सरकारी स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी बना रही हैं, स्वास्थ्य बीमा कंपनियों को धनी। Sarkari Bima

सरकारी स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी बना रही हैं, स्वास्थ्य बीमा कंपनियों को धनी। Sarkari Bima

आजकल स्वास्थ्य बीमा तेजी से प्रचलन में आ रहा है। लोगों के साथ भारत जैसे देश में सरकार द्वारा अनिवार्य रूप से अपने नागरिकों को स्वास्थ्य बीमा दिया जा रहा है। जो लोग स्वास्थ्य बीमा लेने में समर्थ नही है उन्हें सरकार किफायती दरों पर स्वास्थ्य अनिवार्य रुप से दे रही है, इसके अलावा एक निश्चित दायरे के भीतर आने वाले लोगों को निःशुल्क स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी दी जा रही हैं।

स्वास्थ्य बीमा व्यक्ति के स्वास्थ्य खर्चों को सीमित करने में अहम भूमिका निभाता हैं। यह एक प्रकार कि वित्तीय सुरक्षा देने वाला एक वित्तीय साधन अथवा विकल्प है। यह बीमा पॉलिसी बीमा कंपनी और बीमित व्यक्ति के बीच एक अनुबंध होता है। बीमाधारक, जो व्यक्ति बीमा कंपनी को वित्तीय जोखिम के विरुद्ध निश्चित राशि में प्रीमियम का भुगतान करता है और इस राशि के बदले में कंपनी, उस कंपनी से स्वास्थ्य सेवाओं के खर्चों के लिए वित्तीय सुरक्षा प्राप्त करता है।

वर्तमान समय में स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी के नाम पर भारत में जबरदस्त घपला चल रहा है बीमा पॉलिसी के नाम पर बीमा कंपनियां सरकार और लोगों से मोटी राशि बटोर कर बदले में नाम मात्र का भुगतान दे रही है जिसके चलते स्वास्थ्य बीमा पर कई प्रकार के प्रश्न खड़े हो रहे हैं हम आपको बताने जा रहे हैं कि किस प्रकार से बीमा कंपनियां बीमा के नाम पर मोटी रकम कमा रही है। 

भारतीय स्वास्थ्य बीमा के नाम से हो रहा है बड़ा घपला -


हाल ही में भारतीय बीमा नियामक प्राधिकरण (IRDAI) द्वारा अपनी रिपोर्ट में बताया गया कि भारतीय स्वास्थ्य बीमा  कंपनियां ग्राहक और सरकार से मोटी रकम प्राप्त कर बदले में नाम मात्र का लाभ अथवा क्लेम प्रदान कर रही है। क्लेम के नाम पर उन्हें नाम मात्र की राशि दी जा रही है, जिसके कारण स्वास्थ्य बीमा कंपनियां दिनोदिन अमीर और मजबूत होती जा रही है।

बीमा क्लेम 


₹100रुपये प्रीमियम लेकर सिर्फ ₹86 ही क्लेम देती हैं बीमा कंपनियां: अधिकांश भारतीय स्वास्थ्य बीमा कंपनियां ग्राहक से ₹100 का प्रीमियम लेकर बदले में महज ₹86 ही क्लेम के रूप में दे रही है जो बहुत कम है। ऐसे में कंपनी 14% सीधा लाभ कमा रही है।

कुछ बीमा कंपनियां तो ₹100 के एवज में ₹56 ही क्लेम दे रही हैं: कुछ निजी क्षेत्र की कंपनियां तो ऐसी है जो ₹100 के प्रीमियम के बदले में मजह ₹56 ही प्रेम के रूप में दे रही है ऐसे में यह कंपनियां 44% तक का लाभ कमा रही है जिसके कारण बीमा धारकों को खासा नुकसान हो रहा है। 

लाभ कमाने के उद्देश्य में सरकारी कंपनी भी पीछे नहीं है सरकारी बीमा कंपनियां ₹100 का प्रीमियम लेकर सिर्फ ₹86  ही क्लेम देती हैं।

दावों का निपटान 


भारतीय स्वास्थ्य बीमा कंपनियां दावों का निपटारा एक तरफ तो समय पर नहीं कर रही है वहीं दूसरी तरफ अधिकांश दावे खारिज भी कर रही है। जिसके कारण भारतीय स्वास्थ्य बीमा कंपनियां काफी अच्छा मुनाफा कमा रही हैं। अगर पिछले वित्तीय वर्ष 2023-24 की बात की जाए तो बीमा कंपनियों ने कुल 83 फीसदी दावों का निपटान किया और 11 फीसदी खारिज कर दिया, शेष अब भी लंबित है।

लंबित दावों को लेकर हाल ही में नितिन कामथ, जेरोधा के सीईओ ने कहा है कि "बीमा कम्पनी द्वारा क्लेम का दावा स्वीकार करने में की जाने वाली देरी क्लेम के रिजेक्ट होने का कारण भी बन सकती हैं। कभी-कभी बीमा कंपनी कैशलेस अप्रूवल में देरी कर सकती है, जिसकी वजह से भी क्लेम रिजेक्ट हो जाता है।" 

ऐसे में जानबूझकर की जाने वाली देरी स्वास्थ्य बीमा कंपनियों के लिए फायदे का सौदा बनती जा रही है। इसके अलावा भी बीमा कंपनियों के दावे में ऐसी शर्ते होती हैं कि अधिकांश ग्राहक दावा भी नहीं कर पाते है, जिसके कारण दावा राशि के मुकाबले में ग्राहक को नाममात्र की राशि दी जाती है।

बीमा दावा को खारिज किया जाना अलग बात है किंतु लंबित रखा जाना कष्टकारी है। दावों को लंबित रख इस तरह बीमा कंपनियां राशि पर अच्छा खासा ब्याज भी प्राप्त कर रही है जो अनुचित है। इस पर सरकार को ध्यान देना होगा ।

दावों पर दी गई राशि 


भारत में स्वास्थ्य बीमा कम्पनी दावे की राशि के मुकाबले में ग्राहक को एक चौथाई से भी कम राशि दे रही हैं। दावा राशि पर कई प्रकार की कटौती कर देती हैं, इसका कोई स्पष्ट नियम ही नहीं हैं या कोई तकनीकी समस्याओं के चलते हो रहा है, पिछले वर्ष के आंकड़ों को देखे तो ऐसा प्रतीत होता है कि बीमा कंपनियां ग्राहकों को दावा राशि के मुकाबले में एक चौथाई से अधिक नहीं दे रही हैं।

भारत में स्वास्थ्य बीमा कंपनियों द्वारा ने कुल 2.69 करोड़ स्वास्थ्य दावों का निपटान करते हुए ₹83,493 करोड़ रुपये का भुगतान किया। अगर आंकड़ा औसत दावा निपटान राशि से देखा जाए तो ₹31,000 के आसपास रहता है। जबकि सभी पॉलिसी ₹5 लाख के लिए बेची जा रही है।

सम्पूर्ण जानकारी हाल ही में भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण द्बारा दी गई जानकारी पर आधारित है। 

वैश्विक स्तर 


ऐसा विश्व के लगभग सभी देशों में चल रहा है। भारत अकेला देश नहीं है। सभी देशों में यही हाल देखने को मिल रहा हैं।

भारत में बीमा घपला के कारण 


भारत में सरकार द्वारा अधिकांश लोगों को स्वास्थ्य बीमा निःशुल्क दिय जाता है। बीमा के प्रीमियम का भुगतान सरकार द्वारा किया जाता है। राजस्थान प्रदेश की बात की जाए तो मुख्यमंत्री आयुष्मान आरोग्य योजना और केंद्र सरकार द्वारा आयुष्मान आरोग्य योजना से स्वास्थ्य बीमा दिया जा रहा है।

अधिक लोगों का बीमा - भारत में सरकार द्वारा लोगों को निःशुल्क (प्रीमियम का भुगतान राज्य अथवा केंद्र सरकार द्वारा) बीमा दिया जाने के कारण बहुत सारे लोगों को एक साथ बीमा दे दिया जाता है। ऐसे में कई बार स्वस्थ लोगों को भी स्वास्थ्य बीमा दे दिया जाता है जिसके कारण उनके द्वारा कभी दावा ही नहीं किया जाता है, आवश्यकता के समय भी। ऐसे में, बीमा कंपनियों को मोटा मुनाफा हो रहा है। दूसरी तरफ सरकारी बीमा होने के कारण ग्राहक बीमा कंपनी द्वारा दावे को अस्वीकार कर देने पर ग्राहक कंपनी से भुगतान प्राप्त करने के लिए चक्कर नहीं कटता है, जिससे दावा निरस्त हो जाता है। कई बार बीमा कंपनी द्वारा दावे की राशि से कम भुगतान होने के बावजूद ग्राहक इसे सरकारी सहायता मानते हुए स्वीकार कर लेता है, जिसके कारण बीमा कंपनियां खुलकर मोटा मुनाफा कमा रही है।

राजनीतिक स्टंट - भारत में बीमा सरकार द्वारा अनिवार्य रूप से दिया जा रहा है (एक निश्चित दायरे में आने वाले नागरिकों को)।ऐसे में अगर राजस्थान प्रदेश का देखा जाए तो 90% जनसंख्या सरकारी बीमा द्वारा बीमित है। यह पूरी तरह से एक राजनीतिक स्टंट के बनकर रह गया। इसे दूसरे शब्दों में आप है कह सकते हैं सरकार द्वारा नागरिकों का अनिवार्य रूप से बीमा किया जाना।अगर इस तरीके से बीमा प्राप्त हो जाता है, जिसका प्रीमियम भुगतान सरकार द्वारा अनिवार्य रुप से किया जाता है किंतु अधिकांशत ग्राहक बीमा का दावा ही नहीं करते हैं। ग्राहकों के ऐसे रवैए के कारण कंपनियों को मोटा मुनाफा हो रहा है।

कमीशन - सरकारी बीमा होने के कारण कई बार राजनीतिक पार्टियों सरकारी कंपनी को छोड़कर निजी कंपनी से भी बीमा करवा देती है। जिसमें कई बार कमीशन खोरी के इल्जाम भी लगते रहते हैं यह भी मोटे मुनाफे का एक कारण हो सकता है।

अगर इसी तरीके से चला रहा तो सरकारी बीमा को छोड़कर कोई भी निजी व्यक्ति अपना भी स्वास्थ्य बीमा नहीं कराएगा क्योंकि स्वास्थ्य बीमा से किसी प्रकार के लाभ नजर नहीं आ रहे हैं एक तरफ कंपनी समय से दवा राशि का भुगतान नहीं करती है तो दूसरी तरफ ग्राफ द्वारा किए जाने वाला दवा के समान राशि नहीं दी जा रही है जो सही नहीं है 

अगर स्वास्थ्य बीमा में सरकार की भूमिका देखी जाए तो एक तरफ सरकार लोगों का निशुल्क बीमा कर खुद को मुक्त कर देती है दूसरी तरफ जो लोग अपने स्तर पर बीमार देते हैं उसे समय बीमा पॉलिसी पर टैक्स अथवा कर लेकर सरकार खुद को मुक्त कर देती है सरकार ने अब तक बीमा कंपनियां के लिए दावे और द मिनिमम न्यूनतम दवा राशि के नियम नहीं बनाए हैं जिसके चलते बीमा कंपनियां अपनी मनमानी कर रही है ऐसे में सरकार को स्पष्ट नियम बनाने होंगे और निपटारा भी तेजी से करने के लिए किसी एजेंसी का की स्थापना करनी होगी

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ