो रहे।

हालांकि यह स्पष्ट है कि अविश्वास प्रस्ताव राज्यसभा में ही गिर जाएगा, इसके लोकसभा तक पहुंचने के कोई आसार नहीं है। लेकिन राज्यसभा में जगदीप धनखड़ के व्यक्तित्व को किस तरीके से विपक्ष द्वारा प्रस्तुत किया जाएगा, यह अभी पर्दे में है। लेकिन यहां इस बात की पूरी संभावना है कि बीजेपी कॉंग्रेस द्वारा किए जाने वाले कटाक्ष किसानो के खिलाफ कटाक्ष के रुप में पेश करेगी। बीजेपी को यह मौका कॉंग्रेस और इसके साथी दलों ने ही दिया है। 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ