अंधाधुंध खुल रहे मेडिकल कॉलेज स्वास्थ्य के लिए खतरा। Medical College

अंधाधुंध खुल रहे मेडिकल कॉलेज स्वास्थ्य के लिए खतरा। Medical College

देश मे हमेशा से उच्च शिक्षा की मांग करने वालों की बड़ी संख्या रही है। खासतौर से प्रत्येक सांसद की मांग होती है कि उसके संसदीय क्षेत्र में कम से कम एक मेडिकल कॉलेज हो। मेडिकल कि शिक्षा प्राप्त करने के लिए कई भारतीय छात्र छात्राएं प्रतिवर्ष विदेश शिक्षा प्राप्त करने के लिए जाते हैं।

अंधाधुंध खुल रहे मेडिकल कॉलेज स्वास्थ्य के लिए खतरा। Medical College

शिक्षा और शिक्षण संस्थान हमेशा से इस देश में मुद्दा रहा है। हर राजनेता की महत्वाकांक्षा होती है कि वह अपने क्षेत्र में प्रत्येक प्रकार की शिक्षा देने वाले शिक्षण संस्थान खुलवाए। सांसद और विधायक अपने क्षेत्र में महाविद्यालय और विश्वविद्यालय खुलवाने के लिए हमेशा प्रयास करते दिखते हैं। 

मेडिकल कॉलेज -


मेडिकल कॉलेज से तात्पर्य ऐसे कॉलेज से है जहां मानव स्वास्थ्य, चिकित्सा एंव औषधियों से सम्बन्धित विभिन्न विषयों का विद्यार्थियों द्वारा प्रशिक्षित और अनुभवी चिकित्सको के अधीन अध्ययन किया जाता है। इन कॉलेज द्वारा अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को स्नातक, परास्नातक और शोध की उपाधि प्रदान की जाती है। विद्यार्थियो द्वारा अध्ययन पूर्ण करने के पश्चात्‌ मेडिकल कौन्सिल ऑफ लिविंग इंडिया (एमसीआई) द्वारा निर्धारित किए गए मानदंड पूर्ण करने के पश्चात्‌ मेडिकल क्षेत्र में सेवाएँ देना शुरू कर दिया जाता है। 

मेडिकल कॉलेज और उसकी शिक्षा की गुणवत्ता पर देश के नागरिको का स्वास्थ्य निर्भर करता हैं। मेडिकल कॉलेज से पढ़ने के बाद विद्यार्थी एमसीआई के निर्धारित मानदंड पूरा कर देश के अमूल्य संसाधन - मानव संसाधन को स्वस्थ बनाये रखने में योगदान प्रदान करते हैं। इन्हीं के द्वारा छोटी-मोटी बीमारी के लिए औषधि के लिखे जाने से शल्य चिकित्सा तक की जाती है। मेडिकल कॉलेज कहने को एक कॉलेज है, किंतु वास्तविकता को देखा जाए तो देश के नागरिको के स्वास्थ्य को बनाये रखने का प्रशिक्षण स्थल है। 

भारत में मेडिकल कॉलेज केंद्रीय और विभिन्न राज्यों के उच्चतम माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा आयोजित की जाने वाली 12 वी कक्षा (जीव विज्ञान) या समकक्ष उत्तीर्ण विद्यार्थियों को स्नातक के लिए प्रवेश देते हैं। सभी मेडिकल कॉलेज के प्रवेश के नियम एमसीआई और अन्य सम्बन्धित आयोग द्वारा निर्धारित किए जाते हैं। नियमो को पूर्ण करने वाले विद्यार्थियों को को प्रवेश दिया जाता है। 

वर्तमान में, भारत में मेडिकल कॉलेज में प्रवेश पाने के लिए विज्ञान वर्ग के साथ जीव विज्ञान का होना अनिवार्य होता है। ऐसे 12 वी पास विद्यार्थी राष्ट्रीय टेस्टिंग एजेंसी (NTA) द्वारा आयोजित की जाने वाली परिक्षा को उत्तीर्ण करने के पश्चात्‌ प्रवेश पाने के लिए योग्य घोषित किए जाते हैं। योग्य घोषित विद्यार्थी कॉलेज द्वारा काउंसलिंग के पश्चात विद्यार्थियों को मेरिट के आधार पर प्रवेश देते हैं। मेडिकल कॉलेज में प्रवेश पाने के लिए विद्यार्थियों को नैशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेस टेस्ट (एनईईटी) देना अनिवार्य होता है। 

भारत में मेडिकल कॉलेज की बढ़ती संख्या - 


भारत में पिछले एक दशक के दौरान मेडिकल कॉलेज की संख्या लगभग दुगुनी हो गई है। पिछले एक दशक में जिस रफ्तार से कॉलेज की संख्या बढ़ी है, उससे भी तेज रफ़्तार से प्रवेश योग्य सीट संख्या में इजाफा हुआ है। पिछला दशक मेडिकल कॉलेज में प्रवेश पाने वाले छात्र-छात्राओं के लिए आजादी के बाद से अब तक का सबसे सुनहरा दशक रहा हैं। 

भारत में 2010 से 2024 तक मेडिकल कॉलेज की संख्या 

वर्ष कॉलेज (संख्या)  कुल सीट 
2010 316 -
2014 387 52,348
2020 532 76,928
2022 648 96,077
2024 706 1,08,915

पिछले दशक में मेडिकल कॉलेज की संख्या बहुत तेजी से बढ़ी है। जहां भारत में 2014 में 387 मेडिकल कॉलेज और एमबीबीएस के लिए सीट संख्या 52,348 थी। वही 2024 में मेडिकल कॉलेज की संख्या बढ़कर 706 (82.43% बढ़ोतरी) हो गई, एमबीबीएस में प्रवेश योग्य सीट बढ़कर 1,08,915 (108.05% बढ़ोतरी) हो गई है। 

नए मेडिकल कॉलेज खोलने के साथ ही पुराने मेडिकल कॉलेज में सीट संख्या में इजाफा किया गया, जिससे मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लेने वाले विद्यार्थियों के लिए प्रवेश के लिए द्वार खुले हैं। अब एक दशक में ही एमबीबीएस में दुगुने से अधिक विद्यार्थी प्रवेश पा रहे हैं। 

नए मेडिकल कॉलेज सरकारी और निजी दोनों क्षेत्र में खुले हैं। पिछले दशक में निजी के मुकाबले सरकारी मेडिकल कॉलेज में भारी इजाफा हुआ है। यह सभी कॉलेज सांसदों द्वारा मांग उठाए जाने के उपरांत खोले हैं। सांसद और विधायकों द्वारा मांग उठाए जाने का कारण स्थानीय लोगों द्वारा लंबे समय से ऐसी मांग किया जाना है। 

मेडिकल कॉलेज की बढ़ती संख्या दर्दनाक - 


नए मेडिकल कॉलेज खोले जाना देश और नागरिको के लिए सरकार द्वारा जनहित में उठाया हुआ कदम माना जाता है। लेकिन यह देश और नागरिको का दुर्भाग्य है कि नए खोले गए अधिकांश कॉलेज महज डिग्री प्रदान करने वाले कॉलेज साबित हो रहे हैं। हाल ही में बढ़े मेडिकल कॉलेज और उनकी व्यवस्था को देखा जाए तो बिल्कुल ऐसा (महज डिग्री देने वाले कॉलेज) ही साबित हो रहा है। अधिकांश मेडिकल कॉलेज शिक्षकों (अनुभवी चिकित्सकों) की कमी से जुझ रहे हैं। कॉलेज में विद्यार्थियों द्वारा की जाने वाली वास्तविक प्रैक्टिस को देखे तो किसी यूरोपीय देश के मेडिकल कॉलेज की स्थिति नजर आती है। ऐसे कॉलेज की तस्वीर मस्तिष्क में आती है, जहां विद्यार्थी डिग्री प्राप्त कर अपना व्यवसाय शुरु कर देते हैं या मेडिकल की दुकान खोल देते हैं। 


नए कई कॉलेज तो ऐसे हैं जहाँ अस्पताल तक नहीं हैं। अगर अस्पताल है तो उसमे अनुभवी चिकित्सकों के नहीं होने से मरीज़ नहीं है। ऐसे में डिग्री महज किताबी ज्ञान लेने तक ही सीमित हो रही है। ऐसे कॉलेज में डिग्री के सिवा कुछ मिलता हुआ नजर नहीं आ रहा है। 

सरकारो (केंद्र और राज्य) का ध्यान जितना कॉलेज खोलने में उतना इनमे व्यवस्था देने में नहीं है, जो दर्दनाक है। विभिन्न राज्य सरकारों ने पिछले दशक में नए कॉलेज खोलने की भरमार लगा दी, लेकिन चिकित्सक भर्ती शून्य है। ऐसे में पुराने कॉलेज में भी चिकित्सक की कमी हो रही है, नए कॉलेज का क्या कहना? 

मेडिकल कॉलेज शिक्षा में सुधार की आवश्यकता - 


पहले देश में इसी तरीके से असंख्य नर्सिंग कॉलेज खोले गए। इसी तरीके से फार्मेसी और लैब तकनीशियन की शिक्षा दी गई। व्यवस्था के अभाव में नर्सिंग कर्मी और लैब तकनीशियन की डिग्री ले चुके लोग आज सरकार के लिए सरदर्द बन गए हैं। उनकी लापरवाही के चलते या प्रशिक्षण के अभाव में आज मरीज़ की जिंदगी दांव पर लग रही है। नर्सिंग कर्मी कभी गलत इंजेक्शन लगा देते हैं तो कभी गलत नस में लगा देते हैं। इतना ही नहीं, गलत खून तक चढ़ाने के मामले दिनोंदिन बढ़ते हुए दिख रहे हैं। ऐसे अप्रशिक्षित और लापरवाह नर्सिंग कर्मियों के कारनामों की वज़ह से स्वास्थ्य सेवाएं और स्वास्थ्य उपचार मरीजों की जान पर भारी पड़ रहे हैं। 

अंधाधुंध खुल रहे मेडिकल कॉलेज स्वास्थ्य के लिए खतरा। Medical College

भारत में सही से जांच की जाए तो गलत इलाज से होने वाली मौत का आंकड़ा काफी बड़ा है। पहले ही चिकित्सा सेवा निम्न हरकतों की वज़ह से बदनाम है - 
  1. मरीज़ पर दवा का प्रयोग करते रहना, प्रयोग की दवा का उपयोग करते हुए भी फीस की वसूली करना। 
  2. अनावश्यक जांच कराना। 
  3. मरीज़ के अनावश्यक शल्य चिकित्सा (ऑपरेशन) कर देना। 
  4. मरीज़ का गलत इलाज कर देना, मरीज को अन्य दवा देना या गलत इंजेक्शन लगा देना। 
  5. समय पर सही दवा ना देना। 
  6. सरकारी अस्पतालों में समय पर जांच ना हो पाना। 
  7. सरकारी चिकित्सकों का ड्यूटी समय में भी अस्पताल में ना होना। 
  8. सरकारी चिकित्सकों की दूर-दराज के इलाक़ों में स्थानांतरण किए जाने के बाद ड्यूटी जॉइन ना करना या नौकरी को छोड़ देना। 
  9. सरकारी चिकित्सक द्वारा मरीज़ को घर पर बुलाना। 
  10. अनावश्यकता की दवा भी लिख देना। 
  11. रेजिडेंट डॉक्टर का बार-बार हड़ताल पर चले जाना। 
ऐसी सभी कमियों से लड़ने की हालत फ़िलहाल तो भारत के चिकित्सा क्षेत्र में बिल्कुल भी नहीं दिख रही है। फ़िलहाल सभी अपने हाल में ही खुश नजर आ रहे हैं। ऐसे में सरकार और मेडिकल क्षेत्र की विभिन्न एजेंसियों की जिम्मेदारी बनती है कि वो चिकित्सा के क्षेत्र में ऐसी पहल करे जिससे इसमे सुधार हो। इसमे सुधार किए जाने की आवश्यकता निम्न कारणों से है - 
  • मानव को संसाधन बनाना ना कि दायित्व - मानव किसी भी देश के लिए संसाधन होते हैं, देश के आर्थिक विकास में यह अहम भूमिका निर्वाह करते हैं। ऐसे में चिकित्सा से जुड़े संस्थानों और चिकित्सकों की जिम्मेदारी बनती है कि देश के नागरिको को ऐसा इलाज करे, जिससे वो देश के लिए संसाधन बनकर आर्थिक विकास में योगदान दे सके। देश के लिए बीमारू नागरिक पैदा किया जाना चिकित्सको के लिए एक कलंक होता है। ऐसे में चिकित्सा सेवा में सुधार की बड़ी आवश्यकता है। 
  • शोध को बढावा - बेहतर इलाज के लिए चिकित्सा के क्षेत्र में शोध की बहुत आवश्यकता होती है। बेहतर शोध के लिए मेडिकल कॉलेज शिक्षा को उन्नत बनाया जाना जरूरी है। 
  • नैतिक जिम्मेदारी की भावना को बढावा - जब चिकित्सा के क्षेत्र में शिक्षको द्वारा अपने विद्यार्थियों को चिकित्सा सेवा का अध्ययन कराया जाता है तो उनमे पेशे के प्रति नैतिक जिम्मेदारी भी सिखाई जाती है। बिना नैतिक जिम्मेदारी के चिकित्सक का समाज में कोई स्थान नहीं है। ऐसे लोगों का चिकित्सक होना समाज और देश दोनों पर बोझ बन जाता है। 
  • देश के खर्च को घटाना - अप्रशिक्षित और नैतिक जिम्मेदारी को ना समझने वाले चिकित्सक समाज और देश पर बोझ है। वो देश में मानव संसाधन बनाए रखने के स्थान पर बीमारू नागरिक बना देश के खर्च को बढ़ा देते हैं। देश में स्वास्थ्य सेवा के खर्च को कई गुना तक बढ़ा देते हैं। इसके बावज़ूद भी मानव संसाधन को बनाये रखने की जिम्मेदारी को नहीं समझ पाते हैं। 
  • निर्यात बढावा - एक उन्नत और बेहतर चिकित्सा सेवा निर्यात (दवा और सेवा) के जरिए देश का निर्यात बढ़ा विदेशी मुद्रा को लाते हैं। विदेशी मरीजों को भी इलाज के लिए देश में आमंत्रित करते हैं। ऐसे में चिकित्सा सेवा का उत्थान किया जाना अति आवश्यक है। 
उपर्युक्त सभी कारणों से देश में चिकित्सा सेवा का उत्थान किया जाना अति आवश्यक है। देश में चिकित्सा को बढावा देने के लिए सरकारो को महज कॉलेज खोलकर अपनी जिम्मेदारी से इति श्री नहीं कर देना चाहिए। उन्हें अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए, जिससे यह सेवा बन सके बोझ नहीं। 

कैसे हो सकता है मेडिकल शिक्षा में सुधार? 


सबसे बड़ा सवाल अब भी यही है कि देश में मेडिकल शिक्षा में सुधार कैसे किया जा सकता है? इसमें सकारात्मक सुधार लाने के लिए सरकार, समाज, मेडिकल शिक्षा एजेंसी और अस्पतालों को साझा प्रयास करने चाहिए। जो पहले से चिकित्सक है, उनकी जिम्मेदारी इसे सुधारने के लिए और अधिक बढ़ जाती है। चिकित्सकों के प्रयास सबसे उपयुक्त हो सकते हैं, वो आने वाले डॉक्टर के लिए रोल मॉडल है, उनके द्वारा किए जाने वाले कृत्यों को आने वाली पीढ़ी फॉलो करती है, ऐसे में उन्हें सजगता से कार्य करना चाहिए। 

चिकित्सा के क्षेत्र की शिक्षा में सुधार लाने के लिए निम्न उपाय किए जाने अति आवश्यक है - 
  • सभी मेडिकल कॉलेज में आवश्यकता के संसाधन प्रदान किए जाए। 
  • सभी मेडिकल कॉलेज में अध्यापक चिकित्सकों की भर्ती की जाएं। 
  • सभी मेडिकल कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए प्रैक्टिस अनिवार्य की जाए। 
  • मेडिकल शिक्षा ले रहे विद्यार्थियों को नैतिक शिक्षा दी जाए। 
  • विद्यार्थियों को किताबी शिक्षा के स्थान पर व्यावहारिक शिक्षा देने पर जोर देना चाहिए। 
इसके अतिरिक्त भी कई उपाय हो सकते हैं, लेकिन हम एक बार फिर बताना चाहते हैं कि इस शिक्षा में सुधार करने के लिए जो वर्तमान में चिकित्सक है वो अहम योगदान दे सकते हैं। ऐसे में सरकार उनकी सहायता लेकर सुधार कर सकती है। 

सरकार को चिकित्सकों के बड़े नाम के पीछे भागने की बजाय कम संपत्ति रखने वाले चिकित्सकों की पहचान कर उन्हें इसकी जिम्मेदारी सौंप इसमे सकारात्मक सुधार लाए जा सकते हैं। 

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