घूंघट : एक रूढ़िवादी प्रथा या वैज्ञानिक कारण। Ghunghat

घूंघट : एक रूढ़िवादी प्रथा या वैज्ञानिक कारण। Ghunghat

राजस्थान समेत कई प्रदेश में (आमतौर से सम्पूर्ण भारत में) महिलाएं अपनी ओढ़नी या साड़ी के पल्लू से अपने सिर के साथ मुँह को भी ढंकती है। यह रिवाज शहरो की अपेक्षा में ग्रामीण इलाक़ों में अधिक देखने को मिलता है। ग्रामीण इलाक़ों में लगभग शत प्रतिशत महिलाएं सर को ढंके हुए ही देखने को मिलती है।

घूंघट : एक रूढ़िवादी प्रथा या वैज्ञानिक कारण। Ghunghat

सिर और मुँह ढंकने की इस परंपरा का विभिन्न प्रदेश और क्षेत्र में अलग-अलग नाम है। कहीं इसे पर्दा कहा जाता है तो कहीं इसे घूंघट कहा जाता है। इस घूंघट और पर्दा के बारे में भांति-भांति के लोग अलग-अलग प्रकार के ख्याल रखने के साथ अलग-अलग मत भी रखते हैं। कुछ लोग इसे एक कुरीति या रूढ़िवाद कहते हैं तो कुछ इसे परंपरा और रिवाज कहते हैं। 

घूंघट क्या होता है? Meaning of Ghunghat 


घूंघट से तात्पर्य महिलाओ द्वारा ओढ़नी या साड़ी के पल्लू से मुँह ढंकने से है। घूंघट कोई कपड़ा नहीं बल्कि एक क्रिया है, जो महिलाओ द्वारा पहनावे में की जाती है। घूंघट या घूंघटा उस क्रिया को कहा जाता है, जिसमें महिला अपनी ओढ़नी या साड़ी के पल्लू से अपने सिर के साथ मुँह को भी ढंक लेती है। 

घूंघट महिलाओ द्वारा बड़े-बुजुर्गो के सामने निकाला जाता है। घर की नई बहुएं ससुराल में अपने मुँह को ढंक कर रखती है उसे ही घूंघट कहा जाता है। सिर को ढंकने की प्रक्रिया को घूंघट नहीं कहा जाता है। हालांकि कई लोग सिर ढंकने को भी घूंघट से जोड़ देते हैं। सिर ढंकना और घूंघट निकालना दोनों अलग। घूंघट में महिला अपने चेहरे को पल्लू से छुपा लेती है, जिससे उसके चेहरे को कोई देख ना सके और ना ही कोई रोशनी की किरण उसे सीधा स्पर्श कर सके। 

घूंघट कि आलोचना - 


कई उदारवादी और रूढ़िवाद के विरोधी घूंघट को एक कुरीति और कुप्रथा कहकर इसकी आलोचना करते हैं। वर्तमान में ऐसे लोगों की संख्या भी बहुतायत हो गई है, जो मानते हैं कि घूंघट पुरुषों द्वारा महिलाओ पर जोर-जबरदस्ती करके निकलवाया जाता है। हालांकि इनके पास इसका विरोध करने के कोई ठोस कारण तो नहीं है, किंतु आधुनिकता और रूढ़िवाद के नाम पर इसका विरोध जरूर करते हैं। इसका विरोध करने वालों के पास इस प्रकार के कुछ तर्क होते हैं - 
  • घूंघट निकालना एक रूढ़िवादी परंपरा है। 
  • घूंघट निकलने के लिए महिलाओ को प्रताड़ित किया जाता है। 
  • महिलाएं भी मनुष्य है, उन्हें अपना जीवन अपने तरीके से जीने का हक है। 
  • पढ़ी-लिखी महिलाएं घूंघट नहीं निकालती, यह अनपढ़ महिलाओ का काम है। 
  • घूंघट अत्याचार है, महिलाओ को घुटन होती है। 
  • घूंघट महिलाओ की प्रगति में बाधा हैं। 
  • महिलाओं का शोषण होता है घूंघट की आड़ में। 
इसके अतिरिक्त कुछ इस प्रकार के अन्य तर्क भी है। जो वैज्ञानिक या आधुनिक होने की बजाय एक आन्दोलन या उग्रता को बढावा देने योग्य है। ये कुछ मानवीय पक्ष अवश्य हो सकते हैं, किन्तु सोचने योग्य नहीं की वास्तव में घूंघट कोई अत्याचार हैं। आलोचक कोई ऐसा कारण नहीं बता सकते हैं किस प्रकार से यह अत्याचार हैं? 

घूंघट : शृंगार का विषय - 


घूंघट को भारत में हमेशा से महिलाओं का गहना और शृंगार माना गया। घूंघट पर कई लोकगीतों के साथ आधुनिक फ़िल्मों में भी गाने लिखे गए। घूंघट से दुल्हन की सुन्दरता बढ़ जाती है, ऐसा हमेशा से मान्यता रही। खासतौर से इसके आलोचक भी विवाह के अवसर पर दुल्हन को घूंघट में ही रखना पसंद करते हैं, क्योंकि यह ना सिर्फ संस्कृति का हिस्सा बल्कि भारतीय पहनावे का हिस्सा होने के कारण बिन घूंघट भारतीय दुल्हन के परिधान और शृंगार अधूरा लगता है। घूंघट को महिलाओ की शोभा हमेशा से माना जाता रहा है। पर पुरुष (पति को छोड़कर) को महिला के घूंघट के हाथ देने का अधिकार नहीं होता, क्योंकि इसे महिला जा एक हिस्सा माना जाता रहा है। 

घूंघट पर जो कुछ गाने बने हुए हैं, उनमे से हम कुछ गानों का जिक्र अवश्य करेंगे ताकि आप घूंघट को बेहतर तरीके से समझ सके। ऐसे कुछ गाने इस प्रकार है - 
"घूंघट में चाँद होगा, आँचल में चाँदनी...." 
यहाँ दूल्हा अपनी दुल्हन के लिए कल्पना कर रहा है कि दुल्हन जो घूंघट निकाल बैठी है वो चांद की भांति सुन्दर है और उसके मुख की आभा उसके आँचल में चांदनी बिखेर रही है। 
"घूंघटे में है चंदा फिर भी चारो ओर फैला है उजाला.. "

इस गाने में नायक, नायिका को घूंघट में देखकर अपने भाव बता रहा है कि नायिका का चेहरा चांद समान है, जो घूंघट में है फिर भी उसका तेज चारो तरफ झलक रहा है। इसे आप यूँ भी कह सकते हैं कि घूंघट वास्तविकता पर पर्दा नहीं है। 

" सुहागरात है, घूंघट उठा रहा हूं... "

इसके भावार्थ को समझे तो स्पष्ट है कि घूंघट उठाने का हक सिर्फ पति को ही है। 

इसके अलावा अगर राजस्थान के लोकगीतों में भी घूंघट का जिक्र मिलता है। राजस्थान के सुप्रसिध्द गीत मूमल में भी घूंघट का जिक्र है। 

"आवती जावती दिठो डाडाणो दिठो घूंघटिए मायी..."

आती जाती ने दादाणा (पिता का ननिहाल) देखा, लेकिन घूंघट में ही देखा। नायिका दूसरे गॉव में भी किसी बुजुर्ग के साथ होने से घूंघट हटाना उचित नहीं समझती। 

घूंघट के वैज्ञानिक कारण - 


हमारे पूर्वज सदियों पूर्व में भी वैज्ञानिक सोच के धनी थे। उनकी हर बात (रिवाज और परंपरा) के पीछे आज वैज्ञानिक कारण सिद्ध हो रहे हैं। सदियों पहले उन्होंने अपने तरीके से तथ्यों का अध्ययन कर जो लागू किया अथवा एक रिवाज के रूप में अपना लिया, आज उसके पीछे वैज्ञानिक कारण सामने आ रहे हैं। सदियों के बाद आज वैज्ञानिक ऐसे रिवाजों पर अध्ययन कर रहे हैं, जिससे ऐसे वैज्ञानिक कारणों का खुलासा हो रहा है देश। या किसी अन्य अध्ययन से भी खुलासे हो रहे हैं। इन्हीं खुलासों में घूंघट को लेकर भी इसके वैज्ञानिक कारण होने का खुलासा हो चुका है। 

ब्रिटिश कैंसर शोध संस्थान के मुताबिक सूर्य की किरणें सीधे शरीर के अंगों को छूने से कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। इसी के कारण राजस्थान जैसे गर्म प्रदेश में नख से सिर तक को ढंकने के रिवाज शुरु हुए। सिर को ढंके जाने का रिवाज घूंघट तक पहुंच गया। इतना ही नहीं पुरुषों में भी सिर ढंकने का रिवाज शुरु हुआ। साफा या पगड़ी से पुरुष सिर ढंकने लगे। महिलाओ के चेहरे की त्वचा पुरुषों के मुकाबले में अधिक मुलायम (दाढ़ी मूँछ ना होने से) और प्राकृतिक रूप से ढंकी हुई नहीं होने से मुँह ढंकने का रिवाज शुरू हुआ। इस रिवाज के शुरु होने का कारण लज्जा और शर्म से अधिक सूर्य की सीधी किरणों से बचाव था। 

आज भी चिकित्सक धूप में बाहर ना निकलने की सलाह तो अवश्य देते हैं, किन्तु इसके वास्तविक कारण का खुलासा नहीं करते हैं। हो सकता है कि इसके पीछे उदारवादी सोच हो या उदारवादी सोच के लोगों की आलोचना से बचना। कभी इस बात का खुलासा नहीं करते कि सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणें मानव शरीर की त्वचा में पाए जाने वाले डीएनए को नुकसान पहुंचाती हैं, जिससे कैंसर भी हो सकता है।

यहाँ इस बात पर गौर करना भी जरूरी है कि हल्के रंग (सफेद या गोरा) रंग के लोगों को सूर्य की किरणों से गहरे रंग (गेंहुआ और काला) के मुकाबले में अधिक होता है। ऐसे में हल्के रंग के लोगों को सूर्य की किरणों से अधिक बचाव की जरूरत होती है।

घूंघट प्रथा का इतिहास - 


घूंघट को एक प्रथा अथवा कुरीति कहकर इसकी आलोचना करने वाले अक्सर तर्कों से साबित करते हैं कि घूंघट की शुरुआत भारत में मुग़लों के आगमन से शुरु हुई। इससे पहले भारत में घूंघट अस्तित्व में नहीं था। महिलाए स्वतन्त्र थी। 

लेकिन ऐसे तर्क देते समय आलोचक भारतीय इतिहास और प्राचीन चित्रकला को दरकिनार कर देते हैं। वो यह भूल जाते हैं कि मुगल काल से पहले की गई महिला चित्रकारी में भी महिलाओ को सिर को पल्लू से ढंके हुए ही बताया गया है। जो इस बात का सबूत है कि मुग़ल काल से पहले भी घूंघट अस्तित्व में था। इतिहास पर नजर डाली जाए तो घूंघट कब से शुरू हुआ, इसे लेकर कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। 

निष्कर्ष - 


घूंघट एक प्रथा है, इसे प्रथा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि यह सदियों से चली आ रही है। प्रथा वही होती है को धीरे-धीरे समाज में अपनी जगह बना लेती है। घूंघट ने भी सदियों से समाज में अपना अस्तित्व बचा जगह बना ली है। घूंघट के इतिहास के पुख्ता प्रमाण नहीं है, लेकिन चित्रकारी से साबित होता है कि भारत में 1000 साल पहले भी महिलाओ और पुरुषों में सिर ढंकने का रिवाज अवश्य था। 

आधुनिक विज्ञान बताता है कि सूर्य की किरणें शरीर को नुकसान पहुंचाती हैं। सूर्य की किरणों से कैंसर जैसे घातक रोग भी हो सकते हैं। इस तरह के वैज्ञानिक तर्क स्त्री को घूंघट से मुक्त करने में कामयाब नहीं होने दे सकते हैं। यही कारण है कि ग्रामीण क्षेत्रो में सूर्य की किरणों में अधिक समय व्यतित करने वाली महिलाए शहरी महिलाओ के मुकाबले में घूंघट को अधिक महत्व देती है। 

गर्मी के तपते दिनों में शहरो में भी महिलाएं और बच्चियां सिर ढंके हुए नजर आती है। इतना ही नहीं पुरुष और युवा लड़के भी गर्मी के दिनों में सिर ढंकने से कपड़े से मुँह बंधकर सड़कों पर चलते या मोटर साईकिल चलाते हुए नजर आते हैं। हम यह नहीं कहते हैं कि इन्हें कैंसर होने जैसी किसी बीमारी का डर है, किंतु इन्हें धूप और लू से बचाव के लिए ऐसे जतन करने पड़ते हैं। 

अन्य प्रश्न - 


प्रश्न - घूंघट किसे कहते हैं? 

उत्तर - राजस्थान में महिलाओ द्वारा सिर के साथ ही मुँह ढंकने के रिवाज को घूंघट कहा जाता है।

प्रश्न - राजस्थान में महिलाएं घूंघट क्यों निकालती है? 

उत्तर - राजस्थान में महिलाओ द्वारा घूंघट निकालने का रिवाज सदियों से चला आ रहा है। वर्तमान विज्ञान और शोध से साबित होता है कि घूंघट निकालने का कारण गर्मी और सूर्य की किरणों से होने वाले नुकसान से बचाव है। 

प्रश्न - क्या महिलाओ को घूंघट से मुक्ति मिल सकती है? 

उत्तर - यह कोई ऐसा विषय नहीं है, जिससे महिलाओ को बहुत कष्ट झेलना पड़ रहा है। घूंघट प्राचीन काल से शृंगार का विषय माना जाता रहा है। प्राचीन काल से इसका अपना महत्व रहा है। प्राचीनकाल से आधुनिक काल तक महिलाए अपने शरीर की कोमल त्वचा के साथ चेहरे को बचाने के लिए शरीर को पूरी तरह से ढंक कर रखते हुए आई है। ऐसे में इसके इतिहास के साथ वर्तमान शोध खासतौर से सूर्य की किरणों से कैंसर भी हो सकता है को ध्यान में रखते हुए बात करे तो किसी नई खोज तक राजस्थान समेत देश के गर्म हिस्सों में घूंघट अपना अस्तित्व बनाये रखेगा। इससे मुक्ति आसान प्रतीत नहीं हो रही है। 

प्रश्न - क्या सूर्य की किरणों से कैंसर होता है? 

उत्तर - हाँ, सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणें मानव शरीर की त्वचा को नुकसान पहुंचाती हैं। इससे व्यक्ति का डीएनए बदल जाता है और कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। 

प्रश्न - भारत में घूंघट का इतिहास कितना पुराना है? 

उत्तर - भारत में घूंघट के इतिहास के कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है, किंतु प्राचीन चित्रकारी से स्पष्ट है कि 1000 साल पहले भारत में घूंघट का अस्तित्व था। 

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