लोक अदालत बैंक लोन सेटलमेंट : ना करे तो ही बढ़िया। Lok Adalat

लोक अदालत बैंक लोन सेटलमेंट : ना करे तो ही बढ़िया। Lok Adalat

बैंक या अन्य वित्तीय संस्थानों से वर्तमान परिपेक्ष्य में कर्ज लेना काफी आसान हो गया है। इसी आसानी के कारण आजकल कई लोग बैंक और अन्य वित्तीय संस्थानों से कर्ज लेकर गाड़ी, बंगला खरीद रहे हैं। कई लोग अपनी आवश्यकता पूरी करने के लिए व्यक्तिगत ऋण भी बैंकों से ले रहे हैं।

लोक अदालत बैंक लोन सेटलमेंट : ना करे तो ही बढ़िया। Lok Adalat

ऋण लेना जितना आसान है, उतना आसान इसे पुनः चुकाना नहीं है। बैंक और अन्य वित्तीय संस्थानों द्वारा दिए जाने वाले ऋणों मे डिफॉल्टर होने वालों की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है। दिनोदिन डूबने वालों की संख्या बढ़ रही है।

लोक अदालत का अर्थ?


लोक अदालत को जनता की अदालत कहा जाता है। यह आपसी विवादों को समझौते के माध्यम से सुलझाने के लिए न्यायिक अदालत का एक वैकल्पिक मंच है। ऐसी अदालतों में सिविल और समझौता वर्जित अपराधों को छोड़कर, अन्य मामले का त्वरित निपटारा करने में अहम भूमिका निभाती है। इस अदालत द्वारा दिए गए  फैसलों के विरूद्ध किसी भी न्यायालय में अपील नहीं की जा सकती है। क्योंकि अधिकांश निपटारे दोनों पक्षों की सहमती से होते हैं। ऐसी अदालत में मामले का निपटारा होने पर कोर्ट फीस लौटा दी जाती है।

भारत के सभी राज्यों के सभी जिलों में स्थायी लोक अदालतों के माध्यम से विवाद सुलझाने के लिए उस अदालत में प्रार्थनापत्र देने की आवश्यकता होती है। अभी जो विवाद न्यायालय के समक्ष नहीं आये हैं उन्हें भी प्री-लिटीगेशन स्तर पर बिना मुकदमा दायर किये ही पक्षकरों की सहमति से प्रार्थनापत्र देकर लोक अदालत में फैसला कराया जा सकता है।

लोन सेटलमेंट का अर्थ - 


लोन सेटलमेंट से आशय बैंक या अन्य वित्तीय संस्थानों और ऋणी के मध्य एक समझौता है। इसके लिए ऋणी, बैंक को सेटलमेंट के लिए प्रार्थना-पत्र लिखकर आंशिक छूट के लिए निवेदन करता है। इसके बाद बैंक (बैंक अधिकारी) और ऋणी मिल बैठ कर वापस में एक समझोता कर ऋणी को कुल ऋण में छूट दे उसे (कर्ज लेने वाले व्यक्ति को) एक मुश्त कर्ज चुकाने के लिए कहा जाता है। इस समझौते का बैंक द्वारा एक एक पत्र जारी किया जाता है। 

बैंक लोन सेटलमेंट उन लोगों द्वारा किया जाता है, जो इसे चुकाने में असमर्थ है। कई बार बैंक द्वारा अपने डिफॉल्टर को वन टाइम सेटलमेंट (OTS) के लिए कहा जाता है। इस तरह का सेटलमेंट करने से ग्राहक को केवल मूलधन ही चुकाने की आवश्यकता होती है। ब्याज और पेनल्टी को पूरी तरह से माफ कर दिया जाता है। ऋणी द्वारा वन टाइम सेटलमेंट की शर्ते नहीं मानने पर या समय से भुगतान नहीं करने पर बैंक को निर्णय बदलने का हक है। बैंक निर्णय बदलकर मूल ऋण शर्तों को मानने के लिए बाध्य होगा। 

बैंक और ऋणी के मध्य समझोता नहीं होने पर ग्राहक (ऋणी) को लोक अदालत में जाने का हक होता है। बिना समझोते के भी ग्राहक लोक अदालत जा सकता है। सामन्यतः लोक अदालत का रुख उस समय किया जाता है, जब बैंक और वसूली करने वाले कार्मिकों द्वारा ग्राहक को अनाआवश्यक रुप से परेशान किया जाता है। 

लोक अदालत से लोक बैंक लोन सेटलमेंट - 


ऋणी द्वारा लोन सेटलमेंट के लिए बैंक में उपस्थित हो प्रार्थना-पत्र देना होता है। इसके बाद बैंक द्वारा लोन सेटलमेंट की प्रक्रिया शुरु की जाती है। किन्तु कई बार बैंक ऐसा करने से आनाकानी करने के साथ ही ग्राहक से इसके लिए काफी बड़ी रकम की मांग भी कर देते हैं। इसके अलावा कई बार बैंक द्वारा समय से लोन का सेटलमेंट नहीं किया जाता है और वसूली के लिए परेशान किया जाता है तो ग्राहक लोक अदालत में लोन सेटलमेंट के लिए रुख कर सकते हैं। 

बैंक द्वारा सताये गए ग्राहक के लिए लोक अदालत एक उपयुक्त विकल्प होता है। यहां ग्राहक द्वारा अपील करने और केस लड़ने के लिए वकील को किसी प्रकार की फीस देने की आवश्यकता नही होती है। इसके लिए उसे ना ही कोर्ट की फीस देनी पड़ती है। यहां अदालत के मुकाबले में त्वरित गति से विवाद का निपटारा कर दिया जाता है। इस प्रकार की अदालत ग्राहक की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए बैंक के साथ समझौता करवाती है, जिससे ग्राहक आसानी से वन टाइम सेटलमेंट में निश्चित की गई राशि को चुका सके।

लोक अदालत द्वारा बैंक और ग्राहक के मध्य समझोते द्वारा जो भी राशि भुगतान करने के लिए निश्चित की जाती है, ग्राहक को केवल उसी राशि का बैंक को भुगतान करना होता है। लोक अदालत द्वारा निश्चित की गई राशि का भुगतान करने के बाद बैंक या वसूली कर्मचारियों द्वारा ग्राहक को परेशान करना कानूनी अपराध की श्रेणी में आता है। इस अदालत में जो भी फैसला होता है, उसे दोनो पक्षों को मानना आवश्यक होता है। इस अदालत द्वारा लिए गए फैसले के विरुद्ध किसी भी न्यायालय में किसी प्रकार की अपील नहीं की जा सकती है। 

लोक अदालत में लोन सेटलमेंट के लिए आवेदन कैसे करे - 


बैंक लोन के सेटलमेंट के लिए 'लोक अदालत' में आवेदन करने की बेहद  आसान प्रक्रिया है। इसके लिए ऋणी को डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट को एक प्रार्थना-पत्र (आवेदन पत्र) लिखना होता है। यह आवेदन पत्र लिखने के बाद डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को जमा करानी होती है। जब लोक अदालत खुलती है, उस वक्त ही यह आवेदन पत्र जमा कराया जा सकता है। यह आवेदन पत्र अदालत के खुलने के पहले नहीं दिया जा सकता है। अपने इस आवेदन पत्र में ऋणी को बैंक लोन से सम्बन्धित पूरी जानकारी देनी होती है, यथा - बकाया राशि, ब्याज और अन्य शुल्क इत्यादि। साथ ही अपनी वित्तीय स्थिति के बारे में जानकारी देना भी आवश्यक होता है।

आवेदन जमा कराने के बाद लोक अदालत द्वारा बैंक को नोटिस भेजकर उसे अदालत में बुलाया जाता है। बैंक और ग्राहक के वकीलों के साथ बैंक के कर्मचारी और ग्राहक मिलकर एक समझौता कर लेते हैं। इस समझौते द्वारा निर्धारित की गई राशि को चुकाने के लिए ऋणी बाध्य होता है। 

लोक अदालत से लोन सेटलमेंट के फायदे - 


ऋणी द्वारा लोन चुकाने की असमर्थता के समय उसके द्वारा सेटलमेंट का विकल्प लेने से, उसे कुछ फायदे होते हैं। बैंक द्वारा अनावश्यक रूप से से तंग किए जाने से उसे 100% मुक्ति मिल जाती है। इसके अलावा नहीं उसे कुछ फायदे मिलते हैं, उसे ऋण मुक्ति के अलावा निम्नलिखित फायदे मिलते हैं - 
  • त्वरित सुनवाई - लोक अदालत में न्यायिक कोर्ट के मुकाबले से अधिक त्वरित सुनवाई होती है। इस कोर्ट (लोक अदालत) में सामन्यतः आवेदन के बाद अगली बार जब अदालत खुलती हैं, उस समय दोनों पार्टी (बैंक और ग्राहक) को बुलाकर सुनवाई कर ली जाती है। 
  • त्वरित न्याय - जब लोक अदालत में दोनों पार्टी सुनवाई के लिए पहुंच जाती है, तब दोनों पार्टी मिलकर एक ही दिन में मामले का निपटारा कर देती है। जब मामले का निपटान एक दिन में ही हो जाए तो इससे त्वरित न्याय क्या हो सकता है? भारतीय न्यायिक प्रक्रिया में ऐसे मामलों का निदान करने के लिए दशक भी कम पड़ जाता है। 
  • वकील की फीस नहीं - इसे सस्ता न्याय कहा जाता है, क्योंकि अपील करने वाले व्यक्ति को वक़ील नहीं करना पड़ता है। वकील अदालत द्वारा निःशुल्क दिया जाता है। परिवादी को वकील को फीस नहीं चुकानी होती है। 
  • कोर्ट फीस नहीं - लोक अदालत में आवेदन से लेकर न्याय अथवा दोनों पक्षों के मध्य होने वाले समझोते तक परिवादी को किसी प्रकार की फीस चुकाने की आवश्यकता नहीं होती है। 
  • कोई सजा नहीं - इस कोर्ट द्वारा किसी प्रकार की सजा नहीं सुनाई जाती है। ऐसी अदालत केवल दोनों पक्षों के मध्य एक समझोता कराती है। 
  • समझौते के विरुद्ध कोई अपील नहीं - इस प्रकार की अदालतों द्वारा दिए जाने वाले फैसले के विरुद्ध किसी भी अदालत में अपील नहीं की जा सकती है। इस अदालत का फैसला अपने आप में सर्वमान्य और पूरी तरह से न्यायिक माना जाता है। 
  • बैंक का सरल व्यवहार - बैंक इस अदालत में सरल रुख रखता है क्योंकि वह जानता है कि इस अदालत के फैसले को उसे मानना होगा। साथ ही उसके लिए बैंक इसके विरुद्ध अपील भी नहीं कर सकता है। इसे लंबा खिंचने पर उसे वकील को फीस भी देनी होती है। ऐसे में यह ग्राहक के लिए बेहद फायदेमंद होती है। 
लोक अदालत में आवेदन करना बहुत ही सरल है, साथ ही किसी प्रकार की सजा का डर ना होना परिवादी को निडर बनाता है। परिवादी से किसी प्रकार की फीस वसूली ना करना और ना ही वकील को फीस ना देना। 

लोक अदालत से लोन सेटलमेंट के नुकसान - 


लोक अदालत में बैंक का लोन सेटलमेंट कराना जितना आसान है, इतना कष्टकारी भी है। ऋणी द्वारा इस तरह का विकल्प लेने से उसे कुछ नुकसान भी होते हैं। इससे होने वाले नुकसान इस प्रकार हैं - 
  • सिबिल स्कोर का खराब होना - लोन का सेटलमेंट बैंक से कराने या लोक अदालत से कराने (दोनों में से किसी से भी) सही नहीं होता है, सिबिल स्कोर के लिए। इससे व्यक्ति का सिबिल स्कॉर खराब होता है। सिबिल स्कोर के खराब होने का अर्थ साख खराब होना होता है, व्यावसाय की भाषा में। 
  • 7 वर्ष कोई लोन नहीं - बैंक लोन सेटलमेंट कराने के बाद अगले सात वर्ष तक किसी प्रकार का लोन नहीं मिलता है। ग्राहक द्वारा ऐसा करने से उसका सिबिल स्कोर नकारात्मक कर दिया जाता है, परिणामस्वरूप अगले सात वर्ष कोई भी वित्तीय संस्थान और बैंक लोन नहीं देता है। 
  • आर्थिक स्थिति का आंकलन - ग्राहक द्वारा ऐसा करने से उसकी आर्थिक स्थिति का नकारात्मक आंकलन होता है और साख गिर जाती है। 
 बैंक लोन का सेटलमेंट करना एक व्यावसायिक व्यक्ति के लिए कभी भी उपयुक्त नहीं होता है। ऐसा विकल्प केवल उन लोगों द्वारा उपयोग में लिया जा सकता है, वास्तव में जिनकी आर्थिक स्थिति दयनीय है, और लोन चुकाने में समर्थ नहीं है। समर्थ व्यक्ति द्वारा इस प्रकार के विकल्प का उपयोग किए जाने से उसे भविष्य में बैंकिंग लेन-देन खासतौर से किसी प्रकार के कर्ज लेने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। अधिकांश बैंक उसे लोन ही नहीं देते हैं, अगर कोई तत्पर होता है तो ब्याज की दरे बहुत ऊंची होती है। 

अन्य प्रश्न - 


प्रश्न - लोन सेटलमेंट कौन करा सकता है? 

उत्तर - बैंक लोन का सेटलमेंट लोक अदालत करा सकती है। इसके लिए डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के नाम प्रार्थना पत्र लिख लोन से सम्बन्धित सम्पूर्ण जानकारी देनी होती है। इस प्रकार का प्रार्थना पत्र केवल अदालत के खुलने पर ही स्वीकार किया जाता है। 

प्रश्न - क्या लोन सेटलमेंट के बाद लोन एकमुश्त चुकाना होता है? 

उत्तर - नहीं। बैंक या लोक अदालत में ग्राहक द्वारा लोन का सेटलमेंट करा देने के बाद उसे 1-3 वर्ष की अवधि मिलती है, लोन चुकाने के लिए। भविष्य में किसी प्रकार की गलतफहमी ना हो इसलिए समझोते के समय ग्राहक को बैंक से सेटलमेंट का विवरण और लोक अदालत में सेटलमेंट किया जा रहा है, तो अदालत की डिक्री लेनी चाहिए। 

प्रश्न - क्या लोन सेटलमेंट कराना उपयुक्त है? 

उत्तर - नहीं। बैंक या वित्तीय संस्थानों से लिए गए लोन का सेटलमेंट कराना कदापि उपयुक्त नहीं है। ग्राहक द्वारा ऐसा कराने पर उसका सिबिल स्कोर नकारात्मक कर दिया जाता है। सिबिल स्कोर को नकारात्मक कर देने से उसे अगले 7 वर्षों तक किसी बैंक या वित्तीय संस्थान से लोन नहीं मिलता है। 

प्रश्न - बैंक का लोन नहीं चुका पाने के कारण बैंक वाले परेशान कर रहे हैं, क्या करूँ? 

उत्तर - अगर आप बैंक का लोन चुकाने में असमर्थ है और बैंक के कर्मचारी परेशान कर रहे हैं तो आप लोक अदालत जा सकते हैं। लोक अदालत में आवेदन कर आप ब्याज, पेनल्टी और अन्य चार्ज के साथ बैंक द्वारा परेशान किए जाने से मुक्ति पा सकते हैं। लोक अदालत में आप लोन चुकाने की असमर्थता और इसका कारण बता केवल मूलधन चुकाने का अधिकार पा सकते हैं। यहां ध्यान रखे अगर आप असमर्थ है तो ही जाए, अन्यथा इसके परिणाम आपको भविष्य में भुगतने पड़ सकते हैं। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखे कि अदालत के फैसले के मुताबिक आपको मूलधन चुकाना होगा। अगर फैसले के मुताबिक लोन चुकाने में असमर्थ रहते हैं तो बैंक मूल शर्तो पर वसूली करेगा। फैसले के मुताबिक लोन का मूलधन चुकाने के लिए आपको 1-3 वर्ष का समय मिलेगा जो राशि और आपकी आय पर निर्भर होगा। 

प्रश्न - क्या बैंक लोन का ब्याज माफ कर सकता है? 

उत्तर - अगर आपकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है तो आप बैंक में प्रार्थना पत्र देकर लोन पर ब्याज माफी के लिए समझोता कर सकते हैं। अगर बैंक आपकी प्रार्थना को स्वीकार नहीं करता है तो आप लोक अदालत जा ब्याज, पेनल्टी आए अन्य चार्ज माफ करा सकते हैं। ध्यान रहे ऐसा केवल आर्थिक स्थिति ठीक ना हो तो ही करे। 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ