भारत देश कई राज्यों से मिलकर बना हुआ एक देश है। सभी राज्यों को मिश्रित रुप से मिलने से देश बना हुआ है, इसी के कारण इसे राज्यों का संघ कहा जाता है। देश का अस्तित्व सभी राज्यों है और सभी राज्यों का अस्तित्व भी इस देश है। राज्यों के बिना भारत अधूरा है तो भारत के बिना राज्य भी अधूरे हैं। सबका अस्तित्व एक-दूसरे पर निर्भर है, यह भारत देश के नागरिक बेहतर तरीके से जानते हैं।
भारतवासी जितने भारतीय नागरिक है, उतने ही अपने राज्य के नागरिक हैं। जितना उन्हें भारत से प्रेम है उतना ही अपने राज्य से। सभी राज्यों की अपनी पहचान है। इसी के कारण सबकी अपनी बोली और भाषा। राजस्थान भौगोलिक दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा राज्य है। राजस्थान के लोगों और भाषा को राजस्थानी कहा जाता है।
राजस्थानी का अर्थ -
सामन्यतः राजस्थानी उस व्यक्ति, व्यक्तियों का समूह, भाषायी, संस्कृति और वस्तु को कहा जाता है, जिसका संबंध राजस्थान प्रदेश से होता है। राजस्थान से ही राजस्थानी से उपमा दी जाती है। राजस्थान से जुड़ी हुई कोई भी विशेषता को राजस्थानी कहकर संबोधित किया जाता है।
राजस्थान के लोगों से सम्बन्धित और राजस्थान में निर्मित चीजों को भी राजस्थानी कहकर संबोधित किया जाता है। राजस्थान से सम्बन्ध रखने वाली वस्तुओं को राजस्थानी कहकर संबोधित किया जाता है। उदाहरणार्थ राजस्थानी भाषा, राजस्थानी कला और संस्कृति, राजस्थानी लोकगीत एवं राजस्थानी वेषभूषा इत्यादि।
राजस्थानी भाषा -
राजस्थान के लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा को राजस्थानी भाषा कहा जाता है। राजस्थानी भाषा पुरानी भाषाओ में से एक है। इस भाषा के शताब्दियों पुराने साहित्य उपलब्ध हैं। राजस्थानी भाषा की पूर्व में डिंगल और पिंगल लिपि हुआ करती थी। इस लिपि को कई बार भाषा भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त प्राचीन काल में मरूभाषा के होने का जिक्र भी कई बार किया हुआ है। वर्तमान में जो राजस्थानी भाषा अस्तित्व में है, उसकी लिपि देवनागरी है।
राजस्थानी भाषा राजस्थान के निवासियों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है। मूल रूप से यह हिंदी की एक उपभाषा है, जिसके 80% शब्द हिन्दी भाषा से मिलते जुलते है। शेष शब्द स्थानीय बोलियों के है। राजस्थानी भाषा राजस्थान के पड़ौसी राज्य पंजाब, हरियाणा और गुजरात के साथ पाकिस्तान के सिंध प्रांत के कुछ हिस्सों में बोली जाती है। शब्दावली के अनुसार देखा जाए तो राजस्थानी एक समृद्ध भाषा है।
राजस्थानी भाषा को राजस्थान के वर्तमान शैक्षणिक पाठ्यक्रम में देखा जाए तो इसका स्थान मैट्रिक (दसवीं) के बाद है। राजस्थान राज्य उच्च माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, अजमेर द्वारा संचालित पाठ्यक्रम में कक्षा - 11 मे पहली बार राजस्थानी भाषा को अधिकृत तौर पर एक विषय के रूप में लिया जा सकता है। इसके बाद राजस्थान में संचालित अधिकांश विश्वविद्यालय से राजस्थानी भाषा में स्नातक, परास्नातक (मास्टर डिग्री) और पीएचडी (डॉक्टरेट की मानद उपाधि) हासिल की जा सकती हैं।
राजस्थानी भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित नहीं है। इस अनुसूची में सम्मिलित नहीं होने से इसे राजस्थान राज्य की राजभाषा के रुप में मान्यता प्राप्त नहीं है और ना ही इसे विद्यालयी शिक्षा में माध्यम के रुप में स्वीकार किया जा सकता है। इसे आठवीं अनुसूची में शामिल करने को लेकर प्रदेश में कई बार मुहिम चलाई गई, लेकिन यह मुहिम इसे राजभाषा के रूप में मान्यता दिलाने के लिए नाकाफी साबित हुई।
राजस्थानी भाषा का शब्दकोश -
राजस्थानी भाषा में स्नातक, परास्नातक और डॉक्टरेट की उपाधि तक विश्वविद्यालय से हासिल की जा सकती है। यही कारण है कि इस भाषा का भी अन्य भाषाओ की तरह इसका विस्तृत शब्दकोश है। राजस्थानी भाषा के शब्दकोश में करीब 2 लाख शब्द है। यह शब्दकोश जोधपुर जिले के निवासी मूलरूप से शिक्षक सीताराम लालच ने तैयार किया। उन्होंने यह अपने हाथ से लिखा। इस शब्दकोश में राजस्थानी भाषा के सभी शब्द है।
राजस्थानी भाषा का शब्दकोश जोधपुर के नरेवा निवासी सीताराम लालच ने अपनी उम्र के 50 वर्ष की कड़ी साधना से तैयार किया। लालच को इस कार्य के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1977 में 'पद्मश्री पुरस्कार, से नवाजा। इससे पहले वर्ष 1973 में उन्हें राजस्थान साहित्य अकादमी ने राजस्थान मनीषी पुरस्कार से नवाजा। वर्ष 1976 में श्री लालच को जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर ने डी लिट् की उपाधि दी।
राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए आन्दोलन -
राजस्थानी भाषा को राजभाषा के रूप में मान्यता दिलाने के लिए विभिन्न सामाजिक संगठनों द्वारा समय-समय पर आंदोलन किए गए। सामाजिक संगठनों के साथ विषय से जुड़े विशेषज्ञों के साथ प्रदेश की जनता ने भी सहयोग दिया, किंतु उनकी मांग को सफलता नहीं मिली। भाषा की मान्यता के लिए किए गए प्रयास और आंदोलन का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार हैं -
1936 - राजस्थानी भाषा की राजभाषा के रुप में सबसे पहले मान्यता लेने के लिए पहला आंदोलन था। उस समय भारत आजाद भी नहीं हुआ था, तब भारत में ब्रिटिश राज था।
1956 - आजादी के बाद पहली बार राज्य की विधान सभा में मांग उठी। उस समय कई संगठनों ने सड़क पर उतर आंदोलन किया।
2003 - राज्य सरकार द्वारा पहली बार राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए प्रस्ताव पास कर केंद्र को भेजा गया।
2004 - केंद्र सरकार ने राजस्थान विधानसभा द्वारा पारित प्रस्ताव पर एस. ए. महापात्रा समिति का गठन किया गया। कमेटी ने 2 साल बाद सौंपी अपनी रिपोर्ट में इसे मान्यता के लायक बताया।
2006 - केंद्रीय गृह मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने मान्यता पर सहमति देते हुए, कहा कि इसके लिए संसद में बिल पेश किया जाएगा। लेकिन आजतक संसद में कोई बिल नहीं आया।
2013 - जयपुर फुट USA के चेयरमैन प्रेम भण्डारी के नेतृत्व में देश की राजधानी दिल्ली में जंतर-मंतर पर महापड़ाव।
2023 - दिल्ली महापड़ाव के साथ ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर मान्यता की गुहार।
इनके अतिरिक्त भी समय-समय पर प्रदेश के बुद्धजीवियों और राजस्थानी भाषा प्रेमियों और संगठनों द्वारा मान्यता के लिए धरने-प्रदर्शन और ज्ञापन देने के कार्यक्रम आयोजित किए गए। लेकिन उनके द्वारा किए गए कार्य मान्यता दिलाने के लिए काफी साबित नहीं हुए।
राजस्थानी भाषा की मान्यता के मांग के कारण -
राजस्थानी भाषा की मान्यता के लंबे समय से चल रहे आंदोलन से प्रदेशवासियों में ही इसे लेकर तर्क-वितर्क किए जाते रहे हैं। वर्तमान में भी ऐसे तर्क-वितर्क का दौर जारी है। कई लोग समर्थन करते हैं, तो कुछ विरोध में आ ही जाते हैं। विरोध करने वाले इसकी मान्यता के कारण पूछते हैं। कई लोग जिन्हें भाषा और मान्यता की समझ नहीं होती है, वो भी अक्सर पूछते हैं कि मान्यता मिल जाने से क्या फायदा होगा?
हम पहले ही बता देते हैं कि तर्क-वितर्क करने वाले पूछते हैं कि अगर राजस्थानी भाषा को मान्यता मिल जाती है तो मुझे क्या फायदा होगा? तो हम स्पष्ट तौर से बता दे कि इस प्रश्न का उत्तर हम नहीं दे सकते हैं। किंतु वृहद स्तर पर राजस्थानी भाषा की मान्यता से होने वाले फायदे के बारे में हम कुछ कारण बता सकते हैं। सहमति और असहमती प्रकट करना आपका अधिकार है। हमारे द्वारा दिए जाने वाले तर्क विभिन्न आंदोलनकारियों की मांग के पक्ष में उनके द्वारा दिए जाने वाले तर्कों के साथ विशेषज्ञों द्वारा दिए जाने वाले फायदों को ध्यान में रखते हुए कुछ तर्क निम्नानुसार हैं -
- मातृभाषा में शिक्षा - राजस्थानी भाषा को मान्यता मिलने के बाद दूसरे प्रदेशों की भांति राजस्थान राज्य के विद्यालयों में प्रारंभिक शिक्षा राजस्थानी भाषा में दिए जाने का दौर शुरू हो जाएगा। शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि मातृभाषा में दी जाने वाली शिक्षा छोटे बच्चों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होती है। मातृभाषा में दी जाने वाली शिक्षा से बच्चों में जल्दी समझ विकसित होती है और नई चीजों को भी आसानी से ग्रहण कर लेते हैं। दूसरी भाषा में दी जाने वाली शिक्षा, भाषा विभेद के कारण आसानी से समझ में नहीं आती है।
- भाषा संरक्षण - जब किसी भाषा का उपयोग नाममात्र का रह जाता है तो वह अपना अस्तित्व खोने लगती है। एक समय के बाद अस्तित्व खोती भाषा अपना धरातल खो कर विलुप्त हो जाती है। भाषा को विलुप्त होने से बचाने के समाज को उसे अधिकाधिक उपयोग में लेना जरूरी होता है। आज अंग्रेजी का दौर बढ़ने का कारण उसका सर्वाधिक उपयोग किया जाना है। ऐसे ही अगर राजस्थानी भाषा को मान्यता प्राप्त होगी तो वह प्रदेश में हर स्तर पर उपयोग ली जाने लगेगी। जिससे भाषा का विकास होने के साथ ही उसका अस्तित्व भी बच पाएगा, अन्यथा 80% हिन्दी के शब्दों को समेटे हुए यह भाषा कब हिन्दी में मिल जाएगी, इसका पता भी नहीं चलेगा।
- पहचान - प्रत्येक प्रदेश की अपनी पहचान होती है। राजस्थान प्रदेश की पहचान ठीक उस प्रकार से राजस्थान से नहीं है जैसी पहचान पंजाब की पंजाबी से और गुजरात की गुजराती से। दिल्ली से होते हुए हरियाणा और राजस्थान में ट्रेन से सफर करते किसी अनजान व्यक्ति को आभास भी नहीं होगा कि प्रदेश बदल गया। गुजरात जाते ही बोर्ड बता देंगे प्रदेश बदल गया। ऐसी पहचान और अपनी धरोहर को बचाने के लिए अपनी भाषा का होना आवश्यक है। इसी पहचान को ध्यान में रखते हुए राजस्थानी भाषा की समय-समय पर मांग की जाती है।
- प्रदेश के लोगों को प्रदेश में रोजगार - वर्तमान में राजस्थान की अपनी भाषा नहीं होने से प्रदेश स्तर पर होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं में इसका हिस्सा नाममात्र का है। अगर इसे मान्यता मिलती है तो इसका हिस्सा बढ़ेगा, जिससे प्रदेश की नौकरियों में दूसरे राज्यों की बजाय राजस्थान की प्रतिभाओं का हिस्सा बढ़ेगा। वर्तमान में राजस्थान की प्रतिभाओं के पिछड़ने का कारण घर और स्कूल की भाषा में समानता का ना होना है, जो राजस्थानी की मान्यता के बिना संभव नहीं होगा।
- समृद्ध भाषा - राजस्थानी अन्य मान्यता प्राप्त भाषाओ की तरह ही समृद्ध भाषा है। इसका ऐतिहासिक समृद्ध साहित्य होने के साथ ही समृद्ध शब्दकोश हैं। इसे प्रारम्भिक शिक्षा से नहीं जोड़ा तो अस्तित्व खो सकती है।
- धरोहर और संस्कृति सरंक्षण - भाषा और संस्कृति आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए होते हैं। अगर भाषा अस्तित्व खोती है तो उसके साथ लोकगीत और लोक कहानियां भी अस्तित्व खोने लगती है। लोक गीत और कहानियों के बिना संस्कृति भी अपना अस्तित्व खोने लगती है। राजस्थान की संस्कृति पर हज़ारों लोकगीत है अगर उन्होंने अस्तित्व खो दिया तो समझो राजस्थान की अपनायत की संस्कृति भी समाप्त हो जाएगी।
- प्रदेश में भाषा मानकीकरण - राजस्थान में बोलियों में समानता का अभाव है, अगर इसे भाषा के रूप में पढ़ाया जाए तो हिन्दी की तरह कुछ ही समय में प्रदेश में बोली और भाषा में समानता होगी, जिससे प्रदेश के लोगों के बीच स्थानीय भाषा में संचार उन्नत होगा।
उपर्युक्त सभी कारण विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपे लेख और आन्दोलनकारियो के साक्षात्कार से लिए गए हैं। यह सभी कारण राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के पक्ष में तर्क देने वाले लोगों द्वारा दिए जाते हैं। जो इसका विरोध कर रहे उनके तर्क भी हमने लिए है, जो आगे है।
राजस्थानी भाषा के खिलाफ लोगों के तर्क -
राजस्थान के कई भाषा, विशेषज्ञ और सामाजिक संगठन राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। तो कई बार कुछ लोग विरोध करते भी नजर आते हैं। इसी विरोध के चलते अब तक इसे मान्यता नहीं मिली है। विरोध करने वाले के तर्क इस प्रकार है -
- वैश्वीकरण - आधुनिक युग वैश्वीकरण का है। पूरी दुनिया अँग्रेजी में सिमट रही है तो भारत को अपनी हिंदी बचाने के लिए देश में हिंदी में कार्य करना चाहिए। अगर प्रत्येक प्रदेश की अलग भाषा होती है तो भारत और भारत की भाषा हिंदी अपना अस्तित्व खो देगी।
- बोली विविधता - राजस्थान प्रदेश के प्रत्येक क्षेत्र में अलग-अलग बोलियां है। इन्हीं के कारण इसमे समरूपता नहीं है। कुछ लोग राजस्थानी पर मारवाड़ी होने का आरोप लगा, इसे क्षेत्र विशेष की भाषा घोषित कर देते हैं। यह सत्य भी है कि पूरे प्रदेश की बोलियों में कोई समरूपता नजर नहीं आती है।
- राष्ट्रीय परीक्षाओं में नुकसान - अगर प्रदेश की भाषा अलग कर इसे स्कूली शिक्षा में अपना लिया जाता है तो प्रदेश में हिंदी का स्तर गिरने लगेगा। ऐसा हुआ तो भारतीय रेलवे के साथ अन्य केंद्रीय नौकरियों में प्रदेश का हिस्सा घटने लगेगा। ऐसे तर्क देने वाले क्षेत्रीय भाषा रखने वाले प्रदेशों के नागरिको की केंद्रीय नौकरियों में भागीदारी का उत्तर भारत के नागरिकों की हिस्सेदारी के साथ तुलनात्मक रूप से अध्ययन करते हुए देते हैं।
- राज्य को वित्तीय नुकसान - नई भाषा बनने पर नए संसाधनो की आवश्यकता होगी। ऐसा करने से वित्तीय भार राज्य पर बढ़ जाएगा।
- राष्ट्रीय स्तर पर पिछड़ना - केंद्रीय नौकरियों में हिस्सेदारी घटने से राष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश पिछड़ जाएगा। राज्य के विद्यार्थियों को दूसरे राज्यों में जॉब करने का अवसर भी प्राप्त नहीं होगा। प्रदेश वासी प्रदेश तक सीमित हो जाएंगे।
यह सभी तर्क उन लोगों द्वारा दिए जाते हैं, जो राजस्थानी भाषा का खुले तौर पर विरोध करते हैं।
निष्कर्ष - हमारा कोई मत नहीं है। हमारे द्वारा लिखे गए लेख के लिए हमने कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ कई लोगों के साक्षात्कार से उनके तर्क जानकर लिखा है।
अगर आपको कोई जानकारी हमसे लिखवानी है तो - हमसे संपर्क करे।
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